30-09-15 प्रातः मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - सदा यही स्मृति रहे कि हम श्रीमत पर अपनी सतयुगी राजधानी स्थापन कर रहे हैं, तो अपार खुशी रहेगी”
प्रश्न:
यह ज्ञान का भोजन किन बच्चों को हज़म नहीं हो सकता है?
उत्तर:
जो भूलें करके, छी-छी (पतित) बनकर फिर क्लास में आकर बैठते हैं, उन्हें ज्ञान हज़म नहीं हो सकता। वह मुख से कभी भी नहीं कह सकते कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है। उनका दिल अन्दर ही अन्दर खाता रहेगा। वह आसुरी सम्प्रदाय के बन जाते हैं।
ओम् शान्ति।
बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, वह कौन-सा बाप है, उस बाप की महिमा तुम बच्चों को करनी है। गाया भी जाता है सत् शिवबाबा, सत् शिव टीचर, सत् शिव गुरू। सच तो वह है ना। तुम बच्चे जानते हो हमको सत्य शिवबाबा मिला है। हम बच्चे अब श्रीमत पर एक मत बन रहे हैं। तो श्रीमत पर चलना चाहिए ना। बाप कहते हैं एक तो देही-अभिमानी बनो और बाप को याद करो। जितना याद करेंगे, अपना कल्याण करेंगे। तुम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो फिर से। आगे भी हमारी राजधानी थी। हम देवी-देवता धर्म वाले ही 84 जन्म भोग, अन्तिम जन्म में अभी संगम पर हैं। इस पुरूषोत्तम संगमयुग का सिवाए तुम बच्चों के और कोई को पता नहीं है। बाबा कितनी प्वाइंट्स देते हैं-बच्चे, अगर अच्छी रीति याद में रहेंगे तो बहुत खुशी में रहेंगे। परन्तु बाप को याद करने के बदले और दुनियावी बातों में पड़ जाते हैं। यह याद रहनी चाहिए कि हम श्रीमत पर अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं। गाया भी हुआ है ऊंच ते ऊंच भगवान, उनकी ही ऊंच ते ऊंच श्रीमत है। श्रीमत क्या सिखलाती है? सहज राजयोग। राजाई के लिए पढ़ा रहे हैं। अपने बाप के द्वारा सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानकर फिर दैवीगुण भी धारण करने हैं। बाप का कभी सामना नहीं करना चाहिए। बहुत बच्चे अपने को सर्विसएबुल समझ अहंकार में आ जाते हैं। ऐसे बहुत होते हैं। फिर कहाँ-कहाँ हार खा लेते हैं तो नशा ही उड़ जाता है। तुम मातायें तो अनपढ़ी हो। पढ़ी हुई होती तो कमाल कर दिखाती। पुरूषों में फिर भी पढ़े लिखे कुछ हैं। तुम कुमारियों को कितना नाम बाला करना चाहिए। तुमने श्रीमत पर राजाई स्थापन की थी। नारी से लक्ष्मी बनी थी तो कितना नशा रहना चाहिए। यहाँ तो देखो पाई पैसे की पढ़ाई में जान कुर्बान कर रहे हैं। अरे तुम गोरे बनते हो फिर काले, तमोप्रधान से क्यों दिल लगाते हो। इस कब्रिस्तान से दिल नहीं लगानी है। हम तो बाप से वर्सा ले रहे हैं। पुरानी दुनिया से दिल लगाना माना जहन्नुम (नर्क, दोजक) में जाना है। बाप आकर दोजक से बचाते हैं फिर भी मुंह दोज़क तरफ क्यों कर देते। तुम्हारी यह पढ़ाई कितनी सहज है। कोई ऋषि-मुनि नहीं जानते। न कोई टीचर, न कोई ऋषि-मुनि समझा सकते हैं। यह तो बाप-टीचर-गुरू भी है। वो गुरू लोग शास्त्र सुनाते हैं। उनको टीचर नहीं कहेंगे वह कोई ऐसे नहीं कहते कि हम दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते हैं। वह तो शास्त्रों की बातें ही सुनायेंगे। बाप तुमको शास्त्रों का सार समझाते हैं और फिर वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी भी बतलाते हैं। अब यह टीचर अच्छा या वह टीचर अच्छा? उस टीचर से तुम कितना भी पढ़ो, क्या कमायेंगे? सो भी नसीब। पढ़ते-पढ़ते कोई एक्सीडेंट हो जाए, मर जाए तो पढ़ाई खत्म। यहाँ तुम यह पढ़ाई जितनी भी पढ़ेंगे, वह व्यर्थ जायेगी नहीं। हाँ, श्रीमत पर न चल कुछ उल्टा चल पड़ते या गटर में जाकर गिर पड़ते तो जितना पढ़ा वह कोई चला नहीं जाता, यह पढ़ाई तो 21 जन्मों के लिए है। परन्तु गिरने से कल्प-कल्पान्तर का घाटा बहुत-बहुत पड़ जाता है। बाप कहते हैं - बच्चे, काला मुंह नहीं करो। ऐसे बहुत हैं जो काला मुंह करके, छी-छी बनकर फिर आकर बैठ जाते हैं। उनको कभी यह ज्ञान हज़म नहीं होगा। बद-हाजमा हो जाता है। जो सुनेगा वह बद-हाजमा हो जायेगा, फिर मुख से किसको कह न सके कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है, उन पर जीत पानी है। खुद ही जीत नहीं पाते तो औरों को कैसे कहेंगे! अन्दर खायेगा ना! उनको कहा जाता है आसुरी सम्प्रदाय, अमृत पीते-पीते विष खा लेते हैं तो 100 गुणा काले बन जाते हैं। हड्डी-हड्डी टूट जाती है।
तुम माताओं का संगठन तो बहुत अच्छा होना चाहिए। एम ऑब्जेक्ट तो सामने हैं। तुम जानते हो इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में एक देवी-देवता धर्म था। एक राज्य, एक भाषा, 100 परसेन्ट प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी थी। उस एक राज्य की ही बाप अभी स्थापना कर रहे हैं। यह है एम ऑब्जेक्ट। 100 परसेन्ट पवित्रता, सुख, शान्ति, सम्पत्ति की स्थापना अब हो रही है। तुम दिखाते हो विनाश के बाद श्रीकृष्ण आ रहा है। क्लीयर लिख देना चाहिए। सतयुगी एक ही देवी-देवताओं का राज्य, एक भाषा, पवित्रता, सुख, शान्ति फिर से स्थापन हो रही है। गवर्मेन्ट चाहती है ना। स्वर्ग होता ही है सतयुग-त्रेता में। परन्तु मनुष्य अपने को नर्कवासी समझते थोड़ेही हैं। तुम लिख सकते हो - द्वापर-कलियुग में सब नर्कवासी हैं। अभी तुम संगमयुगी हो। आगे तुम भी कलियुगी नर्कवासी थे, अब तुम स्वर्गवासी बन रहे हो। भारत को स्वर्ग बना रहे हैं श्रीमत पर। परन्तु वह हिम्मत, संगठन होना चाहिए। चक्कर पर जाते हैं तो यह चित्र लक्ष्मी-नारायण का ले जाना पड़े। अच्छा है। इसमें लिख दो आदि सनातन देवी-देवता धर्म, सुख-शान्ति का राज्य स्थापन हो रहा है - त्रिमूर्ति शिवबाबा की श्रीमत पर। ऐसे- ऐसे बड़े-बड़े अक्षर में बड़े-बड़े चित्र हों। छोटे बच्चे छोटे चित्र पसन्द करते हैं। अरे, चित्र तो जितना बड़ा हो उतना अच्छा। यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र तो बहुत अच्छा है। इसमें सिर्फ लिखना है एक ही सत्य त्रिमूर्ति शिवबाबा, सत्य त्रिमूर्ति शिव टीचर, सत्य त्रिमूर्ति शिव गुरू। त्रिमूर्ति अक्षर नहीं लिखेंगे तो समझेंगे परमात्मा तो निराकार है, वह टीचर कैसे हो सकता है। ज्ञान तो नहीं है ना। लक्ष्मी-नारायण का चित्र टीन की सीट पर बनाकर हर एक जगह पर रखना है, यह स्थापना हो रही है। बाप आये हैं ब्रह्मा द्वारा एक धर्म की स्थापना बाकी सबका विनाश करा देंगे। यह बच्चों को सदैव नशा रहना चाहिए। थोड़ी-थोड़ी बात में एक मत नहीं मिलती है तो झट बिगड़ जाते हैं। यह तो होता ही है। कोई किस तरफ, कोई किस तरफ, फिर मैजारिटी वाले को उठाया जाता है, इसमें रंज होने की बात नहीं। बच्चे रूठ पड़ते हैं। हमारी बात मानी नहीं गई। अरे, इसमें रूठने की क्या बात है। बाप तो सबको रिझाने वाला है। माया ने सबको रूसा दिया है, सब बाप से रूठे हुए हैं, रूठे भी क्या - बाप को जानते ही नहीं। जिस बाप ने स्वर्ग की बादशाही दी उनको जानते ही नहीं। बाप कहते हैं मैं तुम पर उपकार करता हूँ। तुम फिर मुझ पर अपकार करते हो। भारत का हाल देखो क्या है। तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जिनको नशा रहता है। यह है नारायणी नशा। ऐसे थोड़ेही कहना चाहिए कि हम तो राम-सीता बनेंगे। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही है नर से नारायण बनना। तुम फिर राम सीता बनने में खुश हो जाते हो, हिम्मत दिखानी चाहिए ना। पुरानी दुनि्ाया से बिल्कुल दिल नहीं लगानी चाहिए। कोई से दिल लगाई और मरे। जन्म-जन्मान्तर का घाटा पड़ जायेगा। बाबा से तो स्वर्ग के सुख मिलते हैं फिर हम नर्क में क्यों पड़ें। बाप कहते हैं तुम जब स्वर्ग में थे तो और कोई धर्म नहीं था। अभी ड्रामा अनुसार तुम्हारा धर्म है नहीं। कोई भी अपने को देवता धर्म का नहीं समझते हैं। मनुष्य होकर भी अपने धर्म को न जानें तो क्या कहा जाए। हिन्दू कोई धर्म थोड़ेही है। किसने स्थापन किया, यह भी नहीं जानते। तुम बच्चों को कितना समझाया जाता है। बाप कहते हैं मैं कालों का काल अब आया हूँ - सबको वापिस ले जाने। बाकी जो अच्छी रीति पढ़ेंगे वह विश्व का मालिक बनेंगे। अब चलो घर। यहाँ रहने लायक नहीं है, बहुत किचड़ा कर दिया है - आसुरी मत पर चलकर। बाप तो ऐसे कहेंगे ना। तुम भारतवासी जो विश्व के मालिक थे, अब कितने धक्के खाते रहते हो। लज्जा नहीं आती है। तुम्हारे में भी कोई हैं जो अच्छी रीति समझते हैं। नम्बरवार तो हैं ना। बहुत बच्चे तो नींद में रहते हैं। वह खुशी का पारा नहीं चढ़ता है। बाबा हमको फिर से राजधानी देते हैं। बाप कहते हैं - इन साधुओं आदि का भी मैं उद्धार करता हूँ। वह खुद न अपने को, न दूसरे को मुक्ति दे सकते हैं। सच्चा गुरू तो एक ही सतगुरू है, जो संगम पर आकर सबकी सद्गति करते हैं। बाप कहते हैं मैं आता हूँ कल्प के संगम युगे युगे, जबकि हमको सारी दुनिया को पावन बनाना है। मनुष्य समझते हैं बाप सर्वशक्तिमान् है, वह क्या नहीं कर सकते। अरे, मुझे बुलाते ही हो कि हम पतितों को पावन बनाओ तो मैं आकर पावन बनाता हूँ। बाकी और क्या करूँगा। बाकी तो रिद्धि-सिद्धि वाले बहुत हैं, मेरा काम ही है नर्क को स्वर्ग बनाना। वह तो हर 5 हज़ार वर्ष के बाद बनता है। यह तुम ही जानते हो। आदि सनातन है देवी-देवता धर्म। बाकी तो सब पीछे-पीछे आये हैं। अरविन्द घोस तो अभी आये तो भी देखो कितने उनके आश्रम बन गये हैं। वहाँ कोई निर्विकारी बनने की बात थोड़ेही है। वह तो समझते हैं गृहस्थ में रहते पवित्र कोई रह नहीं सकता। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ एक जन्म पवित्र रहो। तुम जन्म-जन्मान्तर तो पतित रहे हो। अब मैं आया हूँ तुमको पावन बनाने। यह अन्तिम जन्म पावन बनो। सतयुग-त्रेता में तो विकार होते ही नहीं।
यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र और सीढ़ी का चित्र बहुत अच्छा है। इनमें लिखा हुआ है - सतयुग में एक धर्म, एक राज्य था। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। बूढ़ी माताओं को भी सिखलाकर तैयार करना चाहिए, जो प्रदर्शनी में कुछ समझा सकें। कोई को भी यह चित्र दिखाकर बोलो इनका राज्य था ना। अभी तो है नहीं। बाप कहते हैं-अब तुम मुझे याद करो तो तुम पावन बनकर पावन दुनिया में चले जायेंगे। अब पावन दुनिया स्थापन हो रही है। कितना सहज है। बुढ़ियाँ बैठकर प्रदर्शनी पर समझायें तब नाम बाला हो। कृष्ण के चित्र में भी लिखत बहुत अच्छी है। बोलना चाहिए यह लिखत जरूर पढ़ो। इनको पढ़ने से ही तुमको नारायणी नशा अथवा विश्व के मालिक-पने का नशा चढ़ेगा।
बाप कहते हैं मैं तुमको ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनाता हूँ तो तुम्हें भी औरों पर रहम दिल बनना चाहिए। अपने पर भी कल्याण तब करेंगे जब दूसरे का भी करेंगे। बुढ़ियों को ऐसा सिखलाकर होशियार बनाओ जो प्रदर्शनी पर बाबा कहे कि 8-10 बुढ़ियों को भेजो तो झट आ जाएं। जो करेगा सो पायेगा। सामने एम ऑब्जेक्ट को देखकर ही खुशी होती है। हम यह शरीर छोड़ जाए विश्व के मालिक बनेंगे। जितना याद में रहेंगे उतना पाप कटेंगे। देखो लिफाफे पर छपा है - वन रिलीजन, वन डीटी किंगडम, वन लैंगवेज..... वह जल्दी स्थापन होगी। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कभी भी आपस में वा बाप से रूठना नहीं है, बाप रिझाने आये हैं इसलिए कभी रंज नहीं होना है। बाप का सामना नहीं करना है।
2) पुरानी दुनिया से, पुरानी देह से दिल नहीं लगानी है। सत बाप, सत टीचर और सतगुरू के साथ सच्चा रहना है। सदा एक की श्रीमत पर चल देही-अभिमानी बनना है।
वरदान:
अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा सर्व को वर्से का अधिकार दिलाने वाले आकर्षण-मूर्त भव!
फरिश्ते स्वरूप की ऐसी चमकीली ड्रेस धारण करो जो दूर-दूर तक आत्माओं को अपनी तरफ आकर्षित करे और सर्व को भिखारीपन से छुड़ाए वर्से का अधिकारी बना दे। इसके लिए ज्ञान मूर्त, याद मूर्त और सर्व दिव्य गुण मूर्त बन उड़ती कला में स्थित रहने का अभ्यास बढ़ाते चलो। आपकी उड़ती कला ही सर्व को चलते-फिरते फरिश्ता सो देवता स्वरूप का साक्षात्कार करायेगी। यही विधाता, वरदाता पन की स्टेज है।
स्लोगन:
औरों के मन के भावों को जानने के लिए सदा मनमनाभव की स्थिति में स्थित रहो।
30/10/15 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, always remain aware that you are establishing your golden-aged kingdom by following shrimat and you will experience infinite happiness.
Question:
Which children are unable to digest this food of knowledge?
Answer:
Those who make mistakes; those who become dirty and impure and then come and sit in class are unable to digest this knowledge. They can never say: God speaks: Lust is the greatest enemy. Their consciences will continue to bite them inside and they will become those of the Devil’s community.
Om Shanti
The Father sits here and explains to you spiritual children. Which Father is He? You children have to praise that Father. It is remembered: Shiv Baba, the Truth; Shiva, the True Teacher; Shiva, the true Guru. He is the Truth, is He not? You children know that you have found Shiv Baba, the Truth. You children are now becoming those who follow the directions of One according to shrimat. Therefore, you should follow shrimat. The Father says: Firstly, become soul conscious and remember the Father. The more you remember Him, the more you will benefit yourself. You are establishing your own kingdom once again. It was your kingdom previously. We, who belong to the deity religion, take 84 births and are now at the confluence age in our final birth. No one, but you children, knows about this most elevated confluence age. Baba gives you so many points: Children, if you stay in remembrance very well you remain very happy. However, instead of remembering the Father, some children get caught up in worldly matters. You should remember that you are establishing your own kingdom according to shrimat. God has been remembered as the Highest on High. His directions (shrimat) are the most elevated. What does shrimat teach you? Easy Raja Yoga. He is teaching you how to attain the kingdom. You have come to know the beginning, middle and end of the world from your Father and you now also have to imbibe divine virtues. Never oppose the Father! Many children consider themselves to be serviceable and become very arrogant. There are many children like that, but they sometimes become defeated and then their intoxication disappears. You mothers are illiterate. If you had been literate you would show wonders. Amongst the men, there are some who are educated. You kumaris should glorify Baba’s name so much. You previously established the kingdom according to shrimat; you changed from ordinary women into Lakshmi. Therefore, you should have so much intoxication. Here, people sacrifice their lives to a study worth a few pennies. Oh, but you are becoming beautiful! So, why do you attach your hearts to ugly and impure ones? You mustn’t attach your hearts to this graveyard. You are claiming your inheritance from the Father. To attach your heart to the old world means to go into the depths of hell. The Father has come to remove you from hell. So why, in spite of that, do you turn your faces towards hell? This study of yours is so easy. None of the rishis or munis know this. No teacher or rishi or muni can explain this to you. The Father is also your Teacher and your Guru. Those gurus relate the scriptures; they shouldn’t be called teachers. None of them say that they can relate the history and geography of the world. They only relate things from the scriptures. The Father explains to you the essence of the scriptures and also tells you the world history and geography. Is this Teacher good or is that teacher good? No matter how much you study with that teacher, how much would you be able to earn? And, that too depends on your fortune! If, while studying, someone has an accident and dies, all the study would be finished. No matter how much or how little you study this study here, none of it will go to waste. Yes, if someone doesn’t follow shrimat but performs wrong actions or falls into the gutter, the things he studied does not finish because this study is for 21 births. However, if he falls, there is a great deal of loss for cycle after cycle. The Father says: Children, don’t dirty your faces. There are many who dirty their faces; they become dirty and then come and sit here. They would never be able to digest this knowledge; they would have indigestion. Whatever they hear would cause them indigestion. They would be unable to tell anyone: God speaks: Lust is the greatest enemy and you have to conquer it. If they haven’t conquered it themselves, how can they tell others? Their consciences would bite them inside. They are called those who belong to the Devil’s community. While drinking nectar, they drink poison, and so they become one hundredfold ugly and their every bone is crushed. The gathering of you mothers should be very good. Your aim and objective is in front of you. You know that there was the one deity religion in the kingdom of Lakshmi and Narayan. There was one kingdom, one language, 100% purity, peace and prosperity. The Father is now establishing that one kingdom. That is the aim and objective. One hundred per cent purity, peace, happiness and prosperity are now being established. You show that Shri Krishna will come after destruction. You should write this very clearly. The one golden-aged kingdom of the deities – one language, purity, peace and happiness – is once again being established. The Government wants this. Heaven exists in the golden and silver ages. However, people don’t consider themselves to be residents of hell. You can write: In the copper and iron ages everyone is a resident of hell. You are now at the confluence age. Previously, you too were iron-aged residents of hell. You are now becoming residents of heaven. You are making Bharat into heaven by following shrimat. However, there should be that courage and unity. When you go on a tour, show the picture of Lakshmi and Narayan; it is very good. On it, write: The original, eternal, deity religion and the kingdom of peace and happiness are being established according to the shrimat of Trimurti Shiv Baba. You should have large pictures with big writing on them. Small children prefer small pictures. The bigger the pictures, the better! The picture of Lakshmi and Narayan is very good. You must simply write on that: The one Trimurti Shiv Baba, the Truth; Trimurti Shiva, the true Teacher; Trimurti Shiva, the true Guru. If you don’t write the word “Trimurti” they would wonder how, since God is incorporeal, He could be the Teacher. They don’t have knowledge. You should make pictures of Lakshmi and Narayan on tin and place them everywhere. Establishment is taking place. The Father has come to establish the one religion through Brahma and He will destroy everything else. You children should always have this intoxication. When some of you are unable to come to the same decision about a trivial matter, you very quickly become upset. This happens all the time. Some would be on one side and others on another side. Then the opinion of the side that has the majority is taken up. There is no need to get upset over that. However, some children sometimes sulk because their ideas are not accepted, but what is there to sulk about in that? The Father consoles everyone. Maya has made everyone sulk. Everyone is sulking with the Father. Since they don’t even know the Father, why should they sulk? They don’t know the Father who gave them the sovereignty of heaven. The Father says: I uplift everyone and you then defame Me! Look at the condition of Bharat! Among you too, there are very few who remain intoxicated. This is the intoxication of becoming Narayan. You mustn’t say that you will become Rama or Sita. Your aim and objective is to change from an ordinary human into Narayan. How could you then become happy with becoming Rama or Sita? You have to show that you have courage. You mustn’t attach your hearts to the old world at all. Anyone who attaches his or her heart to anyone will die. There will then be a great loss for birth after birth. You are to receive the happiness of heaven from Baba. In that case, why should we still be in hell? The Father says: When you were in heaven, there were no other religions. Now, according to the drama, your religion doesn’t exist. No one thinks of himself as belonging to the deity religion. What can be said if a human being doesn’t know his own religion? Hinduism is not a religion. They don’t even know who established it. So much is explained to you children. The Father says: I, the Death of all Deaths, have now come to take everyone back home. All of those who study well will become the masters of the world. Now, let’s go home! This place is not worth living in. By devilish dictates being followed, a lot of rubbish is created. The Father would say this, would He not? You people of Bharat, who were the masters of the world, are now stumbling around so much. Aren’t you ashamed? There are some among you who understand this very well. It is numberwise, after all. Many children remain asleep. Their mercury of happiness doesn’t rise. Baba is giving us the kingdom once again. The Father says: I uplift these sages etc. They can neither grant liberation to themselves nor to others. The true Guru is only the one Satguru who comes at the confluence age to grant salvation to everyone. The Father says: I come at the confluence age of every cycle when I have to purify the whole world. People believe that because the Father is the Almighty Authority, there is nothing He can’t do. Oh! But, you impure ones call out to Me to come and make you pure. Therefore, I come and purify everyone. What else would I do? There are many who have occult power. My task is to change hell into heaven. That is created every 5000 years. Only you know this. The original eternal religion is that of the deities; all other religions come later. Aurobindo Ghose started his ashram recently (1926). Now, look how many ashrams of his there are! There, there is no question of becoming viceless. They believe that no one can remain pure whilst living at home with the family. The Father says: Whilst living at home with your family, remain pure for just one birth. You have been impure for birth after birth. I have now come to purify you. Become pure in this last birth. There are no vices in the golden and silver ages. The pictures of Lakshmi and Narayan and the ladder are very good. It is written on them: There was one religion and one kingdom in the golden age. You need to explain in the right way. You must also teach and prepare the old mothers so that they too can explain at exhibitions. They should show this picture to everyone and tell them: It used to be their kingdom, but it no longer exists. The Father says: Now remember Me and you will become pure and go to the pure world. The pure world is now being established. It is so easy! When you old mothers sit and explain at the exhibitions your name will then be glorified. The writing on the picture of Krishna is very good. You should tell them: You must definitely read this writing. Only by reading this will you have the intoxication of becoming Narayan and the masters of the world. The Father says: I am making you become like Lakshmi and Narayan. Therefore, you should also be merciful to others. Only when you benefit others can you bring benefit to yourself. Teach the old mothers in this way and make them clever, so that when Baba asks for eight to ten old women to come to explain at the exhibitions, they instantly come running. Those who do something will receive the return of it. Seeing your aim and objective in front of you, there is great happiness. I will renounce this body and become a master of the world. Your sins will be absolved according to how much you stay in remembrance. On the envelopes, it is printed: One religion, one deity kingdom and one language. That will very soon be established. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost, now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Never sulk among yourselves or with the Father.The Father has come to console you. Therefore, never become upset. Never oppose the Father.
2. Don’t attach your heart to the old world or an old body. Remain true to the true Father, the true Teacher and the Satguru. Constantly follow the shrimat of the One and be soul conscious.
Blessing:
May you be an image that attracts and gives everyone a right to their inheritance through your angelic form.
Adopt such a sparkling dress of the angelic form that souls are attracted to you from a distance and everyone is liberated from their beggary nature and given a right to their inheritance. For this, become an embodiment of knowledge, an embodiment of remembrance and an embodiment of all divine virtues and continue to increase the practice of remaining stable in the flying stage. Your flying stage will enable everyone to have a vision of your mobile angel and deity forms. This is the stage of being a bestower of fortune and a bestower of blessings.
Slogan:
In order to know the feelings in the minds of others, remain constantly stable in the stage of “Manmanabhav”.