23-09-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - इस बेहद के नाटक में तुम आत्माओं को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है, अभी तुम्हें यह शरीर रूपी कपड़े उतार घर जाना है, फिर नये राज्य में आना है”
प्रश्न:
बाप कोई भी कार्य प्रेरणा से नहीं करते, उनका अवतरण होता है, यह किस बात से सिद्ध होता है?
उत्तर:
बाप को कहते ही हैं करनकरावनहार। प्रेरणा का तो अर्थ है विचार। प्रेरणा से कोई नई दुनिया की स्थापना नहीं होती है। बाप बच्चों से स्थापना कराते हैं, कर्मेन्द्रियों बिगर तो कुछ भी करा नहीं सकते इसलिए उन्हें शरीर का आधार लेना होता है।
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चे रूहानी बाप के सामने बैठे हैं। गोया आत्मायें अपने बाप के सम्मुख बैठी हैं। आत्मा जरूर जिस्म के साथ ही बैठेगी। बाप भी जब जिस्म लेते हैं तब ही सम्मुख होते हैं इसको ही कहा जाता है आत्मा-परमात्मा अलग रहे..... तुम बच्चे समझते हो ऊंच ते ऊंच बाप को ही ईश्वर, प्रभु, परमात्मा भिन्न नाम दिये हैं, परमपिता कभी लौकिक बाप को नहीं कहा जाता है। सिर्फ परमपिता लिखा तो भी हर्जा नहीं है। परमपिता अर्थात् वह सभी का पिता है एक। बच्चे जानते हैं हम परमपिता के साथ बैठे हैं। परमपिता परमात्मा और हम आत्मायें शान्तिधाम के रहने वाले हैं। यहाँ पार्ट बजाने आते हैं, सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक पार्ट बजाया है, यह हो गई नई रचना। रचता बाप ने समझाया है कि तुम बच्चों ने ऐसे पार्ट बजाया है। आगे यह नहीं जानते थे कि हमने 84 जन्मों का चक्र लगाया है। अभी तुम बच्चों से ही बाप बात करते हैं, जिन्होंने 84 का चक्र लगाया है। सब तो 84 जन्म नहीं ले सकते हैं। यह समझाना है कि 84 का चक्र कैसे फिरता है। बाकी लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं। बच्चे जानते हैं कि हम हर 5 हज़ार वर्ष बाद पार्ट बजाने आते हैं। हम पार्टधारी हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान का भी विचित्र पार्ट है। ब्रह्मा और विष्णु का विचित्र पार्ट नहीं कहेंगे। दोनों ही 84 का चक्र लगाते हैं। बाकी शंकर का पार्ट इस दुनिया में तो है नहीं। त्रिमूर्ति में दिखाते हैं - स्थापना, विनाश, पालना। चित्रों पर समझाना होता है। चित्र जो दिखाते हो उस पर समझाना है। संगमयुग पर पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है। प्रेरक अक्षर भी रांग है। जैसे कोई कहते हैं आज हमको बाहर जाने की प्रेरणा नहीं है, प्रेरणा यानी विचार। प्रेरणा का कोई और अर्थ नहीं है। परमात्मा कोई प्रेरणा से काम नहीं करता। न प्रेरणा से ज्ञान मिल सकता है। बाप आते हैं इन कर्मेन्द्रियों द्वारा पार्ट बजाने। करनकरावनहार है ना। करायेंगे बच्चों से। शरीर बिगर तो कर न सकें। इन बातों को कोई भी जानते नहीं। न ईश्वर बाप को ही जानते हैं। ऋषि-मुनि आदि कहते थे हम ईश्वर को नहीं जानते। न आत्मा को, न परमात्मा बाप को, कोई में ज्ञान नहीं है। बाप है मुख्य क्रियेटर, डायरेक्टर, डायरेक्शन भी देते हैं। श्रीमत देते हैं। मनुष्यों की बुद्धि में तो सर्वव्यापी का ज्ञान है। तुम समझते हो बाबा हमारा बाबा है, वो लोग सर्वव्यापी कह देते हैं तो बाप समझ ही नहीं सकते। तुम समझते हो यह बेहद के बाप की फैमिली है। सर्वव्यापी कहने से फैमिली की खुशबू नहीं आती। उनको कहा जाता है निराकारी शिवबाबा। निराकारी आत्माओं का बाबा। शरीर है तब आत्मा बोलती है कि बाबा। बिगर शरीर तो आत्मा बोल न सके। भक्ति मार्ग में बुलाते आये हैं। समझते हैं वह बाबा दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। सुख मिलता है सुखधाम में। शान्ति मिलती है शान्तिधाम में। यहाँ है ही दु:ख। यह ज्ञान तुमको मिलता है संगम पर। पुराने और नये के बीच। बाप आते ही तब हैं जब नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश होना है। पहले हमेशा कहना चाहिए नई दुनिया की स्थापना। पहले पुरानी दुनिया का विनाश कहना रांग हो जाता है। अभी तुमको बेहद के नाटक की नॉलेज मिलती है। जैसे उस नाटक में एक्टर्स आते हैं तो घर से साधारण कपड़े पहनकर आते फिर नाटक में आकर कपड़े बदलते हैं। फिर नाटक पूरा हुआ तो वह कपड़े उतार कर घर जाते हैं। यहाँ तुम आत्माओं को घर से अशरीरी आना होता है। यहाँ आकर यह शरीर रूपी कपड़े पहनते हो। हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। यह है बेहद का नाटक। अभी यह बेहद की सारी दुनिया पुरानी है फिर होगी नई दुनिया। वह बहुत छोटी है, एक धर्म है। तुम बच्चों को इस पुरानी दुनिया से निकल फिर हद की दुनिया में, नई दुनिया में आना है क्योंकि वहाँ है एक धर्म। अनेक धर्म, अनेक मनुष्य होने से बेहद हो जाती। वहाँ तो है एक धर्म, थोड़े मनुष्य। एक धर्म की स्थापना के लिए आना पड़ता है। तुम बच्चे इस बेहद के नाटक के राज़ को समझते हो कि यह चक्र कैसे फिरता है। इस समय जो कुछ प्रैक्टिकल में होता है उसका ही फिर भक्ति मार्ग में त्योहार मनाते हैं। नम्बरवार कौन-कौन से त्योहार हैं, यह भी तुम बच्चे जानते हो। ऊंच ते ऊंच भगवान शिवबाबा की जयन्ती कहेंगे। वह जब आये तब फिर और त्योहार बनें। शिवबाबा पहले-पहले आकर गीता सुनाते हैं अर्थात् आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते हैं। योग भी सिखाते हैं। साथ-साथ तुमको पढ़ाते भी हैं। तो पहले-पहले बाप आया शिवजयन्ती हुई फिर कहेंगे गीता जयन्ती। आत्माओं को ज्ञान सुनाते हैं तो गीता जयन्ती हो गई। तुम बच्चे विचार कर त्योहारों को नम्बरवार लिखो। इन बातों को समझेंगे भी अपने धर्म के। हर एक को अपना धर्म प्यारा लगता है। दूसरे धर्म वालों की बात ही नहीं। भल किसको दूसरा धर्म प्यारा हो भी परन्तु उसमें आ न सकें। स्वर्ग में और धर्म वाले थोड़ेही आ सकते हैं। झाड़ में बिल्कुल साफ है। जो जो धर्म जिस समय आते हैं फिर उस समय आयेंगे। पहले बाप आते हैं, वही आकर राजयोग सिखलाते हैं तो कहेंगे शिवजयन्ती सो फिर गीता जयन्ती फिर नारायण जयन्ती। वह तो हो जाता सतयुग। वो भी लिखना पड़े नम्बरवार। यह ज्ञान की बातें हैं। शिव जयन्ती कब हुई वह भी पता नहीं है, ज्ञान सुनाया, जिसको गीता कहा जाता है फिर विनाश भी होता है। जगत अम्बा आदि की जयन्ती का कोई हॉली डे नहीं है। मनुष्य किसी की भी तिथि-तारीख आदि को बिल्कुल नहीं जानते हैं। लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता के राज्य को ही नहीं जानते। 2500 वर्ष में जो आये हैं, उनको जानते हैं परन्तु उनसे पहले जो आदि सनातन देवी-देवता थे, उनको कितना समय हुआ, कुछ नहीं जानते। 5 हज़ार वर्ष से बड़ा कल्प तो हो न सके। आधा तरफ तो ढेर संख्या आ गई, बाकी आधा में इनका राज्य। फिर जास्ती वर्षों का कल्प हो कैसे सकता। 84 लाख जन्म भी नहीं हो सकते। वो लोग समझते हैं कलियुग की आयु लाखों वर्ष है। मनुष्यों को अंधियारे में डाल दिया है। कहाँ सारा ड्रामा 5 हज़ार वर्ष का, कहाँ सिर्फ कलियुग के लिए कहते कि अभी 40 हज़ार वर्ष शेष हैं। जब लड़ाई लगती है तो समझते हैं भगवान को आना चाहिए लेकिन भगवान को तो आना चाहिए संगम पर। महाभारत लड़ाई तो लगती ही है संगम पर। बाप कहते हैं मैं भी कल्प-कल्प संगमयुग पर आता हूँ। बाप आयेंगे नई दुनिया की स्थापना पुरानी दुनिया का विनाश कराने। नई दुनिया की स्थापना होगी तो पुरानी दुनिया का विनाश जरूर होगा, इसके लिए यह लड़ाई है। इसमें शंकर के प्रेरणा आदि की तो कोई बात नहीं। अन्डरस्टुड पुरानी दुनिया खलास हो जायेगी। मकान आदि तो अर्थक्वेक में सब खलास हो जायेंगे क्योंकि नई दुनिया चाहिए। नई दुनिया थी जरूर। देहली परिस्तान थी, जमुना का कण्ठा था। लक्ष्मी- नारायण का राज्य था। चित्र भी हैं। लक्ष्मी-नारायण को स्वर्ग का ही कहेंगे। तुम बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है कि कैसे स्वंयवर होता है। यह सब प्वाइंट्स बाबा रिवाइज़ कराते हैं। अच्छा प्वाइंट्स याद नहीं पड़ती हैं तो बाबा को याद करो। बाप भूल जाता है तो टीचर को याद करो। टीचर जो सिखलाते हैं वह भी जरूर याद आयेगा ना। टीचर भी याद रहेगा, नॉलेज भी याद रहेगी। उद्देश्य भी बुद्धि में है। याद रखना ही पड़े क्योंकि तुम्हारी स्टूडेन्ट लाइफ है ना। यह भी जानते हो जो हमको पढ़ाते हैं वह हमारा बाप भी है, लौकिक बाप कोई गुम नहीं हो जाता है। लौकिक, पारलौकिक और फिर यह है अलौकिक। इनको कोई याद नहीं करते। लौकिक बाप से तो वर्सा मिलता है। अन्त तक याद रहती है। शरीर छोड़ा फिर दूसरा बाप मिलता है। जन्म बाई जन्म लौकिक बाप मिलते हैं। पारलौकिक बाप को भी दु:ख व सुख में याद करते हैं। बच्चा मिला तो कहेंगे ईश्वर ने बच्चा दिया। बाकी प्रजापिता ब्रह्मा को क्यों याद करेंगे, इनसे कुछ मिलता थोड़ेही है। इनको अलौकिक कहा जाता है।
तुम जानते हो हम ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा से वर्सा ले रहे हैं। जैसे हम पढ़ते हैं, यह रथ भी निमित्त बना हुआ है। बहुत जन्मों के अन्त में इनका शरीर ही रथ बना है। रथ का नाम तो रखना पड़ता है ना। यह है बेहद का सन्यास। रथ कायम ही रहता है, बाकी का ठिकाना नहीं है। चलते-चलते फिर भागन्ती हो जाते। यह रथ तो मुकरर है ड्रामा अनुसार, इनको कहा जाता है भाग्यशाली रथ। तुम सबको भाग्यशाली रथ नहीं कहेंगे। भाग्यशाली रथ एक माना जाता है, जिसमें बाप आकर ज्ञान देते हैं। स्थापना का कार्य कराते हैं। तुम भाग्यशाली रथ नहीं ठहरे। तुम्हारी आत्मा इस रथ में बैठ पढ़ती है। आत्मा पवित्र बन जाती इसलिए बलिहारी इस तन की है जो इसमें बैठ पढ़ाते हैं। यह अन्तिम जन्म बहुत वैल्युबल है फिर शरीर बदल हम देवता बन जायेंगे। इस पुराने शरीर द्वारा ही तुम शिक्षा पाते हो। शिवबाबा के बनते हो। तुम जानते हो हमारी पहली जीवन वर्थ नाट ए पेनी थी। अब पाउण्ड बन रही है। जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। बाप ने समझाया है याद की यात्रा है मुख्य। इनको ही भारत का प्राचीन योग कहते हैं जिससे तुम पतित से पावन बनते हो, स्वर्गवासी तो सब बनते हैं फिर है पढ़ाई पर मदार। तुम बेहद के स्कूल में बैठे हो। तुम ही फिर देवता बनेंगे। तुम समझ सकते हो ऊंच पद कौन पा सकते हैं। उनकी क्वालिफिकेशन क्या होनी चाहिए। पहले हमारे में भी क्वालिफिकेशन नहीं थी। आसुरी मत पर थे। अब ईश्वरीय मत मिलती है। आसुरी मत से हम उतरती कला में जाते हैं। ईश्वरीय मत से चढ़ती कला में जाते हैं। ईश्वरीय मत देने वाला एक है, आसुरी मत देने वाले अनेक हैं। माँ-बाप, भाई-बहन, टीचर-गुरू कितनों की मत मिलती है। अभी तुमको एक की मत मिलती है जो 21 जन्म काम आती है। तो ऐसे श्रीमत पर चलना चाहिए ना। जितना चलेंगे उतना श्रेष्ठ पद पायेंगे। कम चलेंगे तो कम पद। श्रीमत है ही भगवान की। ऊंच ते ऊंच भगवान ही है, जिसने कृष्ण को ऊंच ते ऊंच बनाया फिर नीच ते नीच रावण ने बनाया। बाप गोरा बनाते फिर रावण सांवरा बनाते। बाप वर्सा देते हैं। वह तो है ही वाइसलेस। देवताओं की महिमा गाते हैं सर्वगुण सम्पन्न...... सन्यासियों को सम्पूर्ण निर्विकारी नहीं कहेंगे। सतयुग में आत्मा और शरीर दोनों पवित्र होते हैं। देवताओं को सब जानते हैं, वो सम्पूर्ण निर्विकारी होने के कारण सम्पूर्ण विश्व के मालिक बनते हैं। अभी नहीं हैं, फिर तुम बनते हो। बाप भी संगमयुग पर ही आते हैं। ब्रह्मा के द्वारा ब्राह्मण। ब्रह्मा के बच्चे तो तुम सब ठहरे। वह है ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर। बोलो प्रजापिता ब्रह्मा का नाम नहीं सुना है? परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा ही सृष्टि रचेंगे ना। ब्राह्मण कुल है। ब्रह्मा मुख वंशावली भाई-बहिन हो गये। यहाँ राजा-रानी की बात नहीं। यह ब्राह्मण कुल तो संगम का थोड़ा समय चलता है। राजाई न पाण्डवों की है, न कौरवों की। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) 21 जन्म श्रेष्ठ पद का अधिकारी बनने के लिए सब आसुरी मतों को छोड़ एक ईश्वरीय मत पर चलना है। सम्पूर्ण वाइसलेस बनना है।
2) इस पुराने शरीर में बैठ बाप की शिक्षाओं को धारण कर देवता बनना है। यह है बहुत वैल्युबल जीवन, इसमें वर्थ पाउण्ड बनना है।
वरदान:
मान मांगने के बजाए सबको मान देने वाले, सदा निष्काम योगी भव!
आपको कोई मान दे, माने वा न माने लेकिन आप उसको मीठा भाई, मीठी बहन मानते हुए सदा स्वमान में रह, स्नेही दृष्टि से, स्नेह की वृत्ति से आत्मिक मान देते चलो। यह मान देवे तो मैं मान दूँ-यह भी रॉयल भिखारीपन है। इसमें निष्काम योगी बनो। रूहानी स्नेह की वर्षा से दुश्मन को भी दोस्त बना दो। आपके सामने कोई पत्थर भी फेकें तो भी आप उसे रत्न दो क्योंकि आप रत्नागर बाप के बच्चे हो।
स्लोगन:
विश्व का नव-निर्माण करने के लिए दो शब्द याद रखो-निमित्त और निर्मान।
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23/09/15 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, you souls have received your own parts in this unlimited drama. You now have to remove the costume of the body and return home. You then have to go to your new kingdom.
Question:
How is it proved that the Father doesn’t have any tasks performed through inspiration, but that He incarnates?
Answer:
It is said of the Father that He is Karankaravanhar. Inspiration means to think. A new world cannot be established through inspiration. The Father establishes the new world through the children. Unless he has physical organs, He cannot enable anything to be done. Therefore, He has to take the support of a body.
Om Shanti
You spiritual children are sitting in front of the spiritual Father. In fact, you souls are sitting in front of your Father. A soul definitely sits with a body. It is when the Father takes a body that He is in front of you. This is why it is said: Souls remained separated from the Supreme Soul for a long time. You children understand that the different names given, such as Ishwar, Prabhu and the Supreme Soul belong to the highest-on-high Father. No physical father is ever called the Supreme Father. It doesn’t matter even if you just write “Supreme Father”. “Supreme Father” means that the Father of all is One. You children know that we are sitting with the Supreme Father. The Supreme Father, the Supreme Soul, and we souls are residents of the land of peace. We came here to perform our parts. We have performed our parts from the golden age to the end of the iron age. This will now become a new creation. The Father, the Creator, has explained to you children how you played such parts. Previously, you didn’t know that you had been around the cycle of 84 births. The Father now speaks to you children who have been around the cycle of 84 births. Not everyone can take 84 births. You have to explain how the cycle of 84 births turns. It is not a matter of hundreds of thousands of years. You children also know that we come to play our parts every 5000 years. We are actors. The highest-on-high Father has a unique part to play. You wouldn’t say that Brahma or Vishnu has a unique part to play. Both go around the cycle of 84 births. Shankar doesn’t have a part to play in this world. Establishment, destruction and sustenance are shown in the picture of the Trimurti. You have to explain the pictures that you display. Destruction of the old world has to take place at the confluence age. It is wrong to use the word “Inspirer”. Someone may say, “Today, I don’t feel inspired to go out.” Inspiration means thought – inspiration has no other meaning. Neither does the Supreme Soul work by giving inspiration, nor can knowledge be received through inspiration. The Father comes to play a part through these physical organs. He is Karankaravanhar. He works through the children. He cannot do anything without a body. No one knows these things nor does anyone know God, the Father. Rishis and munis etc. used to say that they didn’t know God. They neither have knowledge of the soul nor of the Father, the Supreme Soul. The Father is the principal Creator and Director. He gives directions. He gives you shrimat. People have the knowledge of omnipresence in their intellects. You understand that Baba is our Father. Those people say that He is omnipresent. Therefore, they cannot realize that He is the Father. You understand that this is the family of the unlimited Father. By His being called omnipresent, there is no fragrance of a family. He is called incorporeal Shiv Baba, the Baba of incorporeal souls. It is when souls have bodies that they say: Baba. A soul without a body cannot speak. On the path of devotion you were calling out to God with the understanding that that Baba is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. You receive happiness in the land of happiness and peace in the land of peace. Here, there is just sorrow. You receive this knowledge at the confluence age, between the old and the new worlds. The Father only comes when establishment of the new world and destruction of the old world have to take place. First of all, you should always speak of establishment of the new world. To speak of destruction of the old world first is wrong. You are now receiving the knowledge of the unlimited play. When actors come from their homes to play parts, they wear ordinary clothes. Then, they change into their costumes, and when the play is over, they remove their costumes and return home. Similarly, you souls come here bodiless from your home. You come here and put on costumes in the form of bodies. Each soul has received his own part. This is an unlimited play. This entire unlimited world is now old and then there will be the new world. That population is very small and there is only one religion. You children are to move away from this old world and go into the limited new world where there is just one religion. When there are innumerable religions and innumerable human beings in the world, it becomes unlimited. There, there is just one religion and few human beings. The Father has to come to establish the one religion. You children understand the secrets of the unlimited play: how the cycle turns. Whatever happens in a practical way at this time will later be celebrated as a festival on the path of devotion. You children know about the numberwise festivals. It is said: The birthday of Shiv Baba, God, the Highest on High. The other festivals can only be created after He comes. Shiv Baba first comes and speaks the Gita, that is, He tells you the knowledge of the beginning, the middle and the end. Together with teaching you this, He also teaches you yoga. So, first of all, when the Father came, there was the birthday of Shiva. Then there was the birth of the Gita. He spoke knowledge to souls, and so that was the birth of the Gita. You children should think about all of these things and write down the festivals, numberwise. Only those who belong to your religion will understand these things. Everyone loves his own religion. There is no question of those of other religions. Although someone may love another religion, he cannot go into that religion. Those of other religions cannot go to heaven. It is very clear in the picture of the tree. All the religions will come at exactly the same time as they did previously. First of all, the Father comes. He comes and teaches you Raja Yoga. Therefore, it is said: There is the birth of Shiva, then the birth of the Gita and then the birth of Krishna, who then becomes Narayan. That is then the golden age. You have to write this, numberwise. These are aspects of knowledge. People don’t understand when Shiva’s birth takes place. The knowledge that He gives is called the Gita and that then disappears. There is no holiday for the birthday of Jagadamba etc. People don’t know the date or time of any of these things at all. They don’t know about the kingdom of Lakshmi and Narayan or that of Rama and Sita. They only know about those who have come in the last 2,500 years. However, they don’t know how long it has been since the deities of the original eternal deity religion, who came before that, existed. The cycle cannot last longer than 5000 years. In the first half of the cycle, it is their kingdom. In the second half of the cycle the population grows large. So, how could the cycle be of more years than this? There cannot be 8.4 million births. Those people believe that the duration of the iron age is hundreds of thousands of years. They have put people into total darkness. There is a vast difference between the whole drama being 5000 years and the 40,000 years of the iron age that still remain, as they say. When a war takes place, they feel that God has to come. However, God has to come at the confluence age. The Mahabharat War takes place at the confluence age. The Father says: I come at the confluence age of every cycle. The Father comes to carry out establishment of the new world and destruction of the old world. When establishment of the new world takes place, the old world is then definitely destroyed because this is what that war is for. There is no question of inspiration from Shankar etc. in this. It is understood that the whole world will be destroyed. All the buildings etc. will be destroyed in the earthquakes because a new world is needed. There definitely was a new world. Delhi was Paristhan, the land of angels. It used to be on the banks of the River Jamuna in the kingdom of Lakshmi and Narayan. There are pictures of this. Lakshmi and Narayan are said to belong to heaven. You children have had visions of how their wedding ceremony takes place. Baba revises all these points with you. Achcha, if you can’t remember the points, then simply remember Baba. If you forget the Father, then remember the Teacher. You would surely remember what your Teacher teaches, would you not? By remembering the Teacher, you will also remember the knowledge. You also have your aim in your intellects. You have to remember this because this is your student life, is it not? You know that the One who teaches you is also your Father. A physical father does not disappear. There are the lokik and parlokik fathers and then this alokik father. No one remembers this one. You receive an inheritance from your physical father. You remember that one till the end. When you leave your body, you go and have another father. You receive a physical father for birth after birth. People remember the parlokik Father in sorrow and in happiness. When they have a baby they say that God gave them that baby. Why would they remember Prajapita Brahma? You don’t receive anything from him. He is called the alokik father. You know that you are receiving your inheritance from Shiv Baba through Brahma. Just as you are studying, so, too, is this one. This chariot has become the instrument. This one’s body has become the chariot at the end of many births. The chariot has to be given a name. This renunciation is unlimited. The chariot stays all the time, but there is no guarantee for anyone else. While moving along, they become those who run away from the Father. This chariot has been appointed, according to the drama. He is called “The Lucky Chariot”. None of you are called a lucky chariot. Only one is considered to be “The Lucky Chariot” whom the Father enters to give you knowledge. He enables the task of establishment to be carried out. You are not lucky chariots. Your soul is sitting in this chariot and studying. Your soul becomes pure. Therefore, it is the greatness of this body in which He sits and teaches us. This final birth is very valuable. Then, you change your bodies and become deities. You receive teachings through this old body. You belong to Shiv Baba. You know that your previous lives are not worth a penny. Your lives are now becoming worth a pound. You will claim a high status according to how much you study. The Father has explained that the pilgrimage of remembrance is the main thing. This is called the ancient yoga of Bharat through which you become pure from impure. You all become residents of heaven. However, it then depends on how much you study. You are sitting in this unlimited school. You will then become deities. You can understand who will claim a high status and what the qualification for that will be. Previously, we too didn’t have any qualifications. We were following the Devil’s dictates. We are now receiving God’s directions. We go into the descending stage by following the Devil’s dictates. By following God’s directions we go into the ascending stage. Only the One gives us God’s directions, whereas many give the Devil’s directions. You receive dictates of so many - mother, father, brothers, sisters, teachers and gurus etc. You are now receiving the directions of One. These will be useful to you for 21 births. Therefore, you should follow such directions, should you not? You claim an elevated status according to how much you follow directions. If you follow them less, the status you receive is less. Shrimat comes from God. God is the Highest on High, the One who made Krishna the most elevated of all. Then, Ravan made him the lowest of all. The Father makes you beautiful and then Ravan makes you ugly. The Father gives you your inheritance. He is viceless. The praise of the deities is sung as “Full of all virtues, completely virtuous….” Sannyasis aren’t called “completely viceless”. In the golden age, both souls and bodies are pure. Everyone knows the deities. Because they are completely viceless, they become the masters of the perfect world. They are not that now. You will become that later. The Father only comes at the confluence age. Brahmins are created through Brahma. All of you are the children of Brahma. He is the great-great-grandfather. Ask them: Have you not heard the name of Prajapita Brahma? The Supreme Father, the Supreme Soul, creates the world through Brahma, does He not? There is the Brahmin clan. You then become brothers and sisters, the mouth-born creation of Brahma. There is no question of kings or queens here. This Brahmin clan only exists for this short time of the confluence age. Neither the Pandavas nor the Kauravas have a kingdom. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost, now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. In order to claim all rights for an elevated status for 21 births, renounce following all the Devil’s dictates and only follow God’s directions. Become completely viceless.
2. While sitting in your old body, imbibe the Father’s teachings and become a deity. This is a very valuable life. You have to become worth a pound in this life.
Blessing:
May you constantly be an altruistic yogi and give regard to everyone instead of asking for regard.
Whether someone gives you regard and accepts you or not, you simply have to consider that one to be your sweet brother or sister, always maintain your own self-respect and continue to give spiritual regard with loving drishti and an attitude of love. “I will give regard when that one gives me regard” is a royal way of begging. Be an altruistic yogi in this. By showering spiritual love, change an enemy into a friend. Even if someone throws a stone at you, you simply have to return that as a jewel because you are the children of the Father who is the Jewel Merchant.
Slogan:
In order to construct the new world, remember two words: an instrument and humility.
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