Monday, June 30, 2014

01-07-14                  प्रातः मुरली                  ओम् शान्ति               “बापदादा”               मधुबन
 

मीठे बच्चे देही- अभिमानी बनो तो शीतल हो जायेंगे, विकारों की बांस निकल जायेगी, अन्तर्मुखी हो जायेंगे, फूल बन जायेंगे”   

प्रश्न:-   
बापदादा सभी बच्चों को कौन-से दो वरदान देते हैं? उन्हें स्वरूप में लाने की विधि क्या है?

उत्तर:-
बाबा सभी बच्चों को शान्ति और सुख का वरदान देते हैं । बाबा कहते-बच्चे, तुम शान्ति में रहने का अभ्यास करो । कोई उल्टा-सुल्टा बोलते हैं तो तुम जवाब न दो । तुम्हे शान्त रहना है । फालतू झरमुई, झगमुई की बातें नहीं करनी है । किसी को भी दुःख नहीं देना है । मुख में शान्ति का मुहलरा डाल दो तो यह दोनों वरदान स्वरूप में जायेंगे |

ओम् शान्ति |
मीठे-मीठे बच्चे कभी सम्मुख हैं, कभी दूर चले जाते हैं । सम्मुख फिर वही रहते हैं जो याद करते हैं क्योकि याद की यात्रा में ही सब कुछ समाया हुआ है । गाया जाता है ना - नजर से निहाल । आत्मा की नजर जाती है परमपिता में और कुछ भी उनको अच्छा नहीं लगता । उनको याद करने से विकर्म विनाश होते हैं । तो अपने पर कितनी खबरदारी रखनी चाहिए । याद न करने से माया समझ जाती है-इनका योग टूटा हुआ है तो अपनी तरफ खीचती है । कुछ न कुछ उल्टा कर्म करा देती है । ऐसे बाप की निन्दा कराते हैं । भक्ति मार्ग में गाते हैं-बाबा, मेरे तो एक आप दूसरा न कोई । तब बाप कहते हैं-बच्चे, मजिल बहुत ऊँची है । काम करते हुए बाप को याद करना-यह है ऊंच ते ऊंच मंजिल । इसमें प्रैक्टिस बहुत अच्छी चाहिए । नहीं तो निन्दक बन जाते हैं, उल्टा काम करने वाले । समझो कोई में क्रोध आया, आपस में लड़ते-झगड़ते हैं तो भी निन्दा कराई ना, इसमें बड़ी खबरदारी रखनी है । अपने गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए बुद्धि बाप से लगानी है । ऐसे नहीं कि कोई सम्पूर्ण हो गया है । नहीं । कोशिश ऐसी करनी चाहिए- हम देही- अभिमानी बनें । देह- अभिमान में आने से कुछ न कुछ उल्टा काम करते हैं तो गोया बाप की निन्दा कराते हैं । बाप कहते हैं ऐसे सतगुरू की निन्दा कराने वाले लक्ष्मी-नारायण बनने की ठौर पा न सके इसलिए पूरा पुरूषार्थ करते रहो, इससे तुम बहुत ही शीतल बन जायेंगे । पाँच विकारों की बातें सब निकल जायेंगी । बाप से बहुत ताकत मिल जायेगी । काम-काज भी करना है । बाप ऐसे नहीं कहते कि कर्म न करो । वहाँ तो तुम्हारे कर्म, अकर्म हो जायेंगे । कलियुग में जो कर्म होते हैं, वह विकर्म हो जाते हैं । अभी संगमयुग पर तुमको सीखना होता है । वहाँ सीखने की बात नहीं । यहाँ की शिक्षा ही वहाँ साथ चलेगी । बाप बच्चों को समझाते हैं- बाहरमुखता अच्छी नहीं है । अन्तर्मुखी भव । वह भी समय आयेगा जबकि तुम बच्चे अन्तर्मुख हो जायेंगे । सिवाए बाप के और कुछ याद नहीं आयेगा । तुम आये भी ऐसे थे, कोई की याद नहीं थी । गर्भ से जब बाहर निकले तब पता पड़ा कि यह हमारे माँ-बाप हैं, यह फलाना है । तो फिर अब जाना भी ऐसे है । हम एक बाप के हैं और कोई उनके सिवाए बुद्धि में याद न आये । भल टाइम पड़ा है परन्तु पुरूषार्थ तो पूरी रीति करना है । शरीर पर तो कोई भरोसा नहीं । कोशिश करते रहना चाहिए, घर में भी बहुत शान्ति हो, क्लेश नहीं नहीं तो सब कहेंगे इनमें कितनी अशान्ति है । तुम बच्चों को तो रहना है बिल्कुल शान्त । तुम शान्ति का वर्सा ले रहे हो ना । अभी तुम रहते हो काँटों के बीच में । फूलों के बीच में नहीं हो । काँटो के बीच रह फूल बनना है । काँटो का काँटा नहीं बनना है । जितना तुम बाप को याद करेंगे उतना शान्त रहेंगे । कोई उल्टा-सुल्टा बोले, तुम शान्ति में रहो । आत्मा है ही शान्त । आत्मा का स्वधर्म है शान्त । तुम जानते हो अभी हमको उस घर में जाना है । बाप भी है शान्ति का सागर । कहते हैं तुमको भी शान्ति का सागर बनना है । फालतू झरमुई-झगमुई बहुत नुकसान करती है । बाप डायरेक्शन देते हैं-ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए, इससे तुम बाप की निन्दा कराते हो । शान्ति में कोई निन्दा वा विकर्म होता नहीं । बाप को याद करते रहने से और ही विकर्म विनाश होंगे । अशान्त न खुद हो, न ओरों को करो । किसको दु :ख देने से आत्मा नाराज होती है । बहुत हैं जो रिपोर्ट लिखते हैं-बाबा, यह घर में आते हैं तो धमचक्र मचा देते हैं । बाबा लिखते हैं तुम अपने शान्ति स्वधर्म में रहो । हातमताई की कहानी भी है ना, उनको कहा तुम मुख में मुहलरा डाल दो तो आवाज निकलेगा ही नहीं । बोल नहीं सकेंगे ।
तुम बच्चों को शान्ति में रहना है । मनुष्य शान्ति के लिए बहुत धक्के खाते हैं । तुम बच्चे जानते हो हमारा मीठा बाबा शान्ति का सागर है । शान्ति कराते-कराते विश्व में शान्ति स्थापन करते हैं । अपने भविष्य मर्तबे को भी याद करो । वहाँ होता ही है एक धर्म, दूसरा कोई धर्म होता नहीं । उनको ही विश्व में शान्ति कहा जाता है । फिर जब दूसरे-दूसरे धर्म आते हैं तो हंगामें होते हैं । अभी कितनी शान्ति रहती है । समझते हो हमारा घर वही है । हमारा स्वधर्म है शान्त । ऐसे तो नहीं कहेंगे  शरीर का स्वधर्म शान्त है । शरीर विनाशी चीज है, आत्मा अविनाशी चीज है । जितना समय आत्मायें वहाँ रहती हैं तो कितना शान्त रहती हैं । यहाँ तो सारी दुनिया में अशान्ति है इसलिए शान्ति माँगते रहते हैं । परन्तु कोई चाहे सदा शान्त में रहें, यह तो हो न सके । भल 63 जन्म वहाँ रहते हैं फिर भी आना जरूर पड़ेगा । अपना पार्ट दुःख-सुख का बजाकर फिर चले जायेंगे । ड्रामा को अच्छी रीति ध्यान में रखना होता है ।
तुम बच्चों को भी ध्यान में रहे कि बाबा हमको वरदान देते हैं - सुख और शान्ति का । ब्रह्मा की आत्मा भी सब सुनती है । सबसे नजदीक तो इनके कान सुनते हैं । इनका मुख कान के नजदीक है । तुम्हारा फिर इतना दूर है । यह झट सुन लेते हैं । सब बातें समझ सकते हैं । बाप कहते हैं मीठे- मीठे बच्चों! मीठे-मीठे तो सबको कहते हैं क्योंकि बच्चे तो सब हैं । जो भी जीव आत्मायें हैं वह सब बाप के बच्चे अविनाशी हैं । शरीर तो विनाशी है । बाप अविनाशी है । बच्चे आत्मायें भी अविनाशी हैं । बाप बच्चों से वार्तालाप करते हैं-इसको कहा जाता है रूहानी नॉलेज । सुप्रीम रूह बैठ रूहो को समझाते हैं । बाप का प्यार तो है ही । जो भी सब रूहे हैं, भल तमोप्रधान हैं । जानते हैं यह सब जब घर में थे तो सतोप्रधान थे । सबको कल्प-कल्प हम आकर शान्ति का रास्ता बताता हूँ । वर देने की बात नहीं है । ऐसे नहीं कहते धनवान भव, आयुष्वान भव । नहीं । सतयुग में तुम ऐसे थे परन्तु आशीर्वाद नहीं देते हैं । कृपा वा आशीर्वाद नहीं माँगनी है । बाप, बाप भी है, टीचर भी है-यही बात याद करनी है । ओहो! शिवबाबा बाप भी है, टीचर भी है, ज्ञान का सागर भी है । बाप ही बैठ अपना और रचना के आदि-मध्य- अन्त का ज्ञान सुनाते हैं, जिससे तुम चक्रवर्ती महाराजा बन जाते हो । यह सारा आलराउण्ड चक्र है ना । बाप समझाते हैं इस समय सारी दुनिया रावण राज्य में है । रावण सिर्फ लंका में नहीं है । यह है बेहद की लंका । चारों तरफ पानी है । सारी लंका रावण की थी, अब फिर राम की बनती है । लंका तो सोने की थी । वहाँ सोना बहुत होता है । एक मिसाल भी बताते हैं ध्यान में गया, वहाँ एक सोने की ईट देखी । जैसे यहाँ मिट्टी की है, वहाँ सोने की होगी । तो ख्याल किया सोना ले जायें । कैसे-कैसे नाटक बनाये हैं । भारत तो नामीग्रामी है, और खण्डो में इतने हीरे-जवाहर नहीं होते । बाप कहते हैं मैं सबको वापिस ले जाता हूँ, गाइड बन करके । चलो बच्चे, अब घर जाना है । आत्मायें पतित हैं, पावन होने बिगर घर जा नहीं सकती हैं । पतित को पावन बनाने वाला एक बाप ही है इसलिए सब यहाँ ही हैं । वापिस कोई भी जा नहीं सकते । लॉ नहीं कहता । बाप कहते हें-बच्चे, माया तुम्हें और ही जोर से देह- अभिमान में लायेगी । बाप को याद करने नहीं देगी । तुमको खबरदार रहना है । इस पर ही युद्ध है । आँखें बड़ा धोखा देती है । इन आँखों को कब्जे में (अधिकार में) रखना है । देखा गया भाई-बहन में भी दृष्टि ठीक नहीं रहती है तो अब समझाया जाता है भाई- भाई समझो । यह तो सब कहते हैं हम सब भाई- भाई हैं । परन्तु समझते कुछ भी नहीं । जैसे मेंढक ट्राँ-ट्रॉ करते रहते हैं, अर्थ कुछ नहीं समझते । अभी तुम हर एक बात का यथार्थ अर्थ समझ गये हो ।
बाप मीठे-मीठे बच्चों को बैठ समझाते हैं कि तुम भक्ति मार्ग में भी आशिक थे, माशुक को याद करते थे । दुःख में झट उनको याद करते हैं-हाय राम! हे भगवान रहम करो! स्वर्ग में तो ऐसे कभी नहीं कहेंगे । वहाँ रावण राज्य ही नहीं होता है । तुमको रामराज्य में ले जाते हैं तो उनकी मत पर चलना चाहिए । अभी तुमको मिलती है ईश्वरीय मत फिर मिलेगी दैवी मत । इस कल्याणकारी संगमयुग को कोई भी नहीं जानते हैं क्योंकि सबको बताया हुआ है, कलियुग अजुन छोटा बच्चा है । लाखो वर्ष पड़े हैं । बाबा कहते यह है भक्ति का घोर अन्धियारा । ज्ञान है सोझरा । ड्रामा अनुसार भक्ति की भी नूंध है, यह फिर भी होगी । अब तुम समझते हो भगवान् मिल गया तो भटकने की दरकार नहीं रहती । तुम कहते हो हम जाते हैं बाबा के पास अथवा बापदादा के पास । इन बातों को मनुष्य तो समझ न सके । तुम्हारे में भी जिनको पूरा निश्चय नहीं बैठता तो माया एकदम हप कर लेती है । एकदम गज को ग्राह हप कर लेता है । आश्चर्यवत सुनन्ती...पुराने तो चले गये, उनका भी गायन है, अच्छे- अच्छे महारथियों को माया हरा देती है । बाबा को लिखते हैं-बाबा, आप अपनी माया को नहीं भेजो । अरे, यह हमारी थोड़ेही है । रावण अपना राज्य करते हैं, हम अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं । यह परमपरा से चला आता है । रावण ही तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन है । जानते हैं रावण दुश्मन है, इसलिए उसको हर वर्ष जलाते हैं । मैसूर में तो दशहरा बहुत मनाते हैं, समझते कुछ नहीं । तुम्हारा नाम है शिव शक्ति सेना । उन्होंने फिर नाम बन्दर सेना डाल दिया है । तुम जानते हो बरोबर हम बन्दर मिसल थे, अब शिवबाबा से शक्ति ले रहे हो, रावण पर जीत पाने । बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं । इस पर कथायें भी अनेक बना दी है । अमरकथा भी कहते हैं । तुम जानते हो बाबा हमको अमरकथा सुनाते हैं । बाकी कोई पहाड़ आदि पर नहीं सुनाते । कहते हैं शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाई । शिव शंकर का चित्र भी रखते हैं दोनों को मिला दिया है । यह सब है भक्ति मार्ग । दिन-प्रतिदिन सब तमोप्रधान होते गये हैं । सतोप्रधान से सतो होते हैं तो दो कला कम होती है । त्रेता को भी वास्तव में स्वर्ग नहीं कहा जाता है । बाप आते हैं तुम बच्चों को स्वर्गवासी बनाने । बाप जानते हैं ब्राह्मणकुल और सूर्यवशी-चन्द्रवशी कुल दोनों स्थापन हो रहे हैं । रामचन्द्र को क्षत्रिय की निशानी दी है । तुम सब क्षत्रिय हो ना, जो माया पर जीत पाते हो । कम मार्क्स से पास होने वाले को चन्द्रवशी कहा जाता है, इसलिए राम को बाण आदि दे दिया है । हिंसा तो त्रेता में भी होती नहीं । गायन भी है राम राजा, राम प्रजा.... परन्तु यह क्षत्रियपन की निशानी दे दी है तो मनुष्य मूँझते हैं । यह हथियार आदि होते नहीं हैं । शक्तियों के लिए भी कटारी आदि दिखाते हैं । समझते कुछ भी नहीं हैं । तुम बच्चे अभी समझ गये हो कि बाप ज्ञान का सागर है इसलिए बाप ही आदि-मध्य- अन्त का राज समझाते हैं । बेहद के बाप का जो बच्चों पर लव है, वह हद के बाप का हो न सके । 21 जन्मों के लिए बच्चों को सुखदाई बना देते हैं । तो लवली बाप ठहरा ना! कितना लवली है बाप, जो तुम्हारे सब दुःख दूर कर देते हैं । सुख का वर्सा मिल जाता हैं । वहाँ दुःख का नाम निशान नहीं होता । अभी यह बुद्धि में रहना चाहिए ना । यह भूलना नहीं चाहिए । कितना सहज है, सिर्फ मुरली पढ़कर सुनानी है, फिर भी कहते हैं ब्राह्मणी चाहिए । ब्राह्मणी बिगर धारणा नहीं होती । अरे, सत्य नारायण की कथा तो छोटे बच्चे भी याद कर सुनाते हैं । मैं तुमको रोज-रोज समझाता हूँ सिर्फ अल्फ को याद करो । यह ज्ञान तो 7 रोज में बुद्धि में बैठ जाना चाहिए । परन्तु बच्चे भूल जाते हैं, बाबा तो वण्डर खाते हैं । अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग । रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप से आशीर्वाद वा कृपा नहीं मांगनी है । बाप, टीचर, गुरू को याद कर अपने ऊपर आपेही कृपा करनी है । माया से खबरदार रहना है, आँखें धोखा देती हैं, इन्हे अपने अधिकार में रखना है ।
2) फालतू झरमुई-झगमुई की बातें बहुत नुकसान करती हैं इसलिए जितना हो सके शान्त रहना है, मुख में मुहलरा डाल देना है । कभी भी उल्टा-सुल्टा नहीं बोलना है । न खुद अशान्त होना है, न किसी को अशान्त करना है |

वरदान:-
हजूर को सदा साथ रख कम्बाइन्ड स्वरूप का अनुभव करने वाले विशेष पार्टधारी भव !   
बच्चे जब दिल से कहते बाबा तो दिलाराम हाजिर हो जाता, इसीलिए कहते हजूर हाजिर । और विशेष आत्मायें तो हैं ही कम्बाइन्ड । लोग कहते हैं जिधर देखते हैं उधर तू ही तू है और बच्चे कहते हैं हम जो भी करते हैं, जहाँ भी जाते हैं बाप साथ ही है । कहा जाता है करनकरावनहार तो करनहार और करावनहार कम्बाइन्ड हो गया । इस स्मृति में रहकर पार्ट बजाने वाले विशेष पार्टधारी बन जाते हैं|

स्लोगन
:- 
स्वयं को इस पुरानी दुनिया में गेस्ट समझकर रहो तो पुराने संस्कारों और संकल्पों को गेट आउट कर सकेंगे ।   

ओम् शान्ति |

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