Essence of Murli (H&E): July 22, 2014:
प्रश्न:- सबसे ऊंची मज़िल कौन-सी है, उसकी प्राप्ति कैसे होगी?
उत्तर:- सम्पूर्ण सिविलाइज्ड बनना, यही ऊंच मंजिल है । कर्मेन्द्रियों में ज़रा भी चलायमानी न आये तब सम्पूर्ण सिविलाइज्ड बनें । जब ऐसी अवस्था हो तब विश्व की बादशाही मिल सकती है । गायन भी है चढ़े तो चाखे.... अर्थात् राजाओं का राजा बने, नहीं तो प्रजा । अब जांच करो मेरी वृत्ति कैसी है? कोई भी भूल तो नहीं होती है?
स्लोगन:- रॉयल वह हैं जो सदा ज्ञान रत्नों से खेलते, पत्थरों से नहीं ।
Essence:
Sweet children, it is now the time to have the stage of deep silence,
that is, the stage of being bodiless. Practice staying in this stage.
Question: What is the highest destination of all and how do you attain it?
Answer:
To become completely civilized is the highest destination. Only when
there isn't the slightest mischief in your physical organs can you
become completely civilized. When you have such a stage, you can receive
the sovereignty of the world. It is remembered: Those who ascend taste
the sweetness of heaven, that is, they can become the kings of kings.
Otherwise, they become subjects. Now, check: What is my attitude like?
Am I making any mistakes?
Essence for Dharna:
1.
In order to look after yourself, check at every step: a) What was the
attitude of me, the soul, like today? b) Were my eyes civil? c) What
sins did I commit under the influence of body consciousness?
2.
Inculcate the imperishable wealth of knowledge into your intellect and
then donate it. Definitely fill the sword of knowledge with the power of
remembrance.
Blessing: May you die alive and finish being ordinary by making the sanskars of specialty your natural nature.
Whatever
nature you have works automatically. You don’t have to think about it
or do anything, for it happens automatically. Similarly, the nature of
the Brahmins who have died alive from birth is of the specialty of being
a special soul. Let these sanskars of specialty become your natural
nature and let it emerge in each one’s heart: This is my nature. Being
ordinary is a nature of the past, not of the present because you have
now taken a new birth. The nature of this new birth is of specialty, not
of being ordinary.
सार:- “मीठे बच्चे- सुन्न अवस्था अर्थात् अशरीरी बनने का अभी समय है, इसी अवस्था में रहने का अभ्यास करो''
प्रश्न:- सबसे ऊंची मज़िल कौन-सी है, उसकी प्राप्ति कैसे होगी?
उत्तर:- सम्पूर्ण सिविलाइज्ड बनना, यही ऊंच मंजिल है । कर्मेन्द्रियों में ज़रा भी चलायमानी न आये तब सम्पूर्ण सिविलाइज्ड बनें । जब ऐसी अवस्था हो तब विश्व की बादशाही मिल सकती है । गायन भी है चढ़े तो चाखे.... अर्थात् राजाओं का राजा बने, नहीं तो प्रजा । अब जांच करो मेरी वृत्ति कैसी है? कोई भी भूल तो नहीं होती है?
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. अपनी सम्भाल करने के लिए कदम-कदम पर जाँच करनी है कि:
(अ) आज मुझ आत्मा की वृत्ति कैसी रही?
(ब) आँखें सिविल रहीं?
(स) देह-अभिमान वश कौन-सा पाप हुआ?
2. बुद्धि में अविनाशी ज्ञान धन धारण कर फिर दान करना है । ज्ञान तलवार में याद का जौहर जरूर भरना है ।
वरदान:- विशेषता के संस्कारों को नेचुरल नेचर बनाए साधारणता को समाप्त करने वाले मरजीवा भव !
जो नेचर होती है वह स्वत:अपना काम करती है, सोचना, बनाना या करना नहीं पड़ता है लेकिन स्वत:हो जाता है । ऐसे मरजीवा जन्मधारी ब्राह्मणों की नेचर ही है विशेष आत्मा के विशेषता की । यह विशेषता के संस्कार नेचुरल नेचर बन जाएं और हर एक के दिल से निकले कि मेरी यह नेचर है । साधारणता पास्ट की नेचर है, अभी की नहीं क्योंकि नया जन्म ले लिया । तो नये जन्म की नेचर विशेषता है साधारणता नहीं ।
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