Saturday, July 05, 2014

06-07-14 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “अव्यक्त-बापदादा” रिवाइज: 01-04-78 मधुबन

06-07-14    प्रातः मुरली    ओम् शान्ति    “अव्यक्त-बापदादा
रिवाइज: 01-04-78    मधुबन
 

“निरन्तर योगी ही निरन्तर साथी हैं”
आज मायाजीत विजयी रत्नों का विशेष संगठन है | आज के संगठन में बापदादा किन बच्चों को देख रहे हैं? जो आदि से अन्त तक बापदादा के सदा फेथफुल, सदा बाप के कदमों में कदम रखने वाले, सदा के सहयोगी और साथी हैं | हर समय बाप और सेवा में मगन रहने वाले, सदा श्रेष्ठ मर्यादाओं की लकीर से संकल्प में भी बाहर न निकलने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम, ऐसे बच्चे जो सदा हर सेकण्ड, हर संकल्प में जन्म-जन्म साथ रहते हैं | जो अभी बाप से वायदा निभाते हैं कि तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से हर सेकण्ड हर कर्म में साथ निभाऊं, ऐसे वायदे को निभाने वाले सपूत बच्चों को बाप भी जन्म-जन्मान्तर साथी भव का वरदान अभी देते हैं | साकार बाप के साथ भिन्न नाम रूप से पूज्य में भी साथी और पुजारीपन में भी साथी | ज्ञानी तू आत्मा बनने में भी साथी और भक्त आत्मा बनने में भी साथी | ऐसे सदा साथी का व ततत्वम् का वरदान ऐसी विशेष आत्माओं को अभी प्राप्त होता है | हर महारथी को स्वयं को चेक करना है कि वर्तमान समय बापदादा के गुणों, नॉलेज और सेवा में समानता और साथीपन कहाँ तक है? समानता ही समीपता को लायेगी | अभी की स्टेज (अवस्था) और भविष्य स्टेज में और हर सेकण्ड साथीपन का अनुभव जन्म-जन्मान्तर भी नाम रूप सम्बन्ध से साथ के अनुभव के निमित्त बनेंगे | विक्रमाजीत बनने में भी साथी और राजा विक्रम (विक्रमादित्य) बनने के समय भी साथी | हर पार्ट में हर वर्ण में साथ-साथ होंगे | इसका ही गायन है साथ जियेंगे, साथ मरेंगे अर्थात् साथ चढ़ेंगे, साथ गिरेंगे | चढ़ती कला, उतरती कला, दिन और रात, दोनों में निरन्तर योगी, निरन्तर साथी | जितना अभी संगम पर साथ निभाने में सम्पूर्ण हैं | उतना ही समीप के सम्बन्धी बनने में भी समीप होते हैं | विश्व की नम्बरवन श्रेष्ठ आत्मा का भी ड्रामा के अन्दर महत्व है | ऐसे नम्बरवन आत्मा के सदा सम्बन्ध में रहने वाली आत्माओं का भी महत्व हो जाता है | जैसे आजकल भी अल्पकाल के स्टेट्स को पाने वाली आत्मायें कोई प्रेजीडेन्ट या प्राइम मिनिस्टर बनती हैं तो उनके साथ उनकी फैमिली का भी महत्व हो जाता है | तो सदाकाल की श्रेष्ठ आत्मा के समबन्ध में आने वाली आत्माओं का महत्व कितना ऊँचा होगा | अभी थोड़ी सी हलचल होने दो फिर देखना आदि पुरानी आत्मायें जो सदा साथ का सम्बन्ध निभाती आई हैं, उन्हों का कितना महत्व होता है | जैसे पुरानी वस्तु का महत्व रखते हैं, वैल्यु समझते हैं जैसे आप आत्माओं की वैल्यु का वर्णन करते-करते गुणगान करते-करते स्वयं को भी धन्य अनुभव करेंगे | ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें अपने को समझते हो? जितना आप बाप के गुण गाते हो उतना ही रिटर्न में ऐसी आत्माओं के गुणगान करेंगे | अभी क्यों नहीं गुणगान करते हैं? सेवा अभी करते हो लेकिन सम्पूर्ण फल अन्त में क्यों मिलता है? अभी भी मिलता है लेकिन कम | उसका कारण जानते हो? अभी कभी-कभी बाप और आपको कहीं मिक्स कर देते हो | बाप के गुण गाते-गाते अपने आपके भी गुण गाने शुरू कर देते हो | भाषा बड़ी मीठी बोलते हो लेकिन मैं-पन का भाव होने के कारण आत्माओं की भावना समाप्त हो जाती है | यही सबसे बड़े से बड़ा अति सूक्ष्म त्याग है | इसी त्याग के आधार पर नम्बरवन आत्मा ने नम्बरवन भाग्य बनाया और अष्ट रत्न नम्बर का आधार भी यही त्याग है | हर सेकेण्ड, हर संकल्प में बाबा-बाबा याद रहे, मैं-पन समाप्त हो जाए | जब मैं नहीं तो मेरा भी नहीं | मेरा स्वभाव, मेरे संस्कार हैं, मेरी नेचर है, मेरा काम या ड्यूटी, मेरा नाम, मेरी शान, मैं-पन में यह मेरा-मेरा भी समाप्त हो जाता है | मैं-पन और मेरा-पन समाप्त हुआ – यही समानता और सम्पूर्णता है | स्वप्न में भी मैं पन न हो, इसको कहा जाता है, अश्वमेघ यज्ञ में मैं-पन के अश्व को स्वाहा करना | यही अन्तिम आहुति है और इसी के आधार पर ही अन्तिम विजय के नगाड़े बजेंगे | संगठन रूप में इस अन्तिम आहुति का दिल से आवाज़ फैलाओ | फिर यह पांचों तत्व सदा सब प्रकार की सफलताओं की माला पहनायेंगे | अब तक तो तत्व भी सेवा में कहीं-कहीं विघ्न रूप बनते हैं | लेकिन स्वाहा की आहुति देने से आरती उतारेंगे | ख़ुशी के बाजे बजायेंगे | सब आत्मायें अपनी बहुत काल की इच्छाओं की प्राप्ति करते हुए महिमा के घुंघरू पहन नाचेंगी | तब तो अन्तिम भक्ति के संस्कार मर्ज होंगे | ऐसी भक्त आत्माओं को भक्त-पन का वरदान भी अभी ही आप इष्टदेव आत्मा द्वारा मिलेगा | कोई को भक्त तू आत्मा का वरदान, कोई को आत्म ज्ञानी भव का वरदान | सर्व आत्माओं को अभी वरदानी बन वरदान देंगे | सकामी (वासना युक्त) राज्य करने वालों को राज्य पद का वरदान देंगे | ऐसे वरदानीमूर्त, कामधेनु आत्मायें बने हो? जो आत्मा जो मांगे तथास्तु | ऐसी आत्माओं को सदा समीप और साथी कहा जाता है | अच्छा |
ऐसे सदा शूरवीर सदा तख़्त और ताजधारी, हर सेकण्ड, हर संकल्प में श्रेष्ठ त्याग से श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाले हर क़दम में फ़ालो करने वाले, हर समय सर्व ख़ज़ानों से सम्पन्न, अखूट ख़ज़ाने से सदा सम्पन्न रहने वाले, लक्ष्य और लक्षण सदा सम्पूर्ण रखने वाले, ऐसे सम्पूर्ण श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते | 
दादी-दीदी से मुलाकात :- 
भविष्य का प्लैन बनाना है, उसके लिए संगठन इकठ्ठा किया है? क्या प्लैन बनायेंगे? जो भी किया है वह तो बहुत अच्छा किया और अभी जो करेंगे वह भी अच्छा | कोई भी प्रोग्राम व प्लैन की सफ़लता का आधार क्या होता है? रिवाजी रीति भी किसी कार्य की सफ़लता का आधार क्या होता है? कोई भी प्रोग्राम को सफ़ल बनाना चाहते हो तो क्या सोचते हो? अभी जो कान्फ्रेन्स की तो उसकी विशेष सफ़लता का आधार विशेष व्यक्ति की पर्सनैलिटी का रहता है | जैसी पर्सनैलिटी वाला आयेगा वैसा आवाज़ बुलन्द होगा | जब भी आप प्रोग्राम बनाते हो तो विशेष आवाज़ बुलन्द करने का लक्ष्य रखकर प्लैन बनाते हो | विशेष पर्सनैलिटी आवे जिससे स्वतः आवाज़ बुलन्द हो जाए | तो पर्सनैलिटी साधन बन जाता है | लौकिक पर्सनैलिटी वाले बाहर की आवाज़ फ़ैलाने के निमित्त बनते हैं, वैसे आप विशेष निमित्त बने हुए सेवाधारियों की वर्तमान समय सेवा में पर्सनैलिटी चाहिए | पर्सनैलिटी मनुष्य को अपने तरफ़ आकर्षित करती है | तो वर्तमान समय की पर्सनैलिटी कौन सी चाहिए? प्यूरिटी ही पर्सनैलिटी है | जितनी-जितनी प्यूरिटी होगी तो प्यूरिटी की पर्सनैलिटी स्वयं ही सर्व के सिर झुकायेगी | जैसे ड्रामा के अन्दर सन्यासियों के आगे भी सिर झुकाते हैं, प्यूरिटी की पर्सनैलिटी के कारण | प्यूरिटी की पर्सनैलिटी बड़े-बड़े लोगों के भी सिर झुकाती है | तो वर्तमान समय प्यूरिटी की पर्सनैलिटी के आधार पर सिर झुकेंगे | जैसे अगरबत्ती की खुशबू खैंचती है ना, वैसे आने से ही प्यूरिटी की खुशबू अनुभव हो | जहाँ देखें वहाँ प्यूरिटी ही प्यूरिटी नज़र आये | वर्तमान समय इसी का ही अनुभव करना चाहते हैं | जो चारों और नज़र नहीं आती | चाहे कितनी भी महान आत्मा हो, नाम है लेकिन प्यूरिटी के वायब्रेशन्स नहीं हैं क्योंकि वह सिद्धि के नाम, मान, शान को स्वीकार कर लेते हैं इसलिए पुरिर्टी का वायब्रेशन कहीं नहीं आता है | अल्पकाल की प्राप्ति की आकर्षण होती है लेकिन प्यूरिटी की आकर्षण नहीं होती है | अभी प्रैक्टिकल जीवन में यह प्यूरिटी की पर्सनैलिटी चाहिए, जो पर्सनैलिटी स्वयं ही आकर्षित करे | कहीं प्राइम मिनिस्टर आता है, पर्सनैलिटी है तो सब स्वतः ही भागते हैं ना | तो यह पर्सनैलिटी सबसे नम्बरवन है | अभी यह प्लैन बनाना | धर्मात्माओं को आकर्षित करने वाली भी यह पर्सनैलिटी है | वह अनुभव करें कि जो हमारे पास चीज़ नहीं है वह यहाँ है | नहीं तो समझते हैं – हाँ कन्यायें मातायें हैं, काम अच्छा कर रही हैं, इसी भावना से देखते हैं लेकिन पर्सनैलिटी समझकर सामने आयें कि यह विश्व की बड़े से बड़ी पर्सनैलिटी हैं | समझा कुछ और था, देखा कुछ और – ऐसे अनुभव करें | जो हमारी बुद्धि में बात नहीं है वह इन्हों के प्रैक्टिकल जीवन में है | यह है महारथी को नीचे गिराना | जैसे चींटी हाथी को भी गिरा देती है ना | तो इस पर्सनैलिटी में झुक जायें | अभी स्वयं का स्वरूप सर्व प्राप्तियों के चुम्बक का स्वरूप चाहिए, जो स्वयं ही सब आकर्षित हों | जहाँ देखें, जिसको देखें प्राप्ति का अनुभव हो | तो प्राप्ति ही चुम्बक है और सर्व प्राप्ति स्वरूप ही चुम्बक है |
अभी मेहनत, एनर्जी और मनी भी लगानी पड़ती है फिर यह दोनों का काम यह प्यूरिटी की पर्सनैलिटी ही करेगी | अभी वायब्रेशन नहीं बदले हैं | अभी भी नज़र से देखते हैं | अभी अपने वायब्रेशन द्वारा जो हैं जैसे हैं वैसे नज़र से देखने का वायब्रेशन फैलाओ और अपनी वरदानी, महादानी वृत्ति से वायब्रेशन और वायुमण्डल को परिवर्तन करो | अभी तक बिचारे तड़पते हुए ढूँढ़ते रहते हैं कि कहाँ जावें | प्यासी आत्माओं को अभी सागर वा नदियों के सही स्थान का परिचय नहीं मिला है इसलिए ढूँढ़ते ज़्यादा हैं | तो अपने लाईट हाउस स्वरूप से मंज़िल का रास्ता दिखाओ | अच्छा | 
जानकी दादी से :-
लन्दन में भी धर्मात्माओं का चान्स है | जो भी चान्स लो उसमें रूहानियत की आकर्षण का दृश्य ज़रूर हो | जैसे तीर्थ स्थान पर शान्ति कुण्ड या गति-सद्गति के कुण्ड बनाते हैं ना | तो ऐसे समझें कि सर्व प्राप्ति का कुण्ड यही है | न्यारापन अनुभव हो, साधारणता हो लेकिन शक्तिशाली हो और यह सत्यता महसूस हो | ऐसी स्टेज लेते-लेते विश्व का राज्य भी ले लेंगे | अभी तो सिर्फ़ प्रोग्राम का निमन्त्रण देते हैं फिर जैसे जड़ चित्रों को आँखों और सिर पर उठाते हैं वैसे आप सबको उस नज़र से कहाँ बिठावें, क्या करें कुछ सूझेगा नहीं | महिमा में क्या बोलें, यह सूझेगा नहीं | संगठन करना अच्छा है, संगठन से भी उमंग-उल्लास बढ़ता है | अच्छा | 
अव्यक्त महावाक्य – त्यागी, महात्यागी और सर्वंश त्यागी बनो
आप ब्राह्मण बेहद के सन्यासी वा त्यागी हो | आप त्याग मूर्तियों ने अपने इस पुराने घर अर्थात् पुराने शरीर, पुराने देह का भान त्याग किया है, संकल्प किया कि बुद्धि द्वारा फिर से कभी इस पुराने घर में आकर्षित नहीं होंगे इसलिए तो कहते हो देह सहित देह के सम्बन्ध का त्याग | त्याग का पहला क़दम है – देह के भान का त्याग अर्थात् किनारा | तो इस देह रूपी घर में जो भी भिन्न-भिन्न कर्मेन्द्रियाँ हैं उनकी आकर्षण का भी त्याग | कोई भी कर्मेन्द्रिय अपने तरफ़ आकर्षित न करे | इस पुरानी देह को बापदादा द्वारा मिली हुई अमानत समझो | यह मेरी देह नहीं लेकिन सेवा अर्थ अमानत है | जैसे मेहमान बन देह में रह रहे हैं | तो मेरे-पन का त्याग का मेहमान समझ इसे महान कार्य में लगाओ | जब देह के भान का त्याग हो जाता है तो दूसरा है देह के सर्व सम्बन्ध का त्याग | जब देह का भान छूट जाता है तो आत्मा, देही व मालिक बन मन और तन से सदा हर्षित रहती है | कभी मन से व चेहरे से उदास नहीं हो सकते | उदास होना यह दास पन की निशानी है | देह के साथ लौकिक तथा अलौकिक सम्बन्ध में महात्यागी अर्थात् नष्टोमोहा बनो | नष्टोमोहा की निशानी है – न किसी में घृणा होगी, न किसी में लगाव वा झुकाव होगा | अगर किसी से घृणा है तो उस आत्मा के अवगुण वा आपके दिलपसन्द न करने वाले कर्म बार-बार आपकी बुद्धि को विचलित करेंगे | याद बाप को करेंगे और समाने आयेगी वह आत्मा | लगाव वाली आत्मा गुण और स्नेह के रूप में बुद्धि को आकर्षित करती है और घृणा वाली आत्मा स्वार्थ की पूर्ति न होने के कारण स्वार्थ बुद्धि को विचलित करती है | तो इस कर्म बन्धन का भी त्याग करो | ब्राह्मण बनना अर्थात् विकल्पों और विकर्मों का त्याग करना | ब्राह्मण साधारण कर्म भी नहीं कर सकते, विकर्म की तो बात ही नहीं | तो कर्मेन्द्रियों का जो कर्म के साथ सम्बन्ध है – उस कर्म के हिसाब से विकर्म का त्याग | विकर्म के त्याग बिना सुकर्मी वा विकर्माजीत नहीं बन सकते | इसलिए व्यर्थ का भी त्याग क्योंकि व्यर्थ बोल भी समर्थ बनने नहीं देंगे | अगर विकर्म नहीं किया लेकिन व्यर्थ कर्म भी किया तो वर्तमान और भविष्य जमा नहीं होगा |
त्याग का अर्थ है जिस चीज़ को वा बात को छोड़ दिया, अपने-पन से किनारा कर लिया, तो उससे अपना अधिकार समाप्त हुआ | जिसके प्रति त्याग किया वह वस्तु उसकी हो गई | उसका फिर संकल्प भी नहीं कर सकते, क्योंकि त्याग की हुई बात, संकल्प द्वारा प्रतिज्ञा की हुई बात फिर से वापिस नहीं ले सकते हैं | अच्छा |

वरदान:-   
फ़रिश्ते स्वरूप की स्मृति द्वारा बाप की छत्रछाया का अनुभव करने वाले विघ्न जीत भव !   
 
अमृतवेले उठते ही स्मृति में लाओ कि मैं फ़रिश्ता हूँ | ब्रह्मा बाप को यही दिलपसन्द गिफ्ट दो तो रोज़ अमृतवेले बापदादा आपको अपनी बाहों में समा लेंगे, अनुभव करेंगे कि बाबा की बाहों में, अतीन्द्रिय सुख में झूल रहे हैं | जो फ़रिश्ते स्वरूप की स्मृति में रहेंगे उनके सामने कोई परिस्थिति वा विघ्न आयेगा भी तो बाप उनके लिए छत्रछाया बन जायेंगे | तो बाप की छत्रछाया वा प्यार का अनुभव करते विघ्न जीत बनो |

स्लोगन:- 
सुख स्वरूप आत्मा स्व-स्थिति से परिस्थिति पर सहज विजय प्राप्त कर लेती है |     
 
ओम् शान्ति |

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