Friday, October 02, 2015

Today Hindi & English Murli - 03/10/2015

03-10-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - संगमयुग पर ही तुम्हें आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करनी
           पड़ती सतयुग अथवा कलियुग में यह मेहनत होती नहीं"   
प्रश्न:
श्रीकृष्ण का नाम उनके माँ बाप से भी अधिक बाला है, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि श्रीकृष्ण से पहले जिनका भी जन्म होता है वो जन्म योगबल 
से नहीं होता। कृष्ण के माँ बाप ने कोई योगबल से जन्म नहीं लिया है। 
2- पूरी कर्मातीत अवस्था वाले राधे-कृष्ण ही हैं, वही सद्गति को पाते हैं। 
जब सब पाप आत्मायें खत्म हो जाती हैं तब गुलगुल (पावन) नई दुनिया में 
श्रीकृष्ण का जन्म होता है, उसे ही वैकुण्ठ कहा जाता है। 3- संगम पर श्रीकृष्ण 
की आत्मा ने, सबसे अधिक पुरूषार्थ किया है इसलिए उनका नाम बाला है।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। 5 हज़ार वर्ष के बाद एक 
ही बार बच्चों को आकर पढ़ाते हैं, पुकारते भी हैं कि हम पतितों को आकर पावन 
बनाओ। तो सिद्ध होता है कि यह पतित दुनिया है। नई दुनिया, पावन दुनिया थी। 
नया मकान खूबसूरत होता है। पुराना जैसे टूटा फूटा हो जाता है। बरसात में गिर 
पड़ता है। अभी तुम बच्चे जानते हो बाप आया है नई दुनिया बनाने। अभी पढ़ा रहे हैं। 
फिर 5 हज़ार वर्ष के बाद पढ़ायेंगे। ऐसे कभी कोई साधू-सन्त आदि अपने फालोअर्स 
को नहीं पढ़ायेंगे। उनको यह पता ही नहीं है। न खेल का पता है क्योंकि निवृत्ति 
मार्ग वाले हैं। बाप बिगर कोई भी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझा न सके। 
आत्म-अभिमानी बनने में ही बच्चों को मेहनत होती है क्योंकि आधाकल्प में तुम 
कभी आत्म-अभिमानी बने नहीं हो। अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। 
ऐसे नहीं कि आत्मा सो परमात्मा। नहीं, अपने को आत्मा समझ परमपिता 
परमात्मा शिव को याद करना है। याद की यात्रा मुख्य है, जिससे ही तुम पतित 
से पावन बनते हो। इसमें कोई स्थूल बात नहीं। कोई नाक कान आदि नहीं बन्द 
करना है। मूल बात है - अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना। तुम 
आधाकल्प से हिरे हुए हो - देह-अभिमान में रहने के। पहले अपने को आत्मा 
समझेंगे तब बाप को याद कर सकेंगे। भक्ति मार्ग में भी बाबा-बाबा कहते आते हैं। 
बच्चे जानते हैं सतयुग में एक ही लौकिक बाप है। वहाँ पारलौकिक बाप को याद 
नहीं करते हैं क्योंकि सुख है। भक्ति मार्ग में फिर दो बाप बन जाते हैं। लौकिक 
और पारलौकिक। दु:ख में सब पारलौकिक बाप को याद करते हैं। सतयुग में 
भक्ति होती नहीं। वहाँ तो है ही ज्ञान की प्रालब्ध। ऐसे नहीं कि ज्ञान रहता है। 
इस समय के ज्ञान की प्रालब्ध मिलती है। बाप तो एक ही बार आते हैं। आधाकल्प 
बेहद के बाप का, सुख का वर्सा रहता है। फिर लौकिक बाप से अल्पकाल का 
वर्सा मिलता है। यह मनुष्य नहीं समझा सकते। यह है नई बात, 5 हज़ार वर्ष 
में संगमयुग पर एक ही बार बाप आते हैं। जबकि कलियुग अन्त, सतयुग आदि 
का संगम होता है तब ही बाप आते हैं - नई दुनिया फिर से स्थापन करने। नई 
दुनिया में इन लक्ष्मी- नारायण का राज्य था फिर त्रेता में रामराज्य था। बाकी 
देवताओं आदि के जो इतने चित्र बनाये हैं वह सब हैं भक्ति मार्ग की सामग्री। 
बाप कहते हैं इन सबको भूल जाओ। अभी अपने घर को और नई दुनिया को याद करो।

ज्ञान मार्ग है समझ का मार्ग, जिससे तुम 21 जन्म समझदार बन जाते हो। कोई
 
दु:ख नहीं रहता। सतयुग में कभी कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि हमको शान्ति चाहिए। 
कहा जाता है ना - मांगने से मरना भला। बाप तुमको ऐसा साहूकार बना देते हैं 
जो देवताओं को भगवान से कोई चीज़ मांगने की दरकार नहीं रहती। यहाँ तो 
दुआ मांगते हैं ना। पोप आदि आते हैं तो कितने दुआ लेने जाते हैं। पोप कितनों 
की शादियाँ कराते हैं। बाबा तो यह काम नहीं करते। भक्ति मार्ग में जो पास्ट 
हो गया है सो अब हो रहा है सो फिर रिपीट होगा। दिन-प्रतिदिन भारत कितना 
गिरता जाता है। अभी तुम हो संगम पर। बाकी सब हैं कलियुगी मनुष्य। जब 
तक यहाँ न आयें तब तक कुछ भी समझ न सकें कि अभी संगम है वा कलियुग 
है? एक ही घर में बच्चे समझते हैं संगम पर हैं, बाप कहेंगे हम कलियुग में हैं 
तो कितनी तकलीफ हो पड़ती है। खान-पान आदि का भी झंझट हो पड़ता है। तुम 
संगमयुगी हो शुद्ध पवित्र भोजन खाने वाले। देवतायें कभी प्याज़ आदि थोड़ेही खाते 
हैं। इन देवताओं को कहा ही जाता है निर्विकारी। भक्ति मार्ग में सब तमोप्रधान 
बन गये हैं। अब बाप कहते हैं सतोप्रधान बनो। कोई भी ऐसा नहीं है जो समझें 
कि आत्मा पहले सतोप्रधान थी फिर तमोप्रधान बनी है क्योंकि वह तो आत्मा को 
निर्लेप समझते हैं। आत्मा सो परमात्मा है, ऐसे-ऐसे कह देते हैं।

बाप कहते हैं ज्ञान सागर मैं ही हूँ, जो इस देवी-देवता धर्म के होंगे वह सब आकर
 
फिर से अपना वर्सा लेंगे। अभी सैपलिंग लग रही है। तुम समझ जायेंगे - यह 
इतना ऊंच पद पाने लायक नहीं है। घर में जाकर शादियां आदि करते छी-छी 
होते रहते हैं। तो समझाया जाता है ऊंच पद पा नहीं सकते। यह राजाई स्थापन 
हो रही है। बाप कहते हैं - मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ तो प्रजा जरूर 
बनानी पड़े। नहीं तो राज्य कैसे पायेंगे। यह गीता के अक्षर हैं ना - इनको कहा 
ही जाता है गीता का युग। तुम राजयोग सीख रहे हो - जानते हो आदि सनातन 
देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन लग रहा है। सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी दोनों राजाई स्थापन हो 
रही हैं। ब्राह्मण कुल स्थापन हो चुका है। ब्राह्मण ही फिर सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बनते हैं। 
जो अच्छी रीति मेहनत करेंगे वह सूर्यवंशी बनेंगे। और धर्म वाले जो आते हैं वह आते 
ही हैं अपने धर्म की स्थापना करने। पीछे उस धर्म की आत्मायें आती रहती हैं, धर्म 
की वृद्धि होती जाती है। समझो कोई क्रिश्चियन है तो उन्हों का बीजरूप क्राइस्ट 
ठहरा। तुम्हारा बीजरूप कौन है? बाप, क्योंकि बाप ही आकर स्वर्ग की स्थापना 
करते हैं ब्रह्मा द्वारा। ब्रह्मा को ही प्रजापिता कहा जाता है। रचता नहीं कहेंगे। 
इन द्वारा बच्चे एडाप्ट किये जाते हैं। ब्रह्मा को भी तो क्रियेट करते हैं ना। बाप 
आकर प्रवेश कर यह रचते हैं। शिवबाबा कहते हैं तुम मेरे बच्चे हो। ब्रह्मा भी 
कहते हैं तुम मेरे साकारी बच्चे हो। अभी तुम काले छी-छी बन गये हो। अब फिर 
ब्राह्मण बने हो। इस संगम पर ही तुम पुरूषोत्तम देवी-देवता बनने की मेहनत 
करते हो। देवताओं को और शूद्रों को कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती, तुम ब्राह्मणों 
को मेहनत करनी पड़ती है देवता बनने के लिए। बाप आते ही हैं संगम पर। यह है 
बहुत छोटा युग इसलिए इनको लीप युग कहा जाता है। इनको कोई जानते नहीं। 
बाप को भी मेहनत लगती है। ऐसे नहीं कि झट से नई दुनिया बन जाती है। 
तुमको देवता बनने में टाइम लगता है। जो अच्छे कर्म करते हैं तो अच्छे कुल में 
जन्म लेते हैं। अभी तुम नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार गुल-गुल बन रहे हो। आत्मा 
ही बनती है। अभी तुम्हारी आत्मा अच्छे कर्म सीख रही है। आत्मा ही अच्छे वा 
बुरे संस्कार ले जाती है। अभी तुम गुल-गुल (फूल) बन अच्छे घर में जन्म लेते 
रहेंगे। यहाँ जो अच्छा पुरूषार्थ करते हैं, तो जरूर अच्छे कुल में जन्म लेते होंगे। 
नम्बरवार तो हैं ना। जैसे-जैसे कर्म करते हैं ऐसा जन्म लेते हैं। जब बुरे कर्म करने 
वाले बिल्कुल खत्म हो जाते हैं फिर स्वर्ग स्थापन हो जाता है, छांटछूट होकर। 
तमोप्रधान जो भी हैं वह खत्म हो जाते हैं। फिर नये देवताओं का आना शुरू होता 
है। जब भ्रष्टाचारी सब खत्म हो जाते हैं तब कृष्ण का जन्म होता है, तब तक 
बदली सदली होती रहती है। जब कोई छी-छी नहीं रहेगा तब कृष्ण आयेगा, तब 
तक तुम आते जाते रहेंगे। कृष्ण को रिसीव करने वाले माँ बाप भी पहले से चाहिए 
ना। फिर सब अच्छे-अच्छे रहेंगे। बाकी चले जायेंगे, तब ही उसको स्वर्ग कहा जायेगा 
तुम कृष्ण को रिसीव करने वाले रहेंगे। भल तुम्हारा छी-छी जन्म होगा क्योंकि रावण 
राज्य है ना। शुद्ध जन्म तो हो न सके। गुल-गुल (पवित्र) जन्म कृष्ण का ही 
पहले-पहले होता है। उसके बाद नई दुनिया बैकुण्ठ कहा जाता है। कृष्ण बिल्कुल 
गुल-गुल नई दुनिया में आयेंगे। रावण सम्प्रदाय बिल्कुल खत्म हो जायेगी। कृष्ण 
का नाम उनके माँ-बाप से भी बहुत बाला है। कृष्ण के माँ-बाप का नाम इतना 
बाला नहीं है। कृष्ण से पहले जिनका जन्म होता है वो योगबल से जन्म नहीं 
कहेंगे। ऐसे नहीं कृष्ण के माँ- बाप ने योगबल से जन्म लिया है। नहीं, अगर ऐसा 
होता तो उन्हों का भी नाम बाला होता। तो सिद्ध होता है उनके माँ-बाप ने इतना 
पुरूषार्थ नहीं किया है जितना कृष्ण ने किया है। यह सब बातें आगे चल तुम समझते 
जायेंगे। पूरी कर्मातीत अवस्था वाले राधे-कृष्ण ही हैं। वही सद्गति में आते हैं। पाप 
आत्मायें सब खत्म हो जाती हैं तब उन्हों का जन्म होता है फिर कहेंगे पावन दुनिया 
इसलिए कृष्ण का नाम बाला है। माँ-बाप का इतना नहीं। आगे चल तुमको बहुत 
साक्षात्कार होंगे। टाइम तो पड़ा है। तुम किसको भी समझा सकते हो - हम यह 
बनने के लिए पढ़ रहे हैं। विश्व में इनका राज्य अब स्थापन हो रहा है। हमारे लिए 
तो नई दुनिया चाहिए। अभी तुमको दैवी सम्प्रदाय नहीं कहेंगे। तुम हो ब्राह्मण 
सम्प्रदाय। देवता बनने वाले हो। दैवी सम्प्रदाय बन जायेंगे फिर तुम्हारी 
आत्मा और शरीर दोनों स्वच्छ होंगे। अभी तुम संगमयुगी पुरूषोत्तम बनने 
वाले हो। यह सारी मेहनत की बात है। याद से विकर्माजीत बनना है। तुम 
खुद कहते हो याद घड़ी-घड़ी भूल जाती है। बाबा पिकनिक पर बैठते हैं तो 
बाबा को ख्याल रहता है। हम याद में नहीं रहेंगे तो बाबा क्या कहेंगे इसलिए 
बाबा कहते हैं तुम याद में बैठ पिकनिक करो। कर्म करते माशूक को याद करो 
तो विकर्म विनाश होंगे, इसमें ही मेहनत है। याद से आत्मा पवित्र होगी, अविनाशी 
ज्ञान धन भी जमा होगा। फिर अगर अपवित्र बन जाते हैं तो सारा ज्ञान बह जाता 
है। पवित्रता ही मुख्य है। बाप तो अच्छी-अच्छी बात ही समझाते हैं। यह सृष्टि के 
आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान और कोई में भी नहीं है। और जो भी सतसंग आदि हैं 
वह सब हैं भक्ति मार्ग के।

बाबा ने समझाया है - भक्ति वास्तव में प्रवृत्ति मार्ग वालों को ही करनी है।
 
तुम्हारे में तो कितनी ताकत रहती है। घर बैठे तुमको सुख मिल जाता है। 
सर्वशक्तिमान् बाप से तुम इतनी ताकत लेते हो। सन्यासियों में भी पहले 
ताकत थी, जंगलों में रहते थे। अभी तो कितने बड़े-बड़े फ्लैट बनाकर रहते हैं। 
अभी वह ताकत नहीं है। जैसे तुम्हारे में भी पहले सुख की ताकत रहती है। 
फिर गुम हो जाती है। उन्हों में भी पहले शान्ति की ताकत थी अब वह ताकत 
नहीं रही है। आगे तो सच कहते थे कि रचता और रचना को हम नहीं जानते। 
अभी तो अपने को भगवान शिवोहम् कह बैठते हैं। बाप समझाते हैं - इस समय 
सारा झाड़ तमोप्रधान है इसलिए साधुओं आदि का भी उद्धार करने मैं आता हूँ। 
यह दुनिया ही बदलनी है। सब आत्मायें वापिस चली जायेंगी। एक भी नहीं जिसको 
यह पता हो कि हमारी आत्मा में अविनाशी पार्ट भरा हुआ है जो फिर से रिपीट करेंगे। 
आत्मा इतनी छोटी है, इनमें अविनाशी पार्ट भरा है जो कभी विनाश नहीं होता। इसमें 
बुद्धि बड़ी अच्छी पवित्र चाहिए। वह तब होगी जब याद की यात्रा में मस्त रहेंगे। 
मेहनत सिवाए पद थोड़ेही मिलेगा इसलिए गाया जाता है चढ़े तो चाखे....... कहाँ 
ऊंच ते ऊंच राजाओं का राजा डबल सिरताज, कहाँ प्रजा। पढ़ाने वाला तो एक 
ही है। इसमें समझ बड़ी अच्छी चाहिए। बाबा बार-बार समझाते हैं याद की यात्रा है 
मुख्य। मैं तुमको पढ़ाकर विश्व का मालिक बनाता हूँ। तो टीचर गुरू भी होगा। बाप 
तो है ही टीचरों का टीचर, बापों का बाप। यह तो तुम बच्चे जानते हो हमारा बाबा 
बहुत प्यारा है। ऐसे बाप को तो बहुत याद करना है। पढ़ना भी पूरा है। बाप 
को याद नहीं करेंगे तो पाप नष्ट नहीं होंगे। बाप सभी आत्माओं को साथ ले 
जायेंगे। बाकी शरीर सब खत्म हो जायेंगे। आत्मायें अपने-अपने धर्म के सेक्शन 
में जाकर निवास करती हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
 
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बुद्धि को पवित्र बनाने के लिए याद की यात्रा में मस्त रहना है। कर्म करते भी 
एक माशूक याद रहे - तब विकर्माजीत बनेंगे।
2) इस छोटे से युग में मनुष्य से देवता बनने की मेहनत करनी है। अच्छे कर्मों के 
अनुसार अच्छे संस्कारों को धारण कर अच्छे कुल में जाना है। 
वरदान:
एक बाप दूसरा न कोई - इस दृढ़ संकल्प द्वारा अविनाशी, 
अमर भव!   
जो बच्चे यह दृढ़ संकल्प करते हैं कि एक बाप दूसरा न कोई.....उनकी स्थिति स्वत: 
और सहज एकरस हो जाती है। इसी दृढ़ संकल्प से सर्व सम्बन्धों की अविनाशी तार 
जुड़ जाती है और उन्हें सदा अविनाशी भव, अमर भव का वरदान मिल जाता है। दृढ़ 
संकल्प करने से पुरूषार्थ में भी विशेष रूप से लिफ्ट मिलती है। जिनके एक बाप से 
सर्व सम्बन्ध हैं उन्हें सर्व प्राप्तियां स्वत: हो जाती हैं।
स्लोगन:
सोचना-बोलना और करना तीनों को एक समान बनाओ-तब कहेंगे सर्वोत्तम 
पुरुषार्थी।   

03/10/15 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban

Sweet children, it is only at the confluence age that you have to make 
the effort to become soul conscious. You don't have to labour this 
way in the golden or iron ages.   
Question:
Why is the name of Shri Krishna more famous than those of his parents?
Answer:
1. Because none of those who take birth before Shri Krishna are born through the 
power of yoga. Krishna's parents too are not born through the power of yoga. 
2. It is only the Radhe and Krishna souls who attain the full karmateet stage 
and they are the ones who receive total salvation. When sinful souls no longer 
remain, Shri Krishna takes birth in the pure, new, beautiful world which is called Paradise. 
3. The Shri Krishna soul makes the most effort at the confluence age. This is why his name 
is glorified.

Om Shanti
The spiritual Father sits here and explains to you sweetest, spiritual children. Only once, every 5000 years, 
does He come and teach you children. People call out: Come and purify us impure ones. This proves that 
this is the impure world. The new world was the pure world. A new building is beautiful and an old building 
is dilapidated and crumbles; it collapses in the rain. You children know that the Father has now come to 
make the world new. He is now teaching you and will teach you again after 5000 years. None of the sages 
or holy men teach their followers in this way. Because they belong to the path of isolation, they neither 
know this nor do they know about the play. No one except the Father can tell you the secrets of the 
beginning, the middle and the end of the world. It is becoming soul conscious that you children find laborious, 
because you haven't been soul conscious for half the cycle. The Father says: Now consider yourselves to be souls. 
Don't think that souls are the Supreme Soul, no. Consider yourself to be a soul and remember the Supreme 
Father, the Supreme Soul, Shiva. The pilgrimage of remembrance through which you become pure from impure 
is the main thing. There is nothing physical about this. You don't have to close your ears or nose. The main 
thing is to consider yourself to be a soul and remember the Father. You have developed the habit of body 
consciousness for half the cycle. When you first consider yourself to be a soul, you will then be able to 
remember the Father. On the path of devotion too, people have been calling out: Baba, Baba. You children 
know that you only have one father – a physical father – in the golden age. There, no one remembers 
the Father from beyond because they are happy there. Then, on the path of devotion, you have two fathers: 
physical and spiritual. Everyone remembers the Father from beyond at a time of sorrow. There is no devotion 
in the golden age. There, you experience the reward of knowledge. It isn't that you have this knowledge 
there; you simply receive the reward of the knowledge that you study at this time. The Father only comes 
once. For half the cycle you have the inheritance of happiness that you receive from the unlimited Father. 
Then you receive temporary inheritances from your physical fathers. Human beings can't explain this. This 
is something new. The Father only comes once in 5000 years, at the confluence age. When it is the confluence 
of the end of the iron age and the beginning of the golden age, the Father comes to establish the new world 
once again. It was the kingdom of Lakshmi and Narayan in the new world and it was then the kingdom of 
Rama in the silver age. All the pictures of the deities that have been created are the paraphernalia of the 
path of devotion. The Father says: Forget all of that. Now remember your home and the new world. The path 
of knowledge is the path of understanding. On this path you become sensible for 21 births. There is no sorrow 
there. No one in the golden age says that he wants peace. There is a saying, "It is better to die than to ask for 
anything". The Father makes you so wealthy that, as deities you don't need to ask God for anything. Here, 
people ask for blessings. So many people go to receive blessings when the Pope comes. The Pope performs 
a wedding ceremony for so many people. Baba doesn't do those things. Whatever happened in the past 
on the path of devotion is now happening again and will repeat. Day by day, Bharat is falling so much. You 
are now at the confluence age and everyone else is in the iron age. Until they come here, they will not be able 
to understand whether it is now the confluence age or the iron age. In the same family, children might believe 
themselves to be at the confluence age, whereas the father might say that he is in the iron age. Then, 
there is so much difficulty; there is so much complication over food and drink. You, who belong to the 
confluence age, are those who eat pure food. Deities never eat onions etc. Deities are called viceless. Everyone 
on the path of devotion has become tamopradhan. The Father says: Now become satopradhan. No one 
understands that souls are satopradhan at first and that they have now become tamopradhan because they 
consider souls to be immune to the effect of action. They say that each soul is the Supreme Soul. The 
Father says: Only I am the Ocean of Knowledge. Everyone who belongs to this deity religion will 
come and claim their inheritance once again. The sapling is now being planted. You can understand 
when someone is not worthy of claiming a high status. Some return home, get married and continue to 
become dirty. It is then explained that they cannot claim a high status; a kingdom is being established. 
The Father says: I am making you into the kings of kings. Therefore, subjects would surely have to 
be created. How else would you attain a kingdom? These words are in the Gita. This is called the age 
of the Gita. You are studying Raja Yoga. You know that the foundation of the original, eternal, deity religion 
is being laid. The sun dynasty and moon dynasty kingdoms are being established. The Brahmin clan has been 
established and it is Brahmins who will then become part of the sun and moon dynasties. Those who make 
effort very well will become part of the sun dynasty. Other founders of religions simply come to establish 
their own religion. Then, later, the souls of that religion continue to follow them down as their religion 
continues to expand. For instance, the seed of the Christian religion is Christ. Who is your Seed? 
The Father, because He comes and establishes heaven through Brahma. Brahma is called the Father 
of the People (Prajapita). He is not called the Creator. Children are adopted through him. Brahma too 
is created, is he not? The Father comes and enters him and creates him. Shiv Baba says: You are My 
child. Brahma says: You are my corporeal children. You have become dirty and ugly. You have now 
become Brahmins. It is at this confluence age that you make effort to become the most elevated 
deities. Deities and shudras don't have to make this effort. You Brahmins have to make effort in 
order to become deities. The Father only comes at the confluence age. This age is very short which 
is why it is called the leap age. No one knows this. The Father also has to make effort. It isn't that 
the new world is created instantly. It takes time for you to become deities. Those who perform 
good actions take birth in a good home. You are now becoming beautiful, numberwise, according to 
the effort you make. It is souls that become this. You souls are now learning to perform good actions. 
Souls carry their good and bad sanskars with them. You are now becoming beautiful flowers and 
you will then continue to take birth in good homes. Those who make good effort here will definitely take 
birth in good homes. After all, it is numberwise. You take birth according to the actions you perform. 
When there are no longer those who perform bad actions, heaven will be established; the selection 
will have taken place. Everyone who is tamopradhan is destroyed and then the new deities begin to 
come down. After all of the corrupt ones have been destroyed, it is then that Krishna takes birth. Until 
then, there continues to be change. Krishna will come when no one dirty remains. Until then, they will 
continue to come and go. Krishna's parents will be needed in advance to receive him. At that time, 
only good ones will remain; everyone else will have left. Only then will it be called heaven. Only you 
who receive Krishna will remain. Although you will have taken birth through poison because this still 
is Ravan's kingdom, it can't be a pure birth. Only Shri Krishna can take the first pure birth. After that, 
the world is called the new world of Paradise. Krishna will come in the completely beautiful new world. 
Ravan's community will have been completely destroyed. Krishna's name is much more famous than those 
of his parents. The names of Krishna's parents are not that well known. Those who take birth before 
Krishna do not take birth through the power of yoga. It isn't that Krishna's parents take birth through 
the power of yoga; no. If it were like that, their names would also be well known. This proves that 
Krishna's parents did not make as much effort as Shri Krishna did. You will continue to understand 
these things more as you make further progress. Only Radhe and Krishna have the full karmateet 
stage. They are the ones who go into salvation first. They take birth when all the sinful souls no 
longer remain. It is then called the pure world. This is why Krishna's name is well known. His 
parents' names are not well known. As you make further progress, you will have many visions. There 
is still time left. You can explain to anyone: "This is what we are studying to become. Their kingdom is 
now being established in the world. The new world is needed for us." You are not called the deity community 
as yet. You are the Brahmin community; you are going to become deities. When the deity community is created, 
both you, the souls, and your bodies will be pure. At the moment, you are at the confluence age and 
becoming the most elevated ones. All of this is a matter of making effort. You have to conquer 
sinful actions with remembrance. You yourselves say that you repeatedly forget to have remembrance. 
When Baba goes on a picnic, he thinks: What would Baba say if I don't stay in remembrance? This is 
why Baba says: Stay in remembrance even while you are on a picnic. Remember the Beloved while 
performing actions and your sins will be absolved. Effort lies in this. You souls will become pure 
through this remembrance and you will accumulate the imperishable wealth of knowledge. If someone 
then becomes impure, all the knowledge flows away. Purity is the main thing. The Father explains very 
good aspects. No one else has the knowledge of the beginning, the middle and the end of the 
world. All other spiritual gatherings etc. belong to the path of devotion. Baba has explained that, 
in fact, only those who belong to the household path should do devotion. You have so much strength. 
You receive happiness while sitting at home. You receive so much strength from the Almighty Authority 
Father. Sannyasis also used to have that strength when they lived in the forests. Now that they have 
built such big flats for themselves to live in, they no longer have that strength. You originally had the 
strength of happiness, but then it disappears. Similarly, they initially had the power of peace, but they 
don't have it any more. Earlier, they used to tell the truth when they said that they didn't know the 
Creator or creation. Now they call themselves God. They say "Shivohum". The Father explains: At 
this time, the whole tree is tamopradhan and this is why I have come to uplift even the sages and 
holy men. This world has to change. All souls will return home. Not a single soul knows that an imperishable 
part is recorded in each soul and that then has to repeat. Souls are so tiny and the imperishable parts 
that are recorded in them are never destroyed. A very pure intellect is needed to understand this. This 
will only happen when you remain intoxicated on the pilgrimage of remembrance. You cannot receive a 
status without making effort. This is why it is remembered: If you climb up, you can taste the 
sweetness of the nectar of heaven, but... There is such a vast difference between being a double-crowned 
king of all kings and being part of the subjects. There is only the One who teaches everyone. You must 
understand this very well. Baba repeatedly explains that the pilgrimage of remembrance is the main 
thing. I teach you in order to make you into the masters of the world. Therefore, the Teacher is also 
the Guru. The Father is the Teacher of all teachers and the Father of all fathers. You children know 
that your Baba is very lovely. You have to remember that Father a great deal. You also have to study 
properly. If you don't remember the Father, your sins can't be absolved. The Father will take all souls back 
home with Him. All the bodies will be destroyed and the souls will return home and reside in their 
own religion sections. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning
 
from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. In order to make your intellect pure, remain intoxicated on the pilgrimage of remembrance. Only by 
remembering the one Beloved while performing actions will you become a conqueror of sinful actions.
2. Make effort in this short age to change from an ordinary human into a deity. Perform good actions 
and imbibe good sanskars and you will go into a good family.

Blessing:
May you be imperishable and immortal with the determined thought of belonging 
to the one Father and none other.   

Children who have the determination thought to belong to one Father and none other automatically and 
easily have a stage that is constant and stable. By having this determined thought, the eternal thread 
of all relationships is tied and they receive the blessing of being constantly imperishable and immortal. 
By having this determined thought, your effort receives a special lift. Those who have all relationships 
with the one Father automatically receive all attainments.

Slogan:
When you make your thinking, speaking and doing equal, you will be said to be a most elevated 
effort-maker.  

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