Wednesday, July 02, 2014

03-07-14 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

03-07-14  प्रातः मुरली    ओम् शान्ति   “बापदादा”    मधुबन
 


मीठे बच्चे बाजोली का खेल याद करो, इस खेल में सारे चक्र का, ब्रह्मा और ब्राह्मणों का राज समाया हुआ है”   



प्रश्न:- 
संगमयुग पर बाप से कौन-सा वर्सा सभी बच्चों को प्राप्त होता है?

उत्तर:-
ईश्वरीय बुद्धि का । ईश्वर में जो गुण हैं वह हमें वर्से में देते हैं । हमारी बुद्धि हीरे जैसी पारस बन रही है । अभी हम ब्राह्मण बन बाप से बहुत भारी खजाना ले रहे हैं, सर्व गुणों से अपनी झोली भर रहे हैं ।

ओम् शान्ति |
आज है सतगुरूवार, बृहस्पतिवार । दिनो में भी कोई उत्तम दिन होता है । बृहसपति का दिन ऊंच कहते हैं ना । बृहस्पति अर्थात् वृक्षपति डे पर स्कूल वा कॉलेज में बैठते हैं । अभी तुम बच्चे जानते हो कि इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप है बाप और वह अकाल मूर्त है । अकाल मूर्त बाप के अकालमूर्त बच्चे । कितना सहज है । मुश्किलात सिर्फ है याद की । याद से ही विकर्म विनाश होते हैं । तुम पतित से पावन होते हो । बाप समझाते हैं तुम बच्चों पर अविनाशी बेहद की दशा है । एक होती है हद की दशा और दूसरी होती है बेहद की । बाप है वृक्षपति । वृक्ष से पहले-पहले ब्राह्मण निकले । बाप कहते हैं मैं वृक्षपति सत-चित- आनन्द स्वरूप हूँ । फिर महिमा गाते हैं ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर. ......। तुम जानते हो सतयुग में देवी-देवतायें सब शान्ति के, पवित्रता के सागर हैं । भारत सुख-शान्ति-पवित्रता का सागर था, उसको कहा जाता है विश्व में शान्ति । तुम हो ब्राह्मण । वास्तव में तुम भी अकालमूर्त हो, हरेक आत्मा अपने तख्त पर विराजमान है । यह सब चैतन्य अकाल तख्त हैंभ्रकुटी के बीच अकालमूर्त आत्मा विराजमान है, जिसको सितारा भी कहा जाता है । वृक्षपति बीजरूप को ज्ञान का सागर कहते हैं, तो जरूर उनको आना पड़े । पहले-पहले चाहिए ब्राह्मण, प्रजापिता ब्रह्मा के एडाप्टेड चिल्ड्रेन । तो जरूर मम्मा भी चाहिए । तुम बच्चों को बहुत अच्छी रीति समझाते हैं । जैसे बाजोली खेलते हैं ना । उसका भी अर्थ समझाया है । बीजरूप शिवबाबा है फिर है ब्रह्मा । ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण रचे गये । इस समय तुम कहेंगे कि हम सो ब्राह्मण सो देवता । पहले हम शूद्र बुद्धि थे । अब फिर से बाप पुरूषोत्तम बुद्धि बनाते हैं । हीरे जैसी पारस बुद्धि बनाते हैं । यह बाजोली का राज भी समझाते हैं । शिवबाबा भी है, प्रजापिता ब्रह्मा और एडाप्टेड बच्चे सामने बैठे हैं । अभी तुम कितने विशालबुद्धि बने हो । ब्राह्मण सो फिर देवता बनेंगे । अभी तुम ईश्वरीय बुद्धि बनते हो जो ईश्वर में गुण हैं वह तुमको वर्से में मिलते हैं । समझाते समय यह भूलो मत । बाप ज्ञान का सागर है नम्बरवन । उनको ज्ञानेश्वर कहा जाता है । ज्ञान सुनाने वाला ईश्वर । ज्ञान से होती है सद्गति । पतितों को पावन बनाते हैं ज्ञान और योग से । भारत का प्राचीन राजयोग मशहूर है क्योंकि आइरन एज से गोल्डन एज बना था । यह तो समझाया है कि योग दो प्रकार का है-वह है हठयोग और यह है राजयोग । वह हद का, यह है बेहद का । वह हैं हद के सन्यासी, तुम हो बेहद के सन्यासी । वह घरबार छोडते हैं, तुम सारी दुनिया का सन्यास करते हो । अभी तुम हो प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान, यह छोटा-सा नया झाड़ है । तुम जानते हो पुराने से नये बन रहे हैं । सैपलिंग लग रहा है । बरोबर हम बाजोली खेलते हैं । हम सो ब्राह्मण फिर हम सो देवता । ' सो' अक्षर जरूर लगाना है । सिर्फ हम नहीं । हम सो शूद्र थे, हम सो ब्राह्मण बनें........ यह बाजोली बिल्कुल भूलनी नहीं चाहिए । यह तो बिल्कुल सहज है । छोटे-छोटे बच्चे भी समझा सकते हैं, हम 84 जन्म कैसे लेते हैं, सीढी कैसे उतरे हैं फिर ब्राह्मण बन चढते हैं । ब्राह्मण से देवता बनते हैं 
अभी ब्राह्मण बन बहुत भारी खजाना ले रहे हैं । झोली भर रहे हैंज्ञान सागर कोई शंकर को नहीं कहा जाता है । वह झोली नहीं भरते हैं । यह तो चित्रकारों ने बना दिया है । शंकर की बात है नहीं । यह विष्णु और ब्रह्मा यहाँ के हैं । लक्ष्मी-नारायण का युगल रूप ऊपर में दिखाया है । यह है इनका (ब्रह्मा का) अन्तिम जन्म । पहले-पहले यह विष्णु था, फिर 84 जन्मों के बाद यह (ब्रह्मा) बना है । इनका नाम मैंने ब्रह्मा रखा है । सबका नाम बदल दिया क्योंकि सन्यास किया ना । शूद्र से ब्राह्मण बनें तो नाम बदल लिया । बाप ने बहुत रमणीक नाम रखे हैं । तो अब तुम समझते हो, देखते हो वृक्षपति इस रथ पर बैठा है । उनका यह अकालतख्त है, इनका भी है । इस तख्त का वह लोन लेते हैं । उनको अपना तख्त तो मिलता नहीं । कहते हैं मैं इस रथ में विराजमान होता हूँ, पहचान देता हूँ । मैं तुम्हारा बाप हूँ सिर्फ जन्म-मरण में नहीं आता हूँ, तुम आते हो । अगर मैं भी आऊं तो तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान कौन बनायेंगे? बनाने वाला तो चाहिए ना इसलिए ही मेरा ऐसा पार्ट है । मुझे बुलाते भी हो हे पतित-पावन आओ । निराकार शिवबाबा को आत्मायें पुकारती हैं क्योंकि आत्माओं को दुःख है ।
भारतवासी आत्मायें खास बुलाती हैं कि आकर पतितों को पावन बनाओ । सतयुग में तुम बहुत पवित्र सुखी थे, कभी भी पुकारते नहीं थे । तो बाप खुद कहते हैं तुमको सुखी बनाकर मैं फिर वानप्रस्थ में बैठ जाता हूँ । वहाँ मेरी दरकार ही नहीं । भक्ति मार्ग में मेरा पार्ट है फिर मेरा पार्ट आधाकल्प नहीं । यह तो बिल्कुल सहज है । इसमें किसका प्रश्र उठ नहीं सकता । गायन भी है दुःख में सिमरण सब करें.......... । सतयुग-त्रेता में भक्ति मार्ग होता ही नहीं । ज्ञान मार्ग भी नहीं कहेंगे । ज्ञान तो मिलता ही है संगम पर, जिससे तुम 21 जन्म प्रालब्ध पाते हो । नम्बरवार पास होते हैं । फेल भी होते हैं | तुम्हारी यह युद्ध चल रही है । तुम देखते हो जिस रथ पर बाप विराजमान है, वह तो जीत लेते हैं । फिर अनन्य बच्चे भी जीत पा लेते हैं जैसे कुमारका है, फलानी है, जरूर जीत पायेगी । बहुतों को आपसमान बनाती हैं । तो बच्चों को यह बुद्धि में रखना है-यह बाजोली है । छोटे बच्चे भी यह समझ सकते हैं इसलिए बाबा कहते हैं बच्चों को भी सिखलाओ । उनको भी बाप से वर्सा लेने का हक है । जास्ती बात तो है नहींथोड़ा भी इस ज्ञान को जानने से ज्ञान का विनाश नहीं होता । स्वर्ग में तो जरूर आ जायेंगे । जैसे क्राइस्ट का स्थापन किया हुआ क्रिस्चियन धर्म कितना बड़ा है । यह देवी-देवता तो सबसे पहले और बड़ा धर्म है । जो दो युग चलता है तो जरूर उनकी संख्या भी बड़ी होनी चाहिए । परन्तु हिन्दू कहला दिया है । कहते भी हैं 33 करोड देवतायें । फिर हिन्दू क्यों कहते हैं । माया ने बुद्धि को बिल्कुल ही मार डाला है तो यह हाल हो गया है । बाप कहते हैं माया को जीतना कोई कठिन बात नहीं है । तुम हर कल्प जीत पाते हो । सेना हो ना । बाप मिला है इन विकारों रूपी रावण पर जीत पहनाने लिए । 
तुम पर अभी बृहस्पति की दशा है । भारत पर ही दशा आती है । अभी सभी पर राहू की दशा है । बाप वृक्षपति आते हैं तो जरूर भारत पर बृहस्पति की दशा बैठेगी । इसमें सब कुछ आ जाता है । तुम बच्चे जानते हो हमको निरोगी काया मिलती है, वहाँ मृत्यु का नाम नहीं होता । अमरलोक है ना । ऐसे नहीं कहेंगे कि फलाना मरा । मरने का नाम नहीं, एक शरीर छोड़ दूसरा ले लेते हैं । शरीर लेने और छोड़ने पर खुशी ही रहती है । राम का नाम नहीं । तुम पर अभी बृहसपति की दशा है । सब पर तो बृहसपति की दशा हो न सके । स्कूल में भी कोई पास होते हैं कोई नापास होते हैं । यह भी पाठशाला है । तुम कहेंगे हम राजयोग सीखते हैं, सिखलाने वाला कौन है? बेहद का बाप । तो कितनी खुशी होनी चाहिए, इसमें कोई और बात नहीं । पवित्रता की है मुख्य बात । लिखा हुआ भी है-हे बच्चों। देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ मामेकम् याद करो । यह गीता के अक्षर हैं । यह गीता एपीसोड चल रहा है । उसमें भी मनुष्यों ने अगड़म-बगड़म कर दिया है । आटे में नमक कुछ है । बात कितनी सहज है, जो बच्चा भी समझ जाए । फिर भी भूलते क्यो हो? भक्ति मार्ग में भी कहते थे बाबा आप आयेंगे तो हम आपके ही बनेंगे । दूसरा न कोई । हम आपके बन आपसे पूरा वर्सा लेंगे । बाप का बनते ही हैं वर्सा लेने लिए । एडाप्ट होते हैं, जानते हैं बाप से हमको क्या मिलेगा । तुम भी एडाप्ट हुए हो । जानते हो हम बाप से विश्व की बादशाही, बेहद का वर्सा लेंगे । और कोई में ममत्व नहीं रखेंगे । समझो कोई का लौकिक बाप भी है, उनके पास क्या होगा । करके लाख डेढ़ होगा । यह बेहद का बाप तुमको बेहद का वर्सा देते हैं 
तुम बच्चे आधाकल्प झूठी कथायें सुनते आये हो । अब सच्ची कथा बाप से सुनते हो । तो ऐसे बाप को याद करना चाहिए । ध्यान से सुनना चाहिए । हम सो का अर्थ भी समझाना है । वह तो कह देते आत्मा सो परमात्मा । यह 84 जन्मों की कहानी तो कोई बता न सके । बाप के लिए कहते हैं कुत्ते-बिल्ली सबमें है । बाप की ग्लानि करते हैं ना । यह भी ड्रामा में नूँध है । कोई पर दोष नहीं रखते हैंड्रामा ही ऐसा बना हुआ है । तुमको जो ज्ञान से देवता बनाते हैं तुम फिर उनको ही गालियाँ देने लग पड़ते हो । तुम ऐसे बाजोली खेलते हो । यह ड्रामा भी बना हुआ है । मैं फिर आकर तुम पर भी उपकार करता हूँ । जानता हूँ तुम्हारा भी दोष नहीं है, यह खेल है । कहानी तुमको समझाता हूँ, यह है सच्ची-सच्ची कथा जिससे तुम देवता बनते हो । भक्ति मार्ग में फिर ढेर कथायें बना दी हैं । एम आब्जेक्ट कुछ भी नहीं है । वह सब हैं गिरने के लिए । उस पाठशाला में विद्या पढ़ाते हैं फिर भी शरीर निर्वाह लिए एम है । पण्डित लोग अपने शरीर निर्वाह लिए बैठ कथा सुनाते हैं । लोग उनके आगे पैसे रखते जाते हैं, प्राप्ति कुछ भी नहीं | तुमको तो अभी ज्ञान रत्न मिलते हैं, जिससे तुम नई दुनिया के मालिक बनते हो । वहां हर चीज नई मिलेगी । नई दुनिया में सब कुछ नया होगा । हीरे जवाहर आदि सब नये होंगे । अब बाप कहते हैं और सब बातें तुम छोड़ बाजोली याद करो । फकीर लोग भी बाजोली खेलते तीर्थों पर जाते हैं । कोई पैदल भी जाते हैं । अभी तो मोटरें एरोप्लेन भी निकल पड़े हैं । गरीब तो उनमें जा न सके । कोई बहुत श्रद्धा वाले होते हैं तो पैदल भी चले जाते हैं । दिन-प्रतिदिन साइंस से बहुत सुख मिलता जाता है । यह है अल्पकाल का सुख, गिरते हैं तो कितना नुकसान हो जाता है । इन चीजों में सुख है अल्पकाल के लिए । बाकी फाइनल मौत भरा हुआ है । वह है साइन्स । तुम्हारी है साइलेन्स । बाप को याद करने से सब रोग खत्म हो जाते हैं, निरोगी बन जाते हैं । अभी तुम समझते हो सतयुग में एवरहेल्दी थे । यह  84  का चक्र फिरता ही रहता है । बाप एक ही बार आकर समझाते हैं तुमने मेरी ग्लानि की है, अपने को चमाट मारी है । ग्लानि करते-करते तुम शूद्र बुद्धि बन पड़े हो । सिक्ख लोग भी कहते हैं जप साहेब तो सुख मिले अर्थात् मनमनाभव । अक्षर ही दो हैं, बाकी जास्ती माथा मारने की तो दरकार ही नहीं है । यह भी बाप आकर समझाते हैं । अभी तुम समझते हो साहेब को याद करने से तुमको 21 जन्म का सुख मिलता है । वह भी उसका रास्ता बताते हैं । परन्तु पूरा रास्ता तो जानते ही नहीं । सिमर-सिमर सुख पाओ । तुम बच्चे जानते हो बरोबर सतयुग में बीमारी आदि दु :ख की कोई बात भी नहीं होती । यह तो कॉमन बात है । उसको सतयुग गोल्डन एज कहा जाता है, इसको कलियुग आइरन एज कहा जाता है । सृष्टि का चक्र फिरता रहता है । समझानी कितनी अच्छी है । बाजोली है, अभी तुम ब्राह्मण हो फिर देवता बनेंगे । यह बातें तुम भूल जाते हो । बाजोली याद हो तो यह ज्ञान सारा याद रहे । ऐसे बाप को याद कर रात को सो जाना चाहिए । फिर भी कहते हैं बाबा भूल जाते हैं । माया घड़ी-घडी भुला देती है । लड़ाई है तुम्हारी माया के साथ । फिर आधाकल्प तुम उन पर राज्य करते हो । बात तो सहज बताते हैं । नाम है ही सहज ज्ञान, सहज याद । बाप को सिर्फ याद करो, क्या तकलीफ देते हैं । भक्ति मार्ग में तो तुमने बहुत तकलीफ ली है । दीदार के लिए गला काटने को तैयार हो जाते हैं, काशी कलवट खाते हैं । हाँ, जो निश्चयबुद्धि होकर करते हैं उनके फिर विकर्म विनाश होते हैं । फिर नयेसिर शुरू होगा हिसाब- किताब । बाकी मेरे पास नहीं आते हैंमेरी याद से विकर्म विनाश होते हैं, न कि जीवघात से । मेरे पास तो कोई आते नहीं । कितनी सहज बात है । यह बाजोली तो बूढ़ों को भी याद रहनी चाहिए, बच्चों को भी याद रहनी चाहिए । अच्छा
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-  
1. वृक्षपति बाप से सुख-शान्ति-पवित्रता का वर्सा लेने के लिए अपने आपको अकालमूर्त आत्मा  समझ बाप को याद करना है । ईश्वरीय बुद्धि बनानी है । 
2. बाप से सच्ची कथा सुनकर दूसरो को सुनानी है । मायाजीत बनने के लिए आपसमान बनाने की सेवा करनी है, बुद्धि में रहे हम कल्प-कल्प के विजयी हैं, बाप हमारे साथ है |

वरदान:-
हर श्रेष्ठ संकल्प को कर्म में लाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव !   

मास्टर सर्वशक्तिमान माना संकल्प और कर्म समान हो । अगर संकल्प बहुत श्रेष्ठ हो और कर्म संकल्प प्रमाण न हो तो मास्टर सर्वशक्तिमान नहीं कहेंगे । तो चेक करो जो श्रेष्ठ संकल्प करते हैं वो कर्म तक आते हैं या नहीं । मास्टर सर्वशक्तिमान की निशानी है कि जो शक्ति जिस समय आवश्यक हो वो शक्ति कार्य में आये । स्थूल और सूक्ष्म सब शक्तियां इतना कन्ट्रोल संकल्प में हो जो जिस समय जिस शक्ति की आवश्यकता हो उसे काम में लगा सके ।

स्लोगन:- 
ज्ञानी तू आत्मा बच्चों में क्रोध है तो इससे बाप के नाम की ग्लानी होती है ।  





ओम् शान्ति |

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