Tuesday, September 29, 2015

30-09-15 मुरली कविता

30-09-15 मुरली कविता

श्रीमत पर स्थापित हो रही... सतयुगी राजधानी
यही स्मृति रहे तो हो हरदम.. अपार ख़ुशी
जो करते भूले,छि: छि:(पतित) बन क्लास में आते
उन्हें यह ज्ञान फिर नही होता हज़म
वह फिर आसुरी संप्रदाय के हो जाते
रूठना नही बाप से और आपस में...बाप आये जब रिझाने
सत -बाप ,सत -शिक्षक और सतगुरु से रहना सदा सच्चा
ज्ञान-मूर्त,याद-मूर्त,और दिव्य गुण-मूर्त बन उड़ती कला में रहना स्थित
यही फरिश्ता सो देवता का साक्षात्कार करायेगा
यही वरदाता,विधातापन की है ऊँची स्टेज
औरों के मन के भावों को जानना तो.. मनमनाभव की स्थिति में रहो स्थित
ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!
  

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