Thursday, October 01, 2015

02-10-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - बाबा आये हैं तुम्हें घर की राह बताने, तुम आत्म-अभिमानी होकर रहो तो यह राह सहज देखने में आयेगी”   
प्रश्न:
संगम पर कौन-सी ऐसी नॉलेज मिली है जिससे सतयुगी देवतायें मोहजीत कहलाये?
उत्तर:
संगम पर तुम्हें बाप ने अमरकथा सुनाकर अमर आत्मा की नॉलेज दी। ज्ञान मिला - यह अविनाशी बना-बनाया ड्रामा है, हर एक आत्मा अपना-अपना पार्ट बजाती है। वह एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है, इसमें रोने की बात नहीं। इसी नॉलेज से सतयुगी देवताओं को मोहजीत कहा जाता। वहाँ मृत्यु का नाम नहीं। खुशी से पुराना शरीर छोड़ नया लेते हैं।
गीतः
नयन हीन को राह दिखाओ......।  
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप कहते कि राह तो दिखलाता हूँ परन्तु पहले अपने को आत्मा निश्चय कर बैठो। देही-अभिमानी होकर बैठो तो फिर तुमको राह बहुत सहज देखने आयेगी। भक्ति मार्ग में आधाकल्प ठोकरें खाई हैं। भक्ति मार्ग की अथाह सामग्री है। अब बाप ने समझाया है बेहद का बाप एक ही है। बाप कहते हैं तुमको रास्ता बता रहा हूँ। दुनिया को यह भी पता नहीं कौन सा रास्ता बताते हैं! मुक्ति-जीवनमुक्ति, गति-सद्गति का। मुक्ति कहा जाता है शान्तिधाम को। आत्मा शरीर बिगर कुछ भी बोल नहीं सकती। कर्मेन्द्रियों द्वारा ही आवाज़ होता है, मुख से आवाज़ होता है। मुख न हो तो आवाज़ कहाँ से आयेगा। आत्मा को यह कर्मेन्द्रियां मिली हैं कर्म करने के लिए। रावण राज्य में तुम विकर्म करते हो। यह विकर्म छी-छी कर्म हो जाते हैं। सतयुग में रावण ही नहीं तो कर्म अकर्म हो जाते हैं। वहाँ 5 विकार होते नहीं। उसको कहा जाता है - स्वर्ग। भारतवासी स्वर्गवासी थे, अब फिर कहेंगे नर्कवासी। विषय वैतरणी नदी में गोता खाते रहते हैं। सब एक-दो को दु:ख देते रहते हैं। अब कहते हैं बाबा ऐसी जगह ले चलो जहाँ दु:ख का नाम न हो। वह तो भारत जब स्वर्ग था तब दु:ख का नाम नहीं था। स्वर्ग से नर्क में आये हैं, अब फिर स्वर्ग में जाना है। यह खेल है। बाप ही बच्चों को बैठ समझाते हैं। सच्चा-सच्चा सतसंग यह है। तुम यहाँ सत बाप को याद करते हो वही ऊंच ते ऊंच भगवान है। वह है रचता, उनसे वर्सा मिलता है। बाप ही बच्चों को वर्सा देंगे। हद का बाप होते हुए भी फिर याद करते हैं - हे भगवान्, हे परमपिता परमात्मा रहम करो। भक्ति मार्ग में धक्के खाते-खाते हैरान हो गये हैं। कहते हैं - हे बाबा, हमको सुख-शान्ति का वर्सा दो। यह तो बाप ही दे सकते हैं सो भी 21 जन्म के लिए। हिसाब करना चाहिए। सतयुग में जब इनका राज्य था तो जरूर थोड़े मनुष्य होंगे। एक धर्म था, एक ही राजाई थी। उनको कहा जाता है स्वर्ग, सुखधाम। नई दुनिया को कहा जाता है सतोप्रधान, पुरानी को तमोप्रधान कहेंगे। हर एक चीज़ पहले सतोप्रधान फिर सतो-रजो-तमो में आती है। छोटे बच्चे को सतोप्रधान कहेंगे। छोटे बच्चे को महात्मा से भी ऊंच कहा जाता है। महात्मायें तो जन्म लेते फिर बड़े होकर विकारों का अनुभव करके घरबार छोड़ भागते हैं। छोटे बच्चे को तो विकारों का पता नहीं है। बिल्कुल इनोसेंट हैं इसलिए महात्मा से भी ऊंच कहा जाता है। देवताओं की महिमा गाते हैं - सर्वगुण सम्पन्न..... साधुओं की यह महिमा कभी नहीं करेंगे। बाप ने हिंसा और अहिंसा का अर्थ समझाया है। किसको मारना इसको हिंसा कहा जाता है। सबसे बड़ी हिंसा है काम कटारी चलाना। देवतायें हिंसक नहीं होते। काम कटारी नहीं चलाते। बाप कहते हैं अब मैं आया हूँ तुमको मनुष्य से देवता बनाने। देवता होते हैं सतयुग में। यहाँ कोई भी अपने को देवता नहीं कह सकते। समझते हैं हम नीच पापी विकारी हैं। फिर अपने को देवता कैसे कहेंगे इसलिए हिन्दू धर्म कह दिया है। वास्तव में आदि सनातन देवी- देवता धर्म था। हिन्दू तो हिन्दुस्तान से निकाला है। उन्हों ने फिर हिन्दू धर्म कह दिया है। तुम कहेंगे - हम देवता धर्म के हैं तो भी हिन्दू में लगा देंगे। कहेंगे हमारे पास कॉलम ही हिन्दू धर्म का है। पतित होने के कारण अपने को देवता कह नहीं सकते हैं।

अभी तुम जानते हो - हम पूज्य देवता थे, अब पुजारी बने हैं। पूजा भी पहले सिर्फ शिव की करते हैं फिर व्यभिचारी पुजारी बनें। बाप एक है उनसे वर्सा मिलता है। बाकी तो अनेक प्रकार की देवियाँ आदि हैं। उनसे कोई वर्सा नहीं मिलता है। इस ब्रह्मा से भी तुमको वर्सा नहीं मिलता। एक है निराकारी बाप, दूसरा है साकारी बाप। साकारी बाप होते हुए भी हे भगवान, हे परमपिता कहते रहते हैं। लौकिक बाप को ऐसे नहीं कहेंगे तो वर्सा बाप से मिलता है। पति और पत्नी हाफ पार्टनर होते हैं तो उनको आधा हिस्सा मिलना चाहिए। पहले आधा उनका निकाल बाकी आधा बच्चों को देना चाहिए। परन्तु आजकल तो बच्चों को ही सारा धन दे देते हैं। कोई-कोई का मोह बहुत होता है, समझते हैं हमारे मरने बाद बच्चा ही हकदार रहेगा। आजकल के बच्चे तो बाप के चले जाने पर माँ को पूछते भी नहीं। कोई-कोई मातृ-स्नेही होते हैं। कोई फिर मातृ-द्रोही होते हैं। आजकल बहुत करके मातृ द्रोही होते हैं। सब पैसे उड़ा देते हैं। धर्म के बच्चे भी कोई-कोई ऐसे निकल पड़ते हैं जो बहुत तंग करते हैं। अब बच्चों ने गीत सुना, कहते हैं बाबा हमको सुख का रास्ता बताओ - जहाँ चैन हो। रावण राज्य में तो सुख हो न सके। भक्ति मार्ग में तो इतना भी नहीं समझते कि शिव अलग है, शंकर अलग है। बस माथा टेकते रहो, शास्त्र पढ़ते रहो। अच्छा, इससे क्या मिलेगा, कुछ भी पता नहीं। सर्व के शान्ति का, सुख का दाता तो एक ही बाप है। सतयुग में सुख भी है तो शान्ति भी है। भारत में सुख शान्ति थी, अब नहीं है इसलिए भक्ति करते दर-दर धक्के खाते रहते हैं। अभी तुम जानते हो शान्तिधाम, सुखधाम में ले जाने वाला एक ही बाप है। बाबा हम सिर्फ आपको ही याद करेंगे, आपसे ही वर्सा लेंगे। बाप कहते हैं देह सहित देह के सर्व सम्बन्धों को भूल जाना है। एक बाप को याद करना है। आत्मा को यहाँ ही पवित्र बनना है। याद नहीं करेंगे तो फिर सज़ायें खानी पड़ेंगी। पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। इसलिए बाप कहते हैं याद की मेहनत करो। आत्माओं को समझाते हैं। और कोई भी सतसंग आदि ऐसा नहीं होगा जहाँ ऐसे कहे-हे रूहानी बच्चों। यह है रूहानी ज्ञान, जो रूहानी बाप से ही बच्चों को मिलता है। रूह अर्थात् निराकार। शिव भी निराकार है ना। तुम्हारी आत्मा भी बिन्दी है, बहुत छोटी। उनको कोई देख न सके, सिवाए दिव्य दृष्टि के। दिव्य दृष्टि बाप ही देते हैं। भगत बैठ हनूमान, गणेश आदि की पूजा करते हैं अब उनका साक्षात्कार कैसे हो। बाप कहते हैं दिव्य दृष्टि दाता तो मैं ही हूँ। जो बहुत भक्ति करते हैं तो फिर मैं ही उनको साक्षात्कार कराता हूँ। परन्तु इससे फायदा कुछ भी नहीं। सिर्फ खुश हो जाते हैं। पाप तो फिर भी करते हैं, मिलता कुछ भी नहीं। पढ़ाई बिगर कुछ बन थोड़ेही सकेंगे। देवतायें सर्वगुण सम्पन्न हैं। तुम भी ऐसे बनो ना। बाकी तो वह है सब भक्ति मार्ग का साक्षात्कार। सचमुच कृष्ण से झूलो, स्वर्ग में उनके साथ रहो। वह तो पढ़ाई पर है। जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। श्रीमत भगवान की गाई हुई है। कृष्ण की श्रीमत नहीं कहेंगे। परमपिता परमात्मा की श्रीमत से कृष्ण की आत्मा ने यह पद पाया है। तुम्हारी आत्मा भी देवता धर्म में थी अर्थात् कृष्ण के घराने में थी। भारतवासियों को यह पता नहीं है कि राधे-कृष्ण आपस में क्या लगते थे। दोनों ही अलग-अलग राजाई के थे। फिर स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। यह सब बातें बाप ही आकर समझाते हैं। अब तुम पढ़ते ही हो स्वर्ग का प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने के लिए। प्रिन्स-प्रिन्सेज का जब स्वयंवर होता है तब फिर नाम बदलता है। तो बाप बच्चों को ऐसा देवता बनाते हैं। अगर बाप की श्रीमत पर चलेंगे तो। तुम हो मुख वंशावली, वह हैं कुख वंशावली। वह ब्राह्मण लोग हथियाला बांधते हैं काम चिता पर बिठाने का। अभी तुम सच्ची-सच्ची ब्राह्मणियां काम चिता से उतार ज्ञान चिता पर बिठाने हथियाला बांधते हो। तो वह छोड़ना पड़े। यहाँ के बच्चे तो लड़ते-झगड़ते पैसा भी सारा बरबाद करते हैं। आजकल दुनिया में बहुत गन्द है। सबसे गन्दी बीमारी है बाइसकोप। अच्छे बच्चे भी बाइसकोप में जाने से खराब हो पड़ते हैं। इसलिए बी.के. को बाइसकोप में जाना मना है। हाँ, जो मजबूत हैं, उनको बाबा कहते हैं वहाँ भी तुम सर्विस करो। उनको समझाओ यह तो है हद का बाइसकोप। एक बेहद का बाइसकोप भी है। बेहद के बाइसकोप से ही फिर यह हद के झूठे बाइसकोप निकले हैं।

अभी तुम बच्चों को बाप ने समझाया है - मूलवतन जहाँ सभी आत्मायें रहती हैं फिर बीच में है सूक्ष्मवतन। यह है - साकार वतन। खेल सारा यहाँ चलता है। यह चक्र फिरता ही रहता है। तुम ब्राह्मण बच्चों को ही स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। देवताओं को नहीं। परन्तु ब्राह्मणों को यह अलंकार नहीं देते हैं क्योंकि पुरुषार्थी हैं। आज अच्छे चल रहे हैं, कल गिर पड़ते हैं इसलिए देवताओं को दे देते हैं। कृष्ण के लिए दिखाते हैं स्वदर्शन चक्र से अकासुर-बकासुर आदि को मारा। अब उनको तो अहिंसा परमोधर्म कहा जाता है फिर हिंसा कैसे करेंगे! यह सब है भक्तिमार्ग की सामग्री। जहाँ जाओ शिव का लिंग ही होगा। सिर्फ नाम कितने अलग-अलग रख दिये हैं। मिट्टी की देवियाँ कितनी बनाते हैं। श्रृंगार करते हैं, हज़ारों रूपया खर्च करते हैं। उत्पत्ति की फिर पूजा करेंगे, पालना कर फिर जाए डुबोते हैं। कितना खर्चा करते हैं गुड़ियों की पूजा में। मिला तो कुछ भी नहीं। बाप समझाते हैं यह सब पैसे बरबाद करने की भक्ति है, सीढ़ी उतरते ही आये हैं। बाप आते हैं तो सबकी चढ़ती कला होती है। सबको शान्तिधाम-सुखधाम में ले जाते हैं। पैसे बरबाद करने की बात नहीं। फिर भक्तिमार्ग में तुम पैसे बरबाद करते-करते इनसालवेन्ट बन गये हो। सालवेन्ट, इनसालवेन्ट बनने की कथा बाप बैठ समझाते हैं। तुम इन लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी के थे ना। अब तुमको नर से नारायण बनने की शिक्षा बाप देते हैं। वो लोग तीजरी की कथा, अमर कथा सुनाते हैं। है सब झूठ। तीजरी की कथा तो यह है, जिससे आत्मा का ज्ञान का तीसरा नेत्र खुलता है। सारा चक्र बुद्धि में आ जाता है। तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल रहा है, अमरकथा भी सुन रहे हो। अमर बाबा तुमको कथा सुना रहे हैं - अमरपुरी का मालिक बनाते हैं। वहाँ तुम कभी मृत्यु को नहीं पाते। यहाँ तो काल का मनुष्यों को कितना डर रहता है। वहाँ डरने की, रोने की बात नहीं। खुशी से पुराना शरीर छोड़ नया ले लेते हैं। यहाँ कितना मनुष्य रोते हैं। यह है ही रोने की दुनिया। बाप कहते हैं यह तो बना-बनाया ड्रामा है। हर एक अपना-अपना पार्ट बजाते रहते हैं। यह देवतायें मोहजीत हैं ना। यहाँ तो दुनिया में अनेक गुरू हैं जिनकी अनेक मतें मिलती हैं। हर एक की मत अपनी। एक सन्तोषी देवी भी है जिसकी पूजा होती है। अब सन्तोषी देवियाँ तो सतयुग में हो सकती हैं, यहाँ कैसे हो सकती। सतयुग में देवतायें सदैव सन्तुष्ट होते हैं। यहाँ तो कुछ न कुछ आश रहती है। वहाँ कोई आश नहीं होती। बाप सबको सन्तुष्ट कर देते हैं। तुम पद्मपति बन जाते हो। कोई अप्राप्त वस्तु नहीं रहती जिसकी प्राप्ति की चिंता हो। वहाँ चिंता होती ही नहीं। बाप कहते हैं सर्व का सद्गति दाता तो मैं ही हूँ। तुम बच्चों को 21 जन्म के लिए खुशी ही खुशी देते हैं। ऐसे बाप को याद भी करना चाहिए। याद से ही तुम्हारे पाप भस्म होंगे और तुम सतोप्रधान बन जायेंगे। यह समझने की बातें हैं। जितना औरों को जास्ती समझायेंगे उतना प्रजा बनती जायेगी और ऊंच पद पायेंगे। यह कोई साधू आदि की कथा नहीं हैं। भगवान बैठ इनके मुख द्वारा समझाते हैं। अभी तुम सन्तुष्ट देवी-देवता बन रहे हो। अभी तुमको व्रत भी रखना चाहिए - सदैव पवित्र रहने का क्योंकि पावन दुनिया में जाना है तो पतित नहीं बनना है। बाप ने यह व्रत सिखाया है। मनुष्यों ने फिर अनेक प्रकार के व्रत बनाये हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) एक बाप की मत पर चल सदा सन्तुष्ट रह सन्तोषी देवी बनना है। यहाँ कोई भी आश नहीं रखनी है। बाप से सर्व प्राप्तियां कर पद्मपति बनना है।
2) सबसे गंदा बनाने वाला बाइसकोप (सिनेमा) है। तुम्हें बाइसकोप देखने की मना है। तुम बहादुर हो तो हद और बेहद के बाइसकोप का राज समझ दूसरों को समझाओ। सर्विस करो।
वरदान:
अपना सब कुछ सेवा में अर्पित करने वाले गुप्त दानी पुण्य आत्मा भव!   
जो भी सेवा करते हो उसे विश्व कल्याण के लिए अर्पित करते चलो। जैसे भक्ति में जो गुप्त दानी पुण्य आत्मायें होती हैं वो यही संकल्प करती हैं कि सर्व के भले प्रति हो। ऐसे आपका हर संकल्प सेवा में अर्पित हो। कभी अपनेपन की कामना नहीं रखो। सर्व प्रति सेवा करो। जो सेवा विघ्न रूप बने उसे सच्ची सेवा नहीं कहेंगे इसलिए अपना पन छोड़ गुप्त और सच्चे सेवाधारी बन सेवा से विश्व कल्याण करते चलो।
स्लोगन:
हर बात प्रभू अर्पण कर दो तो आने वाली मुश्किलातें सहज अनुभव होंगी।   
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02/10/15 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban

Sweet children, Baba has come to show you the path home. When you remain soul conscious you will be able to see the path easily.  
Question:
What knowledge do you receive at the confluence age through which the golden-aged deities are called conquerors of attachment?
Answer:
At the confluence age the Father tells you the story of immortality and gives you knowledge of eternal souls. You receive the knowledge that this is an imperishable, predestined drama and that every soul plays his own part. A soul leaves his body and takes another one. Therefore, there is no need to cry. It is by receiving this knowledge now that the golden-aged deities are called conquerors of attachment. There, there is no mention of death. They leave their old bodies in happiness and adopt new ones.
Song:
Show the path to the blind o God!  
Om Shanti
The spiritual Father says to the sweetest spiritual children: I show you the path, but first consider yourselves to be souls. Sit in soul consciousness and you will find this path easily. You have been stumbling for half a cycle on the path of devotion. There is an enormous amount of paraphernalia on the path of devotion. Now, the Father has explained that there is only one unlimited Father. The Father says: I am showing you the path. No one in the world even knows which path He shows. It is the path to liberation and liberation-in-life: liberation and salvation. The abode of peace is called liberation. A soul cannot speak without a body. Sound can only be made through these organs. Sound is produced through the mouth. If there were no mouth, where could sound come from? Souls receive these organs to perform actions. In Ravan’s kingdom you perform sinful actions. Those sinful actions are very dirty actions. In the golden age, there is no Ravan. Therefore, actions are neutral. The five vices are not there. That is called heaven. The residents of Bharat were the residents of heaven, but they are now called the residents of hell. They are drowning in the river of poison. They are all causing each other sorrow. They say: Baba, take us to a place where there is no mention of sorrow. When Bharat was heaven, there was no mention of sorrow. They came from heaven into hell. They now have to go to heaven. This is a play. The Father Himself sits here and explains to you children. This is the true company of the Truth (satsang). You are remembering the true Father. He alone is God, the Highest on High. He is the Creator. You receive your inheritance from Him. The Father Himself gives you children your inheritance. Even though they have limited fathers, they remember Him and say: O God, o Supreme Father, Supreme Soul, have mercy! They have become distressed from stumbling so much on the path of devotion. They say: O Baba, give us our inheritance of happiness and peace! Only the Father can give this and that too is for 21 births. You can calculate this. In the golden age, when it was their kingdom, there must definitely have been fewer people. There was only one religion and only one kingdom. That is called heaven, the land of happiness. The new world is called satopradhan (completely pure). The old world is called tamopradhan (completely impure). Everything is at first satopradhan and it then goes through the stages of sato, rajo and tamo. Young children are called satopradhan. Young children are said to be higher than great souls (mahatmas). Mahatmas take birth, grow up and experience the vices and then leave home. Small children don’t know anything about vice; they are completely innocent. This is why they are said to be higher than mahatmas. Deities are praised as being full of all virtues. Sadhus are never given this praise. The Father has explained the meaning of violence and non-violence. To hit someone is called violence. The greatest violence is to use the sword of lust. Deities are not violent. They do not use the sword of lust. The Father says: I have now come to change you from human beings into deities. Deities are in heaven. No one here can call themselves a deity. Everyone understands himself to be a degraded, vicious sinner. So, how could they call themselves deities? That is why they have called it the Hindu religion. In fact, it was the original, eternal deity religion. The word “Hindu” originated from the word “Hindustan” so they called it the Hindu religion. You say that you are of the deity religion and yet they put you in the column under Hindu religion. They say that they only have a column for the Hindu religion. Because of being impure no one can call themselves deities. You now understand that you were worthy-of-worship deities and that you have now become worshippers. Previously, you did unadulterated worship of Shiva. Then you became adulterated worshippers. The Father is only One. You receive your inheritance from Him. There are many types of deity etc. You do not receive any inheritance from them. You cannot receive an inheritance from this Brahma either. One is the incorporeal Father and the other is your physical father. Even though they have physical fathers, they continue to say: Oh God! Oh Supreme Father! You wouldn’t say that to your physical father. An inheritance is received from a father. A husband and wife are half-partners. Therefore, she should have half of everything. First, half should be given to her as her share and then the children should be given the other half. However, these days, the children are given all the wealth. Some have a lot of attachment. They think that it is their children who will have all rights when they die. Today’s children don’t even ask about their mother after the father’s departure. Some love their mother. Some, however, oppose their mother. These days, the majority don’t ask after their mother. They waste all the money. Some adopted children are also like that. They trouble their mother a great deal. You children heard the song. They say: Baba, now show us the path to happiness where there is rest. There is no happiness in Ravan’s kingdom. Those on the path of devotion don’t even understand that Shiva is separate from Shankar. They just continue to bow their heads and read scriptures. OK, what do you receive from that? They don’t know anything. Only the one Father is the Bestower of peace and happiness for all. In the golden age, there is happiness as well as peace. There was peace and happiness in Bharat but they no longer exist. This is why, in their devotion, they continue to stumble from door to door. You now understand that only the one Father takes you to the land of peace and the land of happiness. Baba, we will only remember You. We will claim our inheritance from You alone. The Father says: You have to forget your bodies and all your bodily relations. Remember the one Father alone! You souls have to become pure here. If you don’t remember Him, you will have to experience punishment. Your status will be reduced. This is why the Father says: Make effort for remembrance. He explains to you souls. There are no other satsangs etc. where “O spiritual children” is said. This is spiritual knowledge which you children receive from the spiritual Father. “Spirit” means incorporeal. Shiva too is incorporeal. You souls are points; you are very tiny. No one can see a soul without having divine vision. Only the Father gives divine vision. Devotees sit and worship Hanuman and Ganesh etc. Now, how would they have visions of them? The Father says: I am the One who is the Bestower of divine vision. I, Myself, give visions to those who have done a lot of devotion. However, there is no benefit in that. They just become happy. They still continue to commit sin. They don’t attain anything. How could they become anything without studying? Deities are full of all virtues. You too have to become like that. The rest are all visions of the path of devotion. You will actually swing with Krishna and be with him in heaven. It depends on how much your study. To the extent that you follow shrimat, so you will claim an elevated status. Shrimat is given by God. You do not call it Krishna’s shrimat. The Krishna soul claimed his status by following the shrimat of the Supreme Father, the Supreme Soul. You souls were also in the deity religion. In other words, you were in Krishna’s dynasty. The people of Bharat don’t know what the relationship of Radhe and Krishna is. Each comes from a different kingdom. Then, on their marriage, they become Lakshmi and Narayan. The Father has come to explain all of these things. You are now studying to become the princes and princesses of heaven. It is at the time of the marriage of the prince and princess that their names are changed. Therefore, the Father makes you children into such deities. However, that is only if you follow the Father’s shrimat. You are mouth-born children. They are born through a womb. Those brahmins bind a couple together and make them sit on the pyre of lust. You true Brahmins now take them off the pyre of lust and tie them with the bond of sitting on the pyre of knowledge. Therefore, they have to let go of the other bond. Children from here fight and quarrel and waste all their money. Nowadays, there is a lot of dirt in the world. The worst sickness of all is the cinema. Even good children get spoilt by going to the cinema. Therefore, BKs are also forbidden to go to the cinema. However, for those who are strong, Baba says: Do service there too. Explain to them that that cinema is limited. There is also an unlimited cinema. Those limited and false cinemas started from the unlimited cinema. The Father has now explained to you children that that is the soul world where all souls reside, and that, in between there and here, there is the subtle region. This is the physical world where the whole play takes place. This cycle continues to turn. You Brahmin children have to become spinners of the discuss of self-realisation. It is not the deities who have to become this. However, because they are effort- makers, Brahmins are not given these symbols. Today, they are moving along well. Tomorrow, they fall. This is why these symbols are given to the deities. They portray Shri Krishna killing Akasur and Bakasur etc. with a discus. However, he is said to have the highest religion of non-violence, so how could he kill? All of that is the paraphernalia of devotion. Wherever you go, there will be an oval-shaped image (lingam) of Shiva. So many different names have been given. They make so many deities out of clay. They decorate them. They spend thousands of rupees on them. They create them, worship them, sustain them and then sink them! They spend so much money on the worship of dolls. They don’t gain anything from that. The Father explains: That is all devotion for wasting money. They have continued to come down the ladder. When the Father comes, it becomes the stage of ascending for everyone. He takes you all to the land of peace and the land of happiness. There is no question of wasting money in this. By wasting money on the path of devotion, you became insolvent. The Father sits here and explains the story of becoming solvent and insolvent. You belonged to this dynasty of Lakshmi and Narayan, did you not? The Father now gives you teachings to change you from ordinary humans into Narayan. Those people relate the story of the third eye and the story of immortality but all of those are lies. This is the story of the third eye through which the soul’s third eye of knowledge opens. The whole cycle enters the intellect. You are receiving the third eye of knowledge. You are also listening to the story of immortality. The immortal Father is telling you the story of immortality. He is making you into the masters of the land of immortality. You never experience death there. People here have so much fear of death. There, there is no fear of dying and no crying. You leave your old body in happiness and take a new one. Here, people cry so much; this is the world of tears. The Father says: This drama is predestined. Each one is playing his own part. The deities are conquerors of attachment. There are innumerable gurus in the world and they all have different opinions. Each one’s opinion is his own. Here, there is worship of a deity (goddess) of contentment. The deities of contentment can only exist in the golden age. How can they exist here? In the golden age, deities are always content. Here, everyone has one desire or another. There, there are no desires. The Father makes everyone content. You become multimillionaires. Because nothing is unattained there, there is no worry about attaining anything. There are no worries there. The Father says: I am the Bestower of Salvation for everyone. You children are given happiness for 21 births. You have to remember such a Father. It is by having remembrance of Him that your sins are burnt away and you become satopradhan. These things have to be understood. You will claim an elevated status and your subjects will be created to the extent that you explain to others. You are not being told a story of some sadhu etc. God is sitting here and explaining through this one’s mouth. You are now becoming deities of contentment. You should now also make a pledge to remain pure for ever because you have to go to the pure world. Therefore, don’t become impure. The Father has taught you this pledge. Human beings now hold many different types of fast. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost and now found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada, the spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Follow the directions of the one Father and remain constantly content and become deities of contentment. Don’t have any desires here. Acquire all attainments from the Father and become multimillionaires.
2. The cinema makes you the most dirty. You are not allowed to watch films. If you are courageous and can understand the significance between the limited cinema and the unlimited cinema you can do service by explaining it.
Blessing:
May you be an incognito donor and a charitable soul and offer everything you have for service.   
Whatever service you do, continue to offer that for world service. On the path of devotion, souls who are incognito donors and charitable souls have the thought that whatever they do, it should be for the benefit of all souls. Similarly, every thought of yours should be offered for service. Never have the desire to serve just yourself, serve everyone. Any service that becomes an obstacle cannot be true service. Therefore, renounce any consciousness of something belonging to you, be a true incognito server and continue to benefit the world through service.
Slogan:
Surrender everything to God and all the difficulties that are to come will be experienced as easy.   
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Murli Song -02-10-2015
Song: Show the path to the blind o God!  

गीतः नयन हीन को राह दिखाओ......।  

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