Wednesday, September 30, 2015

Today BapDada Murli Hindi English -30-09-2015

30-09-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - सदा यही स्मृति रहे कि हम श्रीमत पर अपनी सतयुगी राजधानी स्थापन कर रहे हैं, तो अपार खुशी रहेगी”  
प्रश्न:
यह ज्ञान का भोजन किन बच्चों को हज़म नहीं हो सकता है?
उत्तर:
जो भूलें करके, छी-छी (पतित) बनकर फिर क्लास में आकर बैठते हैं, उन्हें ज्ञान हज़म नहीं हो सकता। वह मुख से कभी भी नहीं कह सकते कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है। उनका दिल अन्दर ही अन्दर खाता रहेगा। वह आसुरी सम्प्रदाय के बन जाते हैं।
ओम् शान्ति।
बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, वह कौन-सा बाप है, उस बाप की महिमा तुम बच्चों को करनी है। गाया भी जाता है सत् शिवबाबा, सत् शिव टीचर, सत् शिव गुरू। सच तो वह है ना। तुम बच्चे जानते हो हमको सत्य शिवबाबा मिला है। हम बच्चे अब श्रीमत पर एक मत बन रहे हैं। तो श्रीमत पर चलना चाहिए ना। बाप कहते हैं एक तो देही-अभिमानी बनो और बाप को याद करो। जितना याद करेंगे, अपना कल्याण करेंगे। तुम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो फिर से। आगे भी हमारी राजधानी थी। हम देवी-देवता धर्म वाले ही 84 जन्म भोग, अन्तिम जन्म में अभी संगम पर हैं। इस पुरूषोत्तम संगमयुग का सिवाए तुम बच्चों के और कोई को पता नहीं है। बाबा कितनी प्वाइंट्स देते हैं-बच्चे, अगर अच्छी रीति याद में रहेंगे तो बहुत खुशी में रहेंगे। परन्तु बाप को याद करने के बदले और दुनियावी बातों में पड़ जाते हैं। यह याद रहनी चाहिए कि हम श्रीमत पर अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं। गाया भी हुआ है ऊंच ते ऊंच भगवान, उनकी ही ऊंच ते ऊंच श्रीमत है। श्रीमत क्या सिखलाती है? सहज राजयोग। राजाई के लिए पढ़ा रहे हैं। अपने बाप के द्वारा सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानकर फिर दैवीगुण भी धारण करने हैं। बाप का कभी सामना नहीं करना चाहिए। बहुत बच्चे अपने को सर्विसएबुल समझ अहंकार में आ जाते हैं। ऐसे बहुत होते हैं। फिर कहाँ-कहाँ हार खा लेते हैं तो नशा ही उड़ जाता है। तुम मातायें तो अनपढ़ी हो। पढ़ी हुई होती तो कमाल कर दिखाती। पुरूषों में फिर भी पढ़े लिखे कुछ हैं। तुम कुमारियों को कितना नाम बाला करना चाहिए। तुमने श्रीमत पर राजाई स्थापन की थी। नारी से लक्ष्मी बनी थी तो कितना नशा रहना चाहिए। यहाँ तो देखो पाई पैसे की पढ़ाई में जान कुर्बान कर रहे हैं। अरे तुम गोरे बनते हो फिर काले, तमोप्रधान से क्यों दिल लगाते हो। इस कब्रिस्तान से दिल नहीं लगानी है। हम तो बाप से वर्सा ले रहे हैं। पुरानी दुनिया से दिल लगाना माना जहन्नुम (नर्क, दोजक) में जाना है। बाप आकर दोजक से बचाते हैं फिर भी मुंह दोज़क तरफ क्यों कर देते। तुम्हारी यह पढ़ाई कितनी सहज है। कोई ऋषि-मुनि नहीं जानते। न कोई टीचर, न कोई ऋषि-मुनि समझा सकते हैं। यह तो बाप-टीचर-गुरू भी है। वो गुरू लोग शास्त्र सुनाते हैं। उनको टीचर नहीं कहेंगे वह कोई ऐसे नहीं कहते कि हम दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते हैं। वह तो शास्त्रों की बातें ही सुनायेंगे। बाप तुमको शास्त्रों का सार समझाते हैं और फिर वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी भी बतलाते हैं। अब यह टीचर अच्छा या वह टीचर अच्छा? उस टीचर से तुम कितना भी पढ़ो, क्या कमायेंगे? सो भी नसीब। पढ़ते-पढ़ते कोई एक्सीडेंट हो जाए, मर जाए तो पढ़ाई खत्म। यहाँ तुम यह पढ़ाई जितनी भी पढ़ेंगे, वह व्यर्थ जायेगी नहीं। हाँ, श्रीमत पर न चल कुछ उल्टा चल पड़ते या गटर में जाकर गिर पड़ते तो जितना पढ़ा वह कोई चला नहीं जाता, यह पढ़ाई तो 21 जन्मों के लिए है। परन्तु गिरने से कल्प-कल्पान्तर का घाटा बहुत-बहुत पड़ जाता है। बाप कहते हैं - बच्चे, काला मुंह नहीं करो। ऐसे बहुत हैं जो काला मुंह करके, छी-छी बनकर फिर आकर बैठ जाते हैं। उनको कभी यह ज्ञान हज़म नहीं होगा। बद-हाजमा हो जाता है। जो सुनेगा वह बद-हाजमा हो जायेगा, फिर मुख से किसको कह न सके कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है, उन पर जीत पानी है। खुद ही जीत नहीं पाते तो औरों को कैसे कहेंगे! अन्दर खायेगा ना! उनको कहा जाता है आसुरी सम्प्रदाय, अमृत पीते-पीते विष खा लेते हैं तो 100 गुणा काले बन जाते हैं। हड्डी-हड्डी टूट जाती है।

तुम माताओं का संगठन तो बहुत अच्छा होना चाहिए। एम ऑब्जेक्ट तो सामने हैं। तुम जानते हो इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में एक देवी-देवता धर्म था। एक राज्य, एक भाषा, 100 परसेन्ट प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी थी। उस एक राज्य की ही बाप अभी स्थापना कर रहे हैं। यह है एम ऑब्जेक्ट। 100 परसेन्ट पवित्रता, सुख, शान्ति, सम्पत्ति की स्थापना अब हो रही है। तुम दिखाते हो विनाश के बाद श्रीकृष्ण आ रहा है। क्लीयर लिख देना चाहिए। सतयुगी एक ही देवी-देवताओं का राज्य, एक भाषा, पवित्रता, सुख, शान्ति फिर से स्थापन हो रही है। गवर्मेन्ट चाहती है ना। स्वर्ग होता ही है सतयुग-त्रेता में। परन्तु मनुष्य अपने को नर्कवासी समझते थोड़ेही हैं। तुम लिख सकते हो - द्वापर-कलियुग में सब नर्कवासी हैं। अभी तुम संगमयुगी हो। आगे तुम भी कलियुगी नर्कवासी थे, अब तुम स्वर्गवासी बन रहे हो। भारत को स्वर्ग बना रहे हैं श्रीमत पर। परन्तु वह हिम्मत, संगठन होना चाहिए। चक्कर पर जाते हैं तो यह चित्र लक्ष्मी-नारायण का ले जाना पड़े। अच्छा है। इसमें लिख दो आदि सनातन देवी-देवता धर्म, सुख-शान्ति का राज्य स्थापन हो रहा है - त्रिमूर्ति शिवबाबा की श्रीमत पर। ऐसे- ऐसे बड़े-बड़े अक्षर में बड़े-बड़े चित्र हों। छोटे बच्चे छोटे चित्र पसन्द करते हैं। अरे, चित्र तो जितना बड़ा हो उतना अच्छा। यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र तो बहुत अच्छा है। इसमें सिर्फ लिखना है एक ही सत्य त्रिमूर्ति शिवबाबा, सत्य त्रिमूर्ति शिव टीचर, सत्य त्रिमूर्ति शिव गुरू। त्रिमूर्ति अक्षर नहीं लिखेंगे तो समझेंगे परमात्मा तो निराकार है, वह टीचर कैसे हो सकता है। ज्ञान तो नहीं है ना। लक्ष्मी-नारायण का चित्र टीन की सीट पर बनाकर हर एक जगह पर रखना है, यह स्थापना हो रही है। बाप आये हैं ब्रह्मा द्वारा एक धर्म की स्थापना बाकी सबका विनाश करा देंगे। यह बच्चों को सदैव नशा रहना चाहिए। थोड़ी-थोड़ी बात में एक मत नहीं मिलती है तो झट बिगड़ जाते हैं। यह तो होता ही है। कोई किस तरफ, कोई किस तरफ, फिर मैजारिटी वाले को उठाया जाता है, इसमें रंज होने की बात नहीं। बच्चे रूठ पड़ते हैं। हमारी बात मानी नहीं गई। अरे, इसमें रूठने की क्या बात है। बाप तो सबको रिझाने वाला है। माया ने सबको रूसा दिया है, सब बाप से रूठे हुए हैं, रूठे भी क्या - बाप को जानते ही नहीं। जिस बाप ने स्वर्ग की बादशाही दी उनको जानते ही नहीं। बाप कहते हैं मैं तुम पर उपकार करता हूँ। तुम फिर मुझ पर अपकार करते हो। भारत का हाल देखो क्या है। तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जिनको नशा रहता है। यह है नारायणी नशा। ऐसे थोड़ेही कहना चाहिए कि हम तो राम-सीता बनेंगे। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही है नर से नारायण बनना। तुम फिर राम सीता बनने में खुश हो जाते हो, हिम्मत दिखानी चाहिए ना। पुरानी दुनि्ाया से बिल्कुल दिल नहीं लगानी चाहिए। कोई से दिल लगाई और मरे। जन्म-जन्मान्तर का घाटा पड़ जायेगा। बाबा से तो स्वर्ग के सुख मिलते हैं फिर हम नर्क में क्यों पड़ें। बाप कहते हैं तुम जब स्वर्ग में थे तो और कोई धर्म नहीं था। अभी ड्रामा अनुसार तुम्हारा धर्म है नहीं। कोई भी अपने को देवता धर्म का नहीं समझते हैं। मनुष्य होकर भी अपने धर्म को न जानें तो क्या कहा जाए। हिन्दू कोई धर्म थोड़ेही है। किसने स्थापन किया, यह भी नहीं जानते। तुम बच्चों को कितना समझाया जाता है। बाप कहते हैं मैं कालों का काल अब आया हूँ - सबको वापिस ले जाने। बाकी जो अच्छी रीति पढ़ेंगे वह विश्व का मालिक बनेंगे। अब चलो घर। यहाँ रहने लायक नहीं है, बहुत किचड़ा कर दिया है - आसुरी मत पर चलकर। बाप तो ऐसे कहेंगे ना। तुम भारतवासी जो विश्व के मालिक थे, अब कितने धक्के खाते रहते हो। लज्जा नहीं आती है। तुम्हारे में भी कोई हैं जो अच्छी रीति समझते हैं। नम्बरवार तो हैं ना। बहुत बच्चे तो नींद में रहते हैं। वह खुशी का पारा नहीं चढ़ता है। बाबा हमको फिर से राजधानी देते हैं। बाप कहते हैं - इन साधुओं आदि का भी मैं उद्धार करता हूँ। वह खुद न अपने को, न दूसरे को मुक्ति दे सकते हैं। सच्चा गुरू तो एक ही सतगुरू है, जो संगम पर आकर सबकी सद्गति करते हैं। बाप कहते हैं मैं आता हूँ कल्प के संगम युगे युगे, जबकि हमको सारी दुनिया को पावन बनाना है। मनुष्य समझते हैं बाप सर्वशक्तिमान् है, वह क्या नहीं कर सकते। अरे, मुझे बुलाते ही हो कि हम पतितों को पावन बनाओ तो मैं आकर पावन बनाता हूँ। बाकी और क्या करूँगा। बाकी तो रिद्धि-सिद्धि वाले बहुत हैं, मेरा काम ही है नर्क को स्वर्ग बनाना। वह तो हर 5 हज़ार वर्ष के बाद बनता है। यह तुम ही जानते हो। आदि सनातन है देवी-देवता धर्म। बाकी तो सब पीछे-पीछे आये हैं। अरविन्द घोस तो अभी आये तो भी देखो कितने उनके आश्रम बन गये हैं। वहाँ कोई निर्विकारी बनने की बात थोड़ेही है। वह तो समझते हैं गृहस्थ में रहते पवित्र कोई रह नहीं सकता। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ एक जन्म पवित्र रहो। तुम जन्म-जन्मान्तर तो पतित रहे हो। अब मैं आया हूँ तुमको पावन बनाने। यह अन्तिम जन्म पावन बनो। सतयुग-त्रेता में तो विकार होते ही नहीं।

यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र और सीढ़ी का चित्र बहुत अच्छा है। इनमें लिखा हुआ है - सतयुग में एक धर्म, एक राज्य था। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। बूढ़ी माताओं को भी सिखलाकर तैयार करना चाहिए, जो प्रदर्शनी में कुछ समझा सकें। कोई को भी यह चित्र दिखाकर बोलो इनका राज्य था ना। अभी तो है नहीं। बाप कहते हैं-अब तुम मुझे याद करो तो तुम पावन बनकर पावन दुनिया में चले जायेंगे। अब पावन दुनिया स्थापन हो रही है। कितना सहज है। बुढ़ियाँ बैठकर प्रदर्शनी पर समझायें तब नाम बाला हो। कृष्ण के चित्र में भी लिखत बहुत अच्छी है। बोलना चाहिए यह लिखत जरूर पढ़ो। इनको पढ़ने से ही तुमको नारायणी नशा अथवा विश्व के मालिक-पने का नशा चढ़ेगा।

बाप कहते हैं मैं तुमको ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनाता हूँ तो तुम्हें भी औरों पर रहम दिल बनना चाहिए। अपने पर भी कल्याण तब करेंगे जब दूसरे का भी करेंगे। बुढ़ियों को ऐसा सिखलाकर होशियार बनाओ जो प्रदर्शनी पर बाबा कहे कि 8-10 बुढ़ियों को भेजो तो झट आ जाएं। जो करेगा सो पायेगा। सामने एम ऑब्जेक्ट को देखकर ही खुशी होती है। हम यह शरीर छोड़ जाए विश्व के मालिक बनेंगे। जितना याद में रहेंगे उतना पाप कटेंगे। देखो लिफाफे पर छपा है - वन रिलीजन, वन डीटी किंगडम, वन लैंगवेज..... वह जल्दी स्थापन होगी। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कभी भी आपस में वा बाप से रूठना नहीं है, बाप रिझाने आये हैं इसलिए कभी रंज नहीं होना है। बाप का सामना नहीं करना है।
2) पुरानी दुनिया से, पुरानी देह से दिल नहीं लगानी है। सत बाप, सत टीचर और सतगुरू के साथ सच्चा रहना है। सदा एक की श्रीमत पर चल देही-अभिमानी बनना है।
वरदान:
अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा सर्व को वर्से का अधिकार दिलाने वाले आकर्षण-मूर्त भव!  
फरिश्ते स्वरूप की ऐसी चमकीली ड्रेस धारण करो जो दूर-दूर तक आत्माओं को अपनी तरफ आकर्षित करे और सर्व को भिखारीपन से छुड़ाए वर्से का अधिकारी बना दे। इसके लिए ज्ञान मूर्त, याद मूर्त और सर्व दिव्य गुण मूर्त बन उड़ती कला में स्थित रहने का अभ्यास बढ़ाते चलो। आपकी उड़ती कला ही सर्व को चलते-फिरते फरिश्ता सो देवता स्वरूप का साक्षात्कार करायेगी। यही विधाता, वरदाता पन की स्टेज है।
स्लोगन:
औरों के मन के भावों को जानने के लिए सदा मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहो।   
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30/10/15 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban

Sweet children, always remain aware that you are establishing your golden-aged kingdom by following shrimat and you will experience infinite happiness.   
Question:
Which children are unable to digest this food of knowledge?
Answer:
Those who make mistakes; those who become dirty and impure and then come and sit in class are unable to digest this knowledge. They can never say: God speaks: Lust is the greatest enemy. Their consciences will continue to bite them inside and they will become those of the Devil’s community.
Om Shanti
The Father sits here and explains to you spiritual children. Which Father is He? You children have to praise that Father. It is remembered: Shiv Baba, the Truth; Shiva, the True Teacher; Shiva, the true Guru. He is the Truth, is He not? You children know that you have found Shiv Baba, the Truth. You children are now becoming those who follow the directions of One according to shrimat. Therefore, you should follow shrimat. The Father says: Firstly, become soul conscious and remember the Father. The more you remember Him, the more you will benefit yourself. You are establishing your own kingdom once again. It was your kingdom previously. We, who belong to the deity religion, take 84 births and are now at the confluence age in our final birth. No one, but you children, knows about this most elevated confluence age. Baba gives you so many points: Children, if you stay in remembrance very well you remain very happy. However, instead of remembering the Father, some children get caught up in worldly matters. You should remember that you are establishing your own kingdom according to shrimat. God has been remembered as the Highest on High. His directions (shrimat) are the most elevated. What does shrimat teach you? Easy Raja Yoga. He is teaching you how to attain the kingdom. You have come to know the beginning, middle and end of the world from your Father and you now also have to imbibe divine virtues. Never oppose the Father! Many children consider themselves to be serviceable and become very arrogant. There are many children like that, but they sometimes become defeated and then their intoxication disappears. You mothers are illiterate. If you had been literate you would show wonders. Amongst the men, there are some who are educated. You kumaris should glorify Baba’s name so much. You previously established the kingdom according to shrimat; you changed from ordinary women into Lakshmi. Therefore, you should have so much intoxication. Here, people sacrifice their lives to a study worth a few pennies. Oh, but you are becoming beautiful! So, why do you attach your hearts to ugly and impure ones? You mustn’t attach your hearts to this graveyard. You are claiming your inheritance from the Father. To attach your heart to the old world means to go into the depths of hell. The Father has come to remove you from hell. So why, in spite of that, do you turn your faces towards hell? This study of yours is so easy. None of the rishis or munis know this. No teacher or rishi or muni can explain this to you. The Father is also your Teacher and your Guru. Those gurus relate the scriptures; they shouldn’t be called teachers. None of them say that they can relate the history and geography of the world. They only relate things from the scriptures. The Father explains to you the essence of the scriptures and also tells you the world history and geography. Is this Teacher good or is that teacher good? No matter how much you study with that teacher, how much would you be able to earn? And, that too depends on your fortune! If, while studying, someone has an accident and dies, all the study would be finished. No matter how much or how little you study this study here, none of it will go to waste. Yes, if someone doesn’t follow shrimat but performs wrong actions or falls into the gutter, the things he studied does not finish because this study is for 21 births. However, if he falls, there is a great deal of loss for cycle after cycle. The Father says: Children, don’t dirty your faces. There are many who dirty their faces; they become dirty and then come and sit here. They would never be able to digest this knowledge; they would have indigestion. Whatever they hear would cause them indigestion. They would be unable to tell anyone: God speaks: Lust is the greatest enemy and you have to conquer it. If they haven’t conquered it themselves, how can they tell others? Their consciences would bite them inside. They are called those who belong to the Devil’s community. While drinking nectar, they drink poison, and so they become one hundredfold ugly and their every bone is crushed. The gathering of you mothers should be very good. Your aim and objective is in front of you. You know that there was the one deity religion in the kingdom of Lakshmi and Narayan. There was one kingdom, one language, 100% purity, peace and prosperity. The Father is now establishing that one kingdom. That is the aim and objective. One hundred per cent purity, peace, happiness and prosperity are now being established. You show that Shri Krishna will come after destruction. You should write this very clearly. The one golden-aged kingdom of the deities – one language, purity, peace and happiness – is once again being established. The Government wants this. Heaven exists in the golden and silver ages. However, people don’t consider themselves to be residents of hell. You can write: In the copper and iron ages everyone is a resident of hell. You are now at the confluence age. Previously, you too were iron-aged residents of hell. You are now becoming residents of heaven. You are making Bharat into heaven by following shrimat. However, there should be that courage and unity. When you go on a tour, show the picture of Lakshmi and Narayan; it is very good. On it, write: The original, eternal, deity religion and the kingdom of peace and happiness are being established according to the shrimat of Trimurti Shiv Baba. You should have large pictures with big writing on them. Small children prefer small pictures. The bigger the pictures, the better! The picture of Lakshmi and Narayan is very good. You must simply write on that: The one Trimurti Shiv Baba, the Truth; Trimurti Shiva, the true Teacher; Trimurti Shiva, the true Guru. If you don’t write the word “Trimurti” they would wonder how, since God is incorporeal, He could be the Teacher. They don’t have knowledge. You should make pictures of Lakshmi and Narayan on tin and place them everywhere. Establishment is taking place. The Father has come to establish the one religion through Brahma and He will destroy everything else. You children should always have this intoxication. When some of you are unable to come to the same decision about a trivial matter, you very quickly become upset. This happens all the time. Some would be on one side and others on another side. Then the opinion of the side that has the majority is taken up. There is no need to get upset over that. However, some children sometimes sulk because their ideas are not accepted, but what is there to sulk about in that? The Father consoles everyone. Maya has made everyone sulk. Everyone is sulking with the Father. Since they don’t even know the Father, why should they sulk? They don’t know the Father who gave them the sovereignty of heaven. The Father says: I uplift everyone and you then defame Me! Look at the condition of Bharat! Among you too, there are very few who remain intoxicated. This is the intoxication of becoming Narayan. You mustn’t say that you will become Rama or Sita. Your aim and objective is to change from an ordinary human into Narayan. How could you then become happy with becoming Rama or Sita? You have to show that you have courage. You mustn’t attach your hearts to the old world at all. Anyone who attaches his or her heart to anyone will die. There will then be a great loss for birth after birth. You are to receive the happiness of heaven from Baba. In that case, why should we still be in hell? The Father says: When you were in heaven, there were no other religions. Now, according to the drama, your religion doesn’t exist. No one thinks of himself as belonging to the deity religion. What can be said if a human being doesn’t know his own religion? Hinduism is not a religion. They don’t even know who established it. So much is explained to you children. The Father says: I, the Death of all Deaths, have now come to take everyone back home. All of those who study well will become the masters of the world. Now, let’s go home! This place is not worth living in. By devilish dictates being followed, a lot of rubbish is created. The Father would say this, would He not? You people of Bharat, who were the masters of the world, are now stumbling around so much. Aren’t you ashamed? There are some among you who understand this very well. It is numberwise, after all. Many children remain asleep. Their mercury of happiness doesn’t rise. Baba is giving us the kingdom once again. The Father says: I uplift these sages etc. They can neither grant liberation to themselves nor to others. The true Guru is only the one Satguru who comes at the confluence age to grant salvation to everyone. The Father says: I come at the confluence age of every cycle when I have to purify the whole world. People believe that because the Father is the Almighty Authority, there is nothing He can’t do. Oh! But, you impure ones call out to Me to come and make you pure. Therefore, I come and purify everyone. What else would I do? There are many who have occult power. My task is to change hell into heaven. That is created every 5000 years. Only you know this. The original eternal religion is that of the deities; all other religions come later. Aurobindo Ghose started his ashram recently (1926). Now, look how many ashrams of his there are! There, there is no question of becoming viceless. They believe that no one can remain pure whilst living at home with the family. The Father says: Whilst living at home with your family, remain pure for just one birth. You have been impure for birth after birth. I have now come to purify you. Become pure in this last birth. There are no vices in the golden and silver ages. The pictures of Lakshmi and Narayan and the ladder are very good. It is written on them: There was one religion and one kingdom in the golden age. You need to explain in the right way. You must also teach and prepare the old mothers so that they too can explain at exhibitions. They should show this picture to everyone and tell them: It used to be their kingdom, but it no longer exists. The Father says: Now remember Me and you will become pure and go to the pure world. The pure world is now being established. It is so easy! When you old mothers sit and explain at the exhibitions your name will then be glorified. The writing on the picture of Krishna is very good. You should tell them: You must definitely read this writing. Only by reading this will you have the intoxication of becoming Narayan and the masters of the world. The Father says: I am making you become like Lakshmi and Narayan. Therefore, you should also be merciful to others. Only when you benefit others can you bring benefit to yourself. Teach the old mothers in this way and make them clever, so that when Baba asks for eight to ten old women to come to explain at the exhibitions, they instantly come running. Those who do something will receive the return of it. Seeing your aim and objective in front of you, there is great happiness. I will renounce this body and become a master of the world. Your sins will be absolved according to how much you stay in remembrance. On the envelopes, it is printed: One religion, one deity kingdom and one language. That will very soon be established. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost, now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Never sulk among yourselves or with the Father.The Father has come to console you. Therefore, never become upset. Never oppose the Father.
2. Don’t attach your heart to the old world or an old body. Remain true to the true Father, the true Teacher and the Satguru. Constantly follow the shrimat of the One and be soul conscious.
Blessing:
May you be an image that attracts and gives everyone a right to their inheritance through your angelic form.   
Adopt such a sparkling dress of the angelic form that souls are attracted to you from a distance and everyone is liberated from their beggary nature and given a right to their inheritance. For this, become an embodiment of knowledge, an embodiment of remembrance and an embodiment of all divine virtues and continue to increase the practice of remaining stable in the flying stage. Your flying stage will enable everyone to have a vision of your mobile angel and deity forms. This is the stage of being a bestower of fortune and a bestower of blessings.
Slogan:
In order to know the feelings in the minds of others, remain constantly stable in the stage of “Manmanabhav”.  
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Desktops for October 2015

 

Desktops for October 2015







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★★Murli Quotations -30-09-2015★★
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1. Bap ka kabhi samna nahi karna
2. Never oppose Father
3. Aaj Ka Slogan
4. Today's Slogan
5. Aaj Ka vardan
6. Today's Blessing 

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Tuesday, September 29, 2015

30-09-15 मुरली कविता

30-09-15 मुरली कविता

श्रीमत पर स्थापित हो रही... सतयुगी राजधानी
यही स्मृति रहे तो हो हरदम.. अपार ख़ुशी
जो करते भूले,छि: छि:(पतित) बन क्लास में आते
उन्हें यह ज्ञान फिर नही होता हज़म
वह फिर आसुरी संप्रदाय के हो जाते
रूठना नही बाप से और आपस में...बाप आये जब रिझाने
सत -बाप ,सत -शिक्षक और सतगुरु से रहना सदा सच्चा
ज्ञान-मूर्त,याद-मूर्त,और दिव्य गुण-मूर्त बन उड़ती कला में रहना स्थित
यही फरिश्ता सो देवता का साक्षात्कार करायेगा
यही वरदाता,विधातापन की है ऊँची स्टेज
औरों के मन के भावों को जानना तो.. मनमनाभव की स्थिति में रहो स्थित
ॐ शांति!!!
मेरा बाबा!!!
  

Daily Positive Thoughts: September 30, 2015: Life

Daily Positive Thoughts: September 30, 2015: Life







Life

Your thoughts guide you to your destiny. If you always think the same you will always get to the same place. Think in a new way and you will be a new person.


Contentment brings discipline in life. 

To be content is to appreciate everything that is in my life. When I life live well, I will make use of everything that I have. At the same time, I will be open to new things without getting overly ambitious. This will ensure that I respect everything I do. This automatically sets a pattern and a discipline in my life and within this pattern itself there will be margin for new things. Today I will set up my routine for the day. While I set up a routine for the physical tasks that I do, I will also set up a routine for the mind. I will ensure that internally I appreciate everything that I do. That means, I am clear about the significance of the task and what quality I need to use while doing it.



Conquering The Emotion Of Jealousy (cont.)

Internal contentment or satisfaction is the antidote (neutralizer or healing agent) for jealousy. People with strong self-esteem and self-respect are the ones who remain satisfied or content and away from the emotion of jealousy while coming in contact with different people with their own unique specialties, virtues and attainments.

Self-respect or self-esteem depends on knowing who I am, knowing my eternal (ageless), internal self. When I have found that sense of internal identity, I feel I have a right to be here, to exist. Without this dimension, it is very difficult to really respect myself deeply. If I base my self-respect on identifying with the superficial (artificial) aspects of my being: my looks, personality, wealth, success, my friends, intelligence or my role, I will never have a stable sense of self-respect, because all these aspects are changeable. Thus I will end up fluctuating all the time. To stay stable in my self-respect, I need to have a deeper understanding of my internal self and tap into those riches that are within me forever, waiting to blossom, like the flower from the seed. As I become internally aware, those riches and resources start flowing out of me. The more stable I am in my self-respect, the more I radiate what I truly am. I feel a deep sense of contentment and I am happy to be me, however I am. I accept myself as I am.

Let us be honest a person who is jealous just cannot sit stably on the seat of self-respect - they keep moving i.e. fluctuating. Today they meet a person with lesser specialties or attainments than them and they are on top of the world - they rise above the seat of self-respect and enter the dimension of ego. Tomorrow they meet a person with more specialties or attainments than them and that is a bad day for them - they go underneath the seat of self-respect and enter the dimension of low self-esteem. What a shallow way of living! The ideal way of living - in both cases, remain in self-respect and give respect to the other. Remember that the jealous, the angry, the bitter and the egotistical are the first to race to the top of mountains. A confident and internally content person enjoys the journey, the people they meet along the way and sees life not as a competition. They reach the summit last because they know God isn't at the top waiting for them. He is down below helping his followers to understand that the view is glorious where ever you stand.



Soul Sustenance

Understanding The Mechanism Of The Virtue Of Peace (Part 3) 

To experience the eternal peace of the soul world, I do the simple exercise explained yesterday and then go a step further. Having created the thought about myself that I am a sparkling star-like energy at the centre of the forehead, just above the eyebrows, visualized it and as a result experienced it, now my objective is visualizing my star like form in the soul world. With this objective in mind, I now create a simple thought that I the star-like energy will make a short journey to the soul world and back. So I create simple thoughts and visualize alongside that I, the soul am leaving my physical body and flying outside. Then I, see my star like form, slowly fly past the ceiling of the room I am in and see myself suspended in the sky (night sky makes the visualization more easy). I see myself as a point of radiant light high above many many buildings and lights. This is similar to what one would see from an aeroplane window while landing or taking off. I then see my light form going higher, past the atmosphere and going past a sea of stars and a few planets and the moon. I then take this visualization further and see myself entering the soul world, a region of soft orange-red light (this is similar to how it looks like at dusk). This region is multidimensional and unlimited in size or expanse. I see my star-like form suspended in this region, radiating rays of peace in all directions. I also see other white/golden star-like souls just like me in the same region. I spend some time in this region, in this experience. In this region my thoughts stop completely and I am only visualizing.

This is the eternal peace experienced whilst visualizing the spiritual self in the soul world. The peace experienced in this exercise is greater than in the exercise mentioned yesterday. Thus the sanskara of peace created in the soul in this exercise is deeper. After a few minutes of this experience, I see myself descending in the physical body in exactly the same way as I flew to the soul world.This is just a visualization exercise or experience and the soul does not actually leave the body and go anywhere. The two practical exercises explained in yesterday's and today's message can be used to experience the two types of peace mentioned. At one time, you can choose to either experience both types or only the first one. You can start with a few minutes and increase the time gradually. Continuous practice will create stronger sanskaras of peace and take you closer to your original state of peace. 



Message for the day 

The method to get help is to take the first step of courage.
Projection: When I set out to achieve something, I usually expect help from situations or people, but am not always able to get it. Then I tend to become disheartened and sometimes tend to give up the task altogether.

Solution: The right way to get help is to first take a step forward even in the most negative situations. With courage and faith when I start in whatever little way I can, I find the help coming to me. Then I will neither stop nor give up with the little setbacks that I am faced with.

In Spiritual Service,
Brahma Kumaris


How to Take Criticism

The key to taking criticism constructively is taking criticism gracefully. 
When criticised, pause your reaction, calm your emotions & then respond gracefully. Take criticism gracefully & better your ability to constructively deconstruct the criticism. Take the helpful tips & discard the rest.

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★★Murli Quotations -29-09-2015★★
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1. Gyaan Talwar Me Yaad Ka Johar Bharna Hai.
2. You Will Influence Others When You are Strong In Yoga

3. Aaj Ka Slogan
4. Today's Slogan
5. Aaj Ka vardan
6. Today's Blessing 

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Essence Murli Hindi & English - 29-09-2015

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Essence Murli Hindi & English - 29-09-2015
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मुरली सार:- ``मीठे बच्चे - यह ड्रामा का खेल एक्यूरेट चल रहा है, जिसका जो पार्ट जिस घड़ी होना चाहिए, वही रिपीट हो रहा है, यह बात यथार्थ रीति समझना है'' 

प्रश्न:- तुम बच्चों का प्रभाव कब निकलेगा? अभी तक किस शक्ति की कमी है? 

उत्तर:- जब योग में मजबूत होंगे तब प्रभाव निकलेगा। अभी वह जौहर नहीं है। याद से ही शक्ति मिलती है। ज्ञान तलवार में याद का जौहर चाहिए, जो अभी तक कम है। अगर अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो तो बेड़ा पार हो जायेगा। यह सेकण्ड की ही बात है। 

धारणा के लिए मुख्य सार:- 
1) मन्दिरों आदि को देखते सदा यह स्मृति रहे कि यह सब हमारे ही यादगार हैं। अब हम ऐसा लक्ष्मी-नारायण बन रहे हैं। 
2) गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहना है। हंस और बगुले साथ हैं तो बहुत युक्ति से चलना है। सहन भी करना है। 

वरदान:- सर्व समस्याओं की विदाई का समारोह मनाने वाले समाधान स्वरूप भव 

समाधान स्वरूप आत्माओं की माला तब तैयार होगी जब आप अपनी सम्पूर्ण स्थिति में स्थित होंगे। सम्पूर्ण स्थिति में समस्यायें बचपन का खेल अनुभव होती हैं अर्थात् समाप्त हो जाती हैं। जैसे ब्रह्मा बाप के सामने यदि कोई बच्चा समस्या लेकर आता था तो समस्या की बातें बोलने की हिम्मत भी नहीं होती थी, वह बातें ही भूल जाती थी। ऐसे आप बच्चे भी समाधान स्वरूप बनो तो आधाकल्प के लिए समस्याओं का विदाई समारोह हो जाए। विश्व की समस्याओं का समाधान ही परिवर्तन है। 

स्लोगन:- जो सदा ज्ञान का सिमरण करते हैं वे माया की आकर्षण से बच जाते हैं।
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Essence: Sweet children, the playing of this drama is moving accurately. Whatever part is to be played at any specific time, it repeat accordingly. This has to be understood accurately. 

Question: When will you children influence others? What power is still lacking now? 

Answer: You will influence others when you are strong in yoga. At yet, there isn’t that power. It is only by having remembrance that you receive power. The power of remembrance that is still lacking is required in the sword of knowledge. When you consider yourself to be a soul and continue to remember the Father, your boat can go across. This is a matter of a second. 

Essence for dharna: 
1. While visiting temples, always remain aware that they are all your memorials. We are now becoming like Lakshmi and Narayan. 
2. While living at home with your family, live like a lotus flower. When swans and storks live together they have to live with great diplomacy and also tolerate a great deal. 

Blessing: May you celebrate the ceremony of bidding farewell to all problems and become an embodiment of solutions. 

A rosary of souls who are embodiments of solutions will be prepared when you remain stable in your complete and perfect stage. In the stage of perfection, problems are experienced to be child’s play, that is, they finish. For instance, when any child came in front of Father Brahma with a problem, he wouldn’t have the courage to speak of his problems; those things would be forgotten. Similarly, you children have to become embodiments of solutions so that there can be the farewell ceremony to problems for half the cycle. The solution to the problems of the world is transformation. 

Slogan: Those who constantly churn knowledge are protected from any attraction of Maya.
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खुद से और खुदा से कर लिया हमने वादा

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       ★~*MERA BABA *~★    
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खुद से और खुदा से कर लिया हमने वादा

सम्पूर्ण पावन बनने का लेकर चलेंगे इरादा

पीछे नहीं हटेंगे जिस राह पर चल पड़े हम

नहीं लड़खड़ायेंगे इस रस्ते पर हमारे कदम

हौसला नहीं होने देंगे हमारा कभी भी कम

सम्पूर्णता की मंजिल को पाकर ही लेंगे दम

देखकर बाबा को बाबा जैसा बनते जाएंगे

ईश्वरीय मत के सांचे में हर पल ढलते जाएंगे

अगर कभी माया दुश्मन हमारी राह में आएगी

ज्ञान योग की अग्नि से पूरी भस्म हो जाएगी

विचलित नहीं होगा अंगद समान हमारा कदम

श्रीमत पर चलकर हम कमाई करेंगे पदमापदम

अवगुण रूपी हर कांटा हम जड़ से मिटा देंगे

हर आत्मा का जीवन गुण पुष्पों से सजा देंगे

विकारों का साम्राज्य इस जग से मिटा डालेंगे

खाते हैं कसम इस धरा को स्वर्ग बना डालेंगे

ॐ शांति
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Tuesday, September 22, 2015

"● Baba Say's" (“● बाबा कहते हैं”) - 23-09-2015

“● बाबा कहते हैं”

प्रेरक अक्षर भी रांग है। 

प्रेरणा यानी विचार। प्रेरणा का कोई और अर्थ नहीं है। परमात्मा कोई प्रेरणा से काम नहीं करता। न प्रेरणा से ज्ञान मिल सकता है। बाप आते हैं इन कर्मेन्द्रियों द्वारा पार्ट बजाने। करनकरावनहार है ना। करायेंगे बच्चों से। शरीर बिगर तो कर न सकें। इन बातों को कोई भी जानते नहीं। न ईश्वर बाप को ही जानते हैं।

बाप आयेंगे नई दुनिया की स्थापना पुरानी दुनिया का विनाश कराने। नई दुनिया की स्थापना होगी तो पुरानी दुनिया का विनाश जरूर होगा, इसके लिए यह लड़ाई है। इसमें शंकर के प्रेरणा आदि की तो कोई बात नहीं। 

यह सब प्वाइंट्स बाबा रिवाइ॰ज कराते हैं। प्वाइंट्स याद नहीं पड़ती हैं तो बाबा को याद करो।बाप भूल जाता है तो टीचर को याद करो। टीचर जो सिखलाते हैं वह भी जरूर याद आयेगा ना। टीचर भी याद रहेगा, नॉलेज भी याद रहेगी।

जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। बाप ने समझाया है याद की यात्रा है मुख्य। 

अब ईश्वरीय मत मिलती है। ईश्वरीय मत से चढ़ती कला में जाते हैं। ईश्वरीय मत देने वाला एक है। अभी तुमको एक की मत मिलती है जो 21 जन्म काम आती है। तो ऐसे श्रीमत पर चलना चाहिए ना?

जितना चलेंगे उतना श्रेष्ठ पद पायेंगे। श्रीमत है ही भगवान की। ऊंच ते ऊंच भगवान ही है। 

🌹🌿ओम् शान्ति🌿🍃
ब्रह्माकुमारी सेवा। मंगलूर।

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"● Baba Say's"

It is wrong to use the word “Inspirer”. 

Inspiration means thought – inspiration has no other meaning. Neither does the Supreme Soul work by giving inspiration, nor can knowledge be received through inspiration. The Father comes to play a part through these physical organs. He is Karankaravanhar. He works through the children. He cannot do anything without a body. No one knows these things nor does anyone know God, the Father.

The Father comes to carry out establishment of the new world and destruction of the old world. When establishment of the new world takes place, the old world is then definitely destroyed because this is what that war is for. There is no question of inspiration from Shankar etc. in this. 

Baba revises all these points with you. If you can’t remember the points, then simply remember Baba. If you forget the Father, then remember the Teacher. You would surely remember what your Teacher teaches, would you not? By remembering the Teacher, you will also remember the knowledge.

You will claim a high status according to how much you study. The Father has explained that the pilgrimage of remembrance is the main thing.

We are now receiving God’s directions. By following God’s directions we go into the ascending stage. Only the One gives us God’s directions. These will be useful to you for 21 births. Therefore, you should follow such directions, should you not?

You claim an elevated status according to how much you follow directions.Shrimat comes from God. God is the Highest on High. 

🌹🌿Om Shanti🌿🍃,
Brahma Kumaris Seva, Mangalore.

Murli Hindi & English: -23-09-2015


23-09-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - इस बेहद के नाटक में तुम आत्माओं को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है, अभी तुम्हें यह शरीर रूपी कपड़े उतार घर जाना है, फिर नये राज्य में आना है”   

प्रश्न:
बाप कोई भी कार्य प्रेरणा से नहीं करते, उनका अवतरण होता है, यह किस बात से सिद्ध होता है?

उत्तर:
बाप को कहते ही हैं करनकरावनहार। प्रेरणा का तो अर्थ है विचार। प्रेरणा से कोई नई दुनिया की स्थापना नहीं होती है। बाप बच्चों से स्थापना कराते हैं, कर्मेन्द्रियों बिगर तो कुछ भी करा नहीं सकते इसलिए उन्हें शरीर का आधार लेना होता है।
ओम् शान्ति।
रूहानी बच्चे रूहानी बाप के सामने बैठे हैं। गोया आत्मायें अपने बाप के सम्मुख बैठी हैं। आत्मा जरूर जिस्म के साथ ही बैठेगी। बाप भी जब जिस्म लेते हैं तब ही सम्मुख होते हैं इसको ही कहा जाता है आत्मा-परमात्मा अलग रहे..... तुम बच्चे समझते हो ऊंच ते ऊंच बाप को ही ईश्वर, प्रभु, परमात्मा भिन्न नाम दिये हैं, परमपिता कभी लौकिक बाप को नहीं कहा जाता है। सिर्फ परमपिता लिखा तो भी हर्जा नहीं है। परमपिता अर्थात् वह सभी का पिता है एक। बच्चे जानते हैं हम परमपिता के साथ बैठे हैं। परमपिता परमात्मा और हम आत्मायें शान्तिधाम के रहने वाले हैं। यहाँ पार्ट बजाने आते हैं, सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक पार्ट बजाया है, यह हो गई नई रचना। रचता बाप ने समझाया है कि तुम बच्चों ने ऐसे पार्ट बजाया है। आगे यह नहीं जानते थे कि हमने 84 जन्मों का चक्र लगाया है। अभी तुम बच्चों से ही बाप बात करते हैं, जिन्होंने 84 का चक्र लगाया है। सब तो 84 जन्म नहीं ले सकते हैं। यह समझाना है कि 84 का चक्र कैसे फिरता है। बाकी लाखों वर्ष की तो बात ही नहीं। बच्चे जानते हैं कि हम हर 5 हज़ार वर्ष बाद पार्ट बजाने आते हैं। हम पार्टधारी हैं। ऊंच ते ऊंच भगवान का भी विचित्र पार्ट है। ब्रह्मा और विष्णु का विचित्र पार्ट नहीं कहेंगे। दोनों ही 84 का चक्र लगाते हैं। बाकी शंकर का पार्ट इस दुनिया में तो है नहीं। त्रिमूर्ति में दिखाते हैं - स्थापना, विनाश, पालना। चित्रों पर समझाना होता है। चित्र जो दिखाते हो उस पर समझाना है। संगमयुग पर पुरानी दुनिया का विनाश तो होना ही है। प्रेरक अक्षर भी रांग है। जैसे कोई कहते हैं आज हमको बाहर जाने की प्रेरणा नहीं है, प्रेरणा यानी विचार। प्रेरणा का कोई और अर्थ नहीं है। परमात्मा कोई प्रेरणा से काम नहीं करता। न प्रेरणा से ज्ञान मिल सकता है। बाप आते हैं इन कर्मेन्द्रियों द्वारा पार्ट बजाने। करनकरावनहार है ना। करायेंगे बच्चों से। शरीर बिगर तो कर न सकें। इन बातों को कोई भी जानते नहीं। न ईश्वर बाप को ही जानते हैं। ऋषि-मुनि आदि कहते थे हम ईश्वर को नहीं जानते। न आत्मा को, न परमात्मा बाप को, कोई में ज्ञान नहीं है। बाप है मुख्य क्रियेटर, डायरेक्टर, डायरेक्शन भी देते हैं। श्रीमत देते हैं। मनुष्यों की बुद्धि में तो सर्वव्यापी का ज्ञान है। तुम समझते हो बाबा हमारा बाबा है, वो लोग सर्वव्यापी कह देते हैं तो बाप समझ ही नहीं सकते। तुम समझते हो यह बेहद के बाप की फैमिली है। सर्वव्यापी कहने से फैमिली की खुशबू नहीं आती। उनको कहा जाता है निराकारी शिवबाबा। निराकारी आत्माओं का बाबा। शरीर है तब आत्मा बोलती है कि बाबा। बिगर शरीर तो आत्मा बोल न सके। भक्ति मार्ग में बुलाते आये हैं। समझते हैं वह बाबा दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। सुख मिलता है सुखधाम में। शान्ति मिलती है शान्तिधाम में। यहाँ है ही दु:ख। यह ज्ञान तुमको मिलता है संगम पर। पुराने और नये के बीच। बाप आते ही तब हैं जब नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश होना है। पहले हमेशा कहना चाहिए नई दुनिया की स्थापना। पहले पुरानी दुनिया का विनाश कहना रांग हो जाता है। अभी तुमको बेहद के नाटक की नॉलेज मिलती है। जैसे उस नाटक में एक्टर्स आते हैं तो घर से साधारण कपड़े पहनकर आते फिर नाटक में आकर कपड़े बदलते हैं। फिर नाटक पूरा हुआ तो वह कपड़े उतार कर घर जाते हैं। यहाँ तुम आत्माओं को घर से अशरीरी आना होता है। यहाँ आकर यह शरीर रूपी कपड़े पहनते हो। हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। यह है बेहद का नाटक। अभी यह बेहद की सारी दुनिया पुरानी है फिर होगी नई दुनिया। वह बहुत छोटी है, एक धर्म है। तुम बच्चों को इस पुरानी दुनिया से निकल फिर हद की दुनिया में, नई दुनिया में आना है क्योंकि वहाँ है एक धर्म। अनेक धर्म, अनेक मनुष्य होने से बेहद हो जाती। वहाँ तो है एक धर्म, थोड़े मनुष्य। एक धर्म की स्थापना के लिए आना पड़ता है। तुम बच्चे इस बेहद के नाटक के राज़ को समझते हो कि यह चक्र कैसे फिरता है। इस समय जो कुछ प्रैक्टिकल में होता है उसका ही फिर भक्ति मार्ग में त्योहार मनाते हैं। नम्बरवार कौन-कौन से त्योहार हैं, यह भी तुम बच्चे जानते हो। ऊंच ते ऊंच भगवान शिवबाबा की जयन्ती कहेंगे। वह जब आये तब फिर और त्योहार बनें। शिवबाबा पहले-पहले आकर गीता सुनाते हैं अर्थात् आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते हैं। योग भी सिखाते हैं। साथ-साथ तुमको पढ़ाते भी हैं। तो पहले-पहले बाप आया शिवजयन्ती हुई फिर कहेंगे गीता जयन्ती। आत्माओं को ज्ञान सुनाते हैं तो गीता जयन्ती हो गई। तुम बच्चे विचार कर त्योहारों को नम्बरवार लिखो। इन बातों को समझेंगे भी अपने धर्म के। हर एक को अपना धर्म प्यारा लगता है। दूसरे धर्म वालों की बात ही नहीं। भल किसको दूसरा धर्म प्यारा हो भी परन्तु उसमें आ न सकें। स्वर्ग में और धर्म वाले थोड़ेही आ सकते हैं। झाड़ में बिल्कुल साफ है। जो जो धर्म जिस समय आते हैं फिर उस समय आयेंगे। पहले बाप आते हैं, वही आकर राजयोग सिखलाते हैं तो कहेंगे शिवजयन्ती सो फिर गीता जयन्ती फिर नारायण जयन्ती। वह तो हो जाता सतयुग। वो भी लिखना पड़े नम्बरवार। यह ज्ञान की बातें हैं। शिव जयन्ती कब हुई वह भी पता नहीं है, ज्ञान सुनाया, जिसको गीता कहा जाता है फिर विनाश भी होता है। जगत अम्बा आदि की जयन्ती का कोई हॉली डे नहीं है। मनुष्य किसी की भी तिथि-तारीख आदि को बिल्कुल नहीं जानते हैं। लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता के राज्य को ही नहीं जानते। 2500 वर्ष में जो आये हैं, उनको जानते हैं परन्तु उनसे पहले जो आदि सनातन देवी-देवता थे, उनको कितना समय हुआ, कुछ नहीं जानते। 5 हज़ार वर्ष से बड़ा कल्प तो हो न सके। आधा तरफ तो ढेर संख्या आ गई, बाकी आधा में इनका राज्य। फिर जास्ती वर्षों का कल्प हो कैसे सकता। 84 लाख जन्म भी नहीं हो सकते। वो लोग समझते हैं कलियुग की आयु लाखों वर्ष है। मनुष्यों को अंधियारे में डाल दिया है। कहाँ सारा ड्रामा 5 हज़ार वर्ष का, कहाँ सिर्फ कलियुग के लिए कहते कि अभी 40 हज़ार वर्ष शेष हैं। जब लड़ाई लगती है तो समझते हैं भगवान को आना चाहिए लेकिन भगवान को तो आना चाहिए संगम पर। महाभारत लड़ाई तो लगती ही है संगम पर। बाप कहते हैं मैं भी कल्प-कल्प संगमयुग पर आता हूँ। बाप आयेंगे नई दुनिया की स्थापना पुरानी दुनिया का विनाश कराने। नई दुनिया की स्थापना होगी तो पुरानी दुनिया का विनाश जरूर होगा, इसके लिए यह लड़ाई है। इसमें शंकर के प्रेरणा आदि की तो कोई बात नहीं। अन्डरस्टुड पुरानी दुनिया खलास हो जायेगी। मकान आदि तो अर्थक्वेक में सब खलास हो जायेंगे क्योंकि नई दुनिया चाहिए। नई दुनिया थी जरूर। देहली परिस्तान थी, जमुना का कण्ठा था। लक्ष्मी- नारायण का राज्य था। चित्र भी हैं। लक्ष्मी-नारायण को स्वर्ग का ही कहेंगे। तुम बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है कि कैसे स्वंयवर होता है। यह सब प्वाइंट्स बाबा रिवाइज़ कराते हैं। अच्छा प्वाइंट्स याद नहीं पड़ती हैं तो बाबा को याद करो। बाप भूल जाता है तो टीचर को याद करो। टीचर जो सिखलाते हैं वह भी जरूर याद आयेगा ना। टीचर भी याद रहेगा, नॉलेज भी याद रहेगी। उद्देश्य भी बुद्धि में है। याद रखना ही पड़े क्योंकि तुम्हारी स्टूडेन्ट लाइफ है ना। यह भी जानते हो जो हमको पढ़ाते हैं वह हमारा बाप भी है, लौकिक बाप कोई गुम नहीं हो जाता है। लौकिक, पारलौकिक और फिर यह है अलौकिक। इनको कोई याद नहीं करते। लौकिक बाप से तो वर्सा मिलता है। अन्त तक याद रहती है। शरीर छोड़ा फिर दूसरा बाप मिलता है। जन्म बाई जन्म लौकिक बाप मिलते हैं। पारलौकिक बाप को भी दु:ख व सुख में याद करते हैं। बच्चा मिला तो कहेंगे ईश्वर ने बच्चा दिया। बाकी प्रजापिता ब्रह्मा को क्यों याद करेंगे, इनसे कुछ मिलता थोड़ेही है। इनको अलौकिक कहा जाता है।

तुम जानते हो हम ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा से वर्सा ले रहे हैं। जैसे हम पढ़ते हैं, यह रथ भी निमित्त बना हुआ है। बहुत जन्मों के अन्त में इनका शरीर ही रथ बना है। रथ का नाम तो रखना पड़ता है ना। यह है बेहद का सन्यास। रथ कायम ही रहता है, बाकी का ठिकाना नहीं है। चलते-चलते फिर भागन्ती हो जाते। यह रथ तो मुकरर है ड्रामा अनुसार, इनको कहा जाता है भाग्यशाली रथ। तुम सबको भाग्यशाली रथ नहीं कहेंगे। भाग्यशाली रथ एक माना जाता है, जिसमें बाप आकर ज्ञान देते हैं। स्थापना का कार्य कराते हैं। तुम भाग्यशाली रथ नहीं ठहरे। तुम्हारी आत्मा इस रथ में बैठ पढ़ती है। आत्मा पवित्र बन जाती इसलिए बलिहारी इस तन की है जो इसमें बैठ पढ़ाते हैं। यह अन्तिम जन्म बहुत वैल्युबल है फिर शरीर बदल हम देवता बन जायेंगे। इस पुराने शरीर द्वारा ही तुम शिक्षा पाते हो। शिवबाबा के बनते हो। तुम जानते हो हमारी पहली जीवन वर्थ नाट ए पेनी थी। अब पाउण्ड बन रही है। जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। बाप ने समझाया है याद की यात्रा है मुख्य। इनको ही भारत का प्राचीन योग कहते हैं जिससे तुम पतित से पावन बनते हो, स्वर्गवासी तो सब बनते हैं फिर है पढ़ाई पर मदार। तुम बेहद के स्कूल में बैठे हो। तुम ही फिर देवता बनेंगे। तुम समझ सकते हो ऊंच पद कौन पा सकते हैं। उनकी क्वालिफिकेशन क्या होनी चाहिए। पहले हमारे में भी क्वालिफिकेशन नहीं थी। आसुरी मत पर थे। अब ईश्वरीय मत मिलती है। आसुरी मत से हम उतरती कला में जाते हैं। ईश्वरीय मत से चढ़ती कला में जाते हैं। ईश्वरीय मत देने वाला एक है, आसुरी मत देने वाले अनेक हैं। माँ-बाप, भाई-बहन, टीचर-गुरू कितनों की मत मिलती है। अभी तुमको एक की मत मिलती है जो 21 जन्म काम आती है। तो ऐसे श्रीमत पर चलना चाहिए ना। जितना चलेंगे उतना श्रेष्ठ पद पायेंगे। कम चलेंगे तो कम पद। श्रीमत है ही भगवान की। ऊंच ते ऊंच भगवान ही है, जिसने कृष्ण को ऊंच ते ऊंच बनाया फिर नीच ते नीच रावण ने बनाया। बाप गोरा बनाते फिर रावण सांवरा बनाते। बाप वर्सा देते हैं। वह तो है ही वाइसलेस। देवताओं की महिमा गाते हैं सर्वगुण सम्पन्न...... सन्यासियों को सम्पूर्ण निर्विकारी नहीं कहेंगे। सतयुग में आत्मा और शरीर दोनों पवित्र होते हैं। देवताओं को सब जानते हैं, वो सम्पूर्ण निर्विकारी होने के कारण सम्पूर्ण विश्व के मालिक बनते हैं। अभी नहीं हैं, फिर तुम बनते हो। बाप भी संगमयुग पर ही आते हैं। ब्रह्मा के द्वारा ब्राह्मण। ब्रह्मा के बच्चे तो तुम सब ठहरे। वह है ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर। बोलो प्रजापिता ब्रह्मा का नाम नहीं सुना है? परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा ही सृष्टि रचेंगे ना। ब्राह्मण कुल है। ब्रह्मा मुख वंशावली भाई-बहिन हो गये। यहाँ राजा-रानी की बात नहीं। यह ब्राह्मण कुल तो संगम का थोड़ा समय चलता है। राजाई न पाण्डवों की है, न कौरवों की। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) 21 जन्म श्रेष्ठ पद का अधिकारी बनने के लिए सब आसुरी मतों को छोड़ एक ईश्वरीय मत पर चलना है। सम्पूर्ण वाइसलेस बनना है।
2) इस पुराने शरीर में बैठ बाप की शिक्षाओं को धारण कर देवता बनना है। यह है बहुत वैल्युबल जीवन, इसमें वर्थ पाउण्ड बनना है।

वरदान:
मान मांगने के बजाए सबको मान देने वाले, सदा निष्काम योगी भव!  

आपको कोई मान दे, माने वा न माने लेकिन आप उसको मीठा भाई, मीठी बहन मानते हुए सदा स्वमान में रह, स्नेही दृष्टि से, स्नेह की वृत्ति से आत्मिक मान देते चलो। यह मान देवे तो मैं मान दूँ-यह भी रॉयल भिखारीपन है। इसमें निष्काम योगी बनो। रूहानी स्नेह की वर्षा से दुश्मन को भी दोस्त बना दो। आपके सामने कोई पत्थर भी फेकें तो भी आप उसे रत्न दो क्योंकि आप रत्नागर बाप के बच्चे हो।

स्लोगन:
विश्व का नव-निर्माण करने के लिए दो शब्द याद रखो-निमित्त और निर्मान।   
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23/09/15 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban

Sweet children, you souls have received your own parts in this unlimited drama. You now have to remove the costume of the body and return home. You then have to go to your new kingdom.   

Question:
How is it proved that the Father doesn’t have any tasks performed through inspiration, but that He incarnates?

Answer:
It is said of the Father that He is Karankaravanhar. Inspiration means to think. A new world cannot be established through inspiration. The Father establishes the new world through the children. Unless he has physical organs, He cannot enable anything to be done. Therefore, He has to take the support of a body.

Om Shanti
You spiritual children are sitting in front of the spiritual Father. In fact, you souls are sitting in front of your Father. A soul definitely sits with a body. It is when the Father takes a body that He is in front of you. This is why it is said: Souls remained separated from the Supreme Soul for a long time. You children understand that the different names given, such as Ishwar, Prabhu and the Supreme Soul belong to the highest-on-high Father. No physical father is ever called the Supreme Father. It doesn’t matter even if you just write “Supreme Father”. “Supreme Father” means that the Father of all is One. You children know that we are sitting with the Supreme Father. The Supreme Father, the Supreme Soul, and we souls are residents of the land of peace. We came here to perform our parts. We have performed our parts from the golden age to the end of the iron age. This will now become a new creation. The Father, the Creator, has explained to you children how you played such parts. Previously, you didn’t know that you had been around the cycle of 84 births. The Father now speaks to you children who have been around the cycle of 84 births. Not everyone can take 84 births. You have to explain how the cycle of 84 births turns. It is not a matter of hundreds of thousands of years. You children also know that we come to play our parts every 5000 years. We are actors. The highest-on-high Father has a unique part to play. You wouldn’t say that Brahma or Vishnu has a unique part to play. Both go around the cycle of 84 births. Shankar doesn’t have a part to play in this world. Establishment, destruction and sustenance are shown in the picture of the Trimurti. You have to explain the pictures that you display. Destruction of the old world has to take place at the confluence age. It is wrong to use the word “Inspirer”. Someone may say, “Today, I don’t feel inspired to go out.” Inspiration means thought – inspiration has no other meaning. Neither does the Supreme Soul work by giving inspiration, nor can knowledge be received through inspiration. The Father comes to play a part through these physical organs. He is Karankaravanhar. He works through the children. He cannot do anything without a body. No one knows these things nor does anyone know God, the Father. Rishis and munis etc. used to say that they didn’t know God. They neither have knowledge of the soul nor of the Father, the Supreme Soul. The Father is the principal Creator and Director. He gives directions. He gives you shrimat. People have the knowledge of omnipresence in their intellects. You understand that Baba is our Father. Those people say that He is omnipresent. Therefore, they cannot realize that He is the Father. You understand that this is the family of the unlimited Father. By His being called omnipresent, there is no fragrance of a family. He is called incorporeal Shiv Baba, the Baba of incorporeal souls. It is when souls have bodies that they say: Baba. A soul without a body cannot speak. On the path of devotion you were calling out to God with the understanding that that Baba is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. You receive happiness in the land of happiness and peace in the land of peace. Here, there is just sorrow. You receive this knowledge at the confluence age, between the old and the new worlds. The Father only comes when establishment of the new world and destruction of the old world have to take place. First of all, you should always speak of establishment of the new world. To speak of destruction of the old world first is wrong. You are now receiving the knowledge of the unlimited play. When actors come from their homes to play parts, they wear ordinary clothes. Then, they change into their costumes, and when the play is over, they remove their costumes and return home. Similarly, you souls come here bodiless from your home. You come here and put on costumes in the form of bodies. Each soul has received his own part. This is an unlimited play. This entire unlimited world is now old and then there will be the new world. That population is very small and there is only one religion. You children are to move away from this old world and go into the limited new world where there is just one religion. When there are innumerable religions and innumerable human beings in the world, it becomes unlimited. There, there is just one religion and few human beings. The Father has to come to establish the one religion. You children understand the secrets of the unlimited play: how the cycle turns. Whatever happens in a practical way at this time will later be celebrated as a festival on the path of devotion. You children know about the numberwise festivals. It is said: The birthday of Shiv Baba, God, the Highest on High. The other festivals can only be created after He comes. Shiv Baba first comes and speaks the Gita, that is, He tells you the knowledge of the beginning, the middle and the end. Together with teaching you this, He also teaches you yoga. So, first of all, when the Father came, there was the birthday of Shiva. Then there was the birth of the Gita. He spoke knowledge to souls, and so that was the birth of the Gita. You children should think about all of these things and write down the festivals, numberwise. Only those who belong to your religion will understand these things. Everyone loves his own religion. There is no question of those of other religions. Although someone may love another religion, he cannot go into that religion. Those of other religions cannot go to heaven. It is very clear in the picture of the tree. All the religions will come at exactly the same time as they did previously. First of all, the Father comes. He comes and teaches you Raja Yoga. Therefore, it is said: There is the birth of Shiva, then the birth of the Gita and then the birth of Krishna, who then becomes Narayan. That is then the golden age. You have to write this, numberwise. These are aspects of knowledge. People don’t understand when Shiva’s birth takes place. The knowledge that He gives is called the Gita and that then disappears. There is no holiday for the birthday of Jagadamba etc. People don’t know the date or time of any of these things at all. They don’t know about the kingdom of Lakshmi and Narayan or that of Rama and Sita. They only know about those who have come in the last 2,500 years. However, they don’t know how long it has been since the deities of the original eternal deity religion, who came before that, existed. The cycle cannot last longer than 5000 years. In the first half of the cycle, it is their kingdom. In the second half of the cycle the population grows large. So, how could the cycle be of more years than this? There cannot be 8.4 million births. Those people believe that the duration of the iron age is hundreds of thousands of years. They have put people into total darkness. There is a vast difference between the whole drama being 5000 years and the 40,000 years of the iron age that still remain, as they say. When a war takes place, they feel that God has to come. However, God has to come at the confluence age. The Mahabharat War takes place at the confluence age. The Father says: I come at the confluence age of every cycle. The Father comes to carry out establishment of the new world and destruction of the old world. When establishment of the new world takes place, the old world is then definitely destroyed because this is what that war is for. There is no question of inspiration from Shankar etc. in this. It is understood that the whole world will be destroyed. All the buildings etc. will be destroyed in the earthquakes because a new world is needed. There definitely was a new world. Delhi was Paristhan, the land of angels. It used to be on the banks of the River Jamuna in the kingdom of Lakshmi and Narayan. There are pictures of this. Lakshmi and Narayan are said to belong to heaven. You children have had visions of how their wedding ceremony takes place. Baba revises all these points with you. Achcha, if you can’t remember the points, then simply remember Baba. If you forget the Father, then remember the Teacher. You would surely remember what your Teacher teaches, would you not? By remembering the Teacher, you will also remember the knowledge. You also have your aim in your intellects. You have to remember this because this is your student life, is it not? You know that the One who teaches you is also your Father. A physical father does not disappear. There are the lokik and parlokik fathers and then this alokik father. No one remembers this one. You receive an inheritance from your physical father. You remember that one till the end. When you leave your body, you go and have another father. You receive a physical father for birth after birth. People remember the parlokik Father in sorrow and in happiness. When they have a baby they say that God gave them that baby. Why would they remember Prajapita Brahma? You don’t receive anything from him. He is called the alokik father. You know that you are receiving your inheritance from Shiv Baba through Brahma. Just as you are studying, so, too, is this one. This chariot has become the instrument. This one’s body has become the chariot at the end of many births. The chariot has to be given a name. This renunciation is unlimited. The chariot stays all the time, but there is no guarantee for anyone else. While moving along, they become those who run away from the Father. This chariot has been appointed, according to the drama. He is called “The Lucky Chariot”. None of you are called a lucky chariot. Only one is considered to be “The Lucky Chariot” whom the Father enters to give you knowledge. He enables the task of establishment to be carried out. You are not lucky chariots. Your soul is sitting in this chariot and studying. Your soul becomes pure. Therefore, it is the greatness of this body in which He sits and teaches us. This final birth is very valuable. Then, you change your bodies and become deities. You receive teachings through this old body. You belong to Shiv Baba. You know that your previous lives are not worth a penny. Your lives are now becoming worth a pound. You will claim a high status according to how much you study. The Father has explained that the pilgrimage of remembrance is the main thing. This is called the ancient yoga of Bharat through which you become pure from impure. You all become residents of heaven. However, it then depends on how much you study. You are sitting in this unlimited school. You will then become deities. You can understand who will claim a high status and what the qualification for that will be. Previously, we too didn’t have any qualifications. We were following the Devil’s dictates. We are now receiving God’s directions. We go into the descending stage by following the Devil’s dictates. By following God’s directions we go into the ascending stage. Only the One gives us God’s directions, whereas many give the Devil’s directions. You receive dictates of so many - mother, father, brothers, sisters, teachers and gurus etc. You are now receiving the directions of One. These will be useful to you for 21 births. Therefore, you should follow such directions, should you not? You claim an elevated status according to how much you follow directions. If you follow them less, the status you receive is less. Shrimat comes from God. God is the Highest on High, the One who made Krishna the most elevated of all. Then, Ravan made him the lowest of all. The Father makes you beautiful and then Ravan makes you ugly. The Father gives you your inheritance. He is viceless. The praise of the deities is sung as “Full of all virtues, completely virtuous….” Sannyasis aren’t called “completely viceless”. In the golden age, both souls and bodies are pure. Everyone knows the deities. Because they are completely viceless, they become the masters of the perfect world. They are not that now. You will become that later. The Father only comes at the confluence age. Brahmins are created through Brahma. All of you are the children of Brahma. He is the great-great-grandfather. Ask them: Have you not heard the name of Prajapita Brahma? The Supreme Father, the Supreme Soul, creates the world through Brahma, does He not? There is the Brahmin clan. You then become brothers and sisters, the mouth-born creation of Brahma. There is no question of kings or queens here. This Brahmin clan only exists for this short time of the confluence age. Neither the Pandavas nor the Kauravas have a kingdom. Achcha.

To the sweetest, beloved, long-lost, now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. In order to claim all rights for an elevated status for 21 births, renounce following all the Devil’s dictates and only follow God’s directions. Become completely viceless.
2. While sitting in your old body, imbibe the Father’s teachings and become a deity. This is a very valuable life. You have to become worth a pound in this life.

Blessing:
May you constantly be an altruistic yogi and give regard to everyone instead of asking for regard.  

Whether someone gives you regard and accepts you or not, you simply have to consider that one to be your sweet brother or sister, always maintain your own self-respect and continue to give spiritual regard with loving drishti and an attitude of love. “I will give regard when that one gives me regard” is a royal way of begging. Be an altruistic yogi in this. By showering spiritual love, change an enemy into a friend. Even if someone throws a stone at you, you simply have to return that as a jewel because you are the children of the Father who is the Jewel Merchant.

Slogan:
In order to construct the new world, remember two words: an instrument and humility.